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संस्कृति की राजनीतिक सीमाएं नहीं होती : कश्मीर के राज्यपाल
डिजिटल डेस्क, पुणे। जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल एन.एन. वोहरा ने शनिवार को पुणे में कहा कि अपनी भारतीय संस्कृति में होने वाली विविधता यह एक विशेषता है। यह समझकर ही आने वाली चुनौतियों पर मात करनी होगी। संस्कृति को भौगोलिक तथा राजनीतिक सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता।
सरहद संस्था तथा खड़के फाउंडेशन द्वारा कल्हण पंडित द्वारा लिखित तथा डॉ. अरूणा ढेरे और प्रशांत तलणीकर द्वारा मराठी में अनुवादित किए हुए कश्मीर के इतिहास पर आधारित राजतरंगिणी नामक पुस्तक का विमोचन वोहरा के हाथों शनिवार को पुणे स्थित बालगंधर्व रंगमंदिर में संपन्न हुआ। इस समय उन्होंने कहा कि अपनी भारतीय संस्कृति में विविधता है जो उसकी विशेषता है। संस्कृति को भौगोलिक तथा राजनीतिक सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता।
रोजगार उपलब्ध कराना, हर एक को अच्छा अन्न, स्वच्छ जल उपलब्ध कराना तथा हर एक को गुणवत्तापूर्ण जीने का अवसर उपलब्ध कराना यह हमारे सामने चुनौतियां बनी हुई हैं। इन चुनौतियों पर मात करने के लिए हर हिस्से की संस्कृति समझकर हमें बदलना होगा। साथ ही सामने एक उद्दीष्ट रख उस अनुसार विचार प्रक्रिया भी बदलनी होगी। दुर्लक्षित घटकों पर ध्यान देना होगा। मुझे विश्वास है कि आने वाले समय में भारत का चित्र निश्चित रूप से बदलेगा।
समारोह में उपस्थित साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता कश्मीरी लेखक प्राणकिशोर कौल ने कहा कि राजतरंगिणी पुस्तक में मनुष्य के भाव भावनाओं का मिश्रण है। यह पुस्तक मराठी में आने की आवश्यकता थी। सांस्कृतिक आदान प्रदान साहित्य के माध्यम से होता है। साहित्य यह संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। हमारी सभी भाषाओं का आदान प्रदान होने की प्रक्रिया शुरू होना आवश्यक है।
इस समय वरिष्ठ उद्योजक अभय फिरोदिया, सरहद संस्था के संस्थापक अध्यक्ष संजय नहार, न्यासी शैलेश वाड़ेकर, खड़के फाउंडेशन के अध्यक्ष संजीव खड़के, प्रशांत तलणीकर उपस्थित थे।
Created On :   16 Sept 2017 6:52 PM IST