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नगाड़ा बजाकर आरती, पढ़ें कार्तिक माह की 78 वर्षो पुरानी परंपरा

डिजिटल डेस्क, चांदूरबाजार/अमरावती। कार्तिक माह में सूरज निकलने के पूर्व स्नान का अलग ही महत्व है। महाराष्ट्र में कार्तिक माह में श्रद्धालु परंपरा का निर्वाह करते हुए काकड़ा आरती करते हैं। संतों की पावनभूमि अमरावती में एक ऐसा मंदिर है, जहां काकड़ा आरती की परंपरा 78 वर्षों से निरंतर जारी है। चांदुरबाजार तहसील में आनेवाले इस मंदिर का नाम सोमेश्वर मंदिर है, जहां राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज ने काकड़ा आरती की शुरुआत की थी।
नगाड़ा बजाकर आरती
सोमेश्वर मंदिर का निर्माण 1918 में हुआ। मंदिर में 1939 में आरती मंडल की स्थापना होकर राष्ट्रसंत के प्रार्थना स्वर से कार्तिक माह में काकड़ा आरती के सुर गूंजने लगे। उस समय नगाड़ा बजाकर आरती के लिए भक्तों को बुलाया जाता था। गंगाधर अन्ना संगेकर, अन्ना साहब जंगम, गुमले सोनार, रामकृष्ण दादा कुलथे, महादेव फुलझेले के साथ युवा आरती में शामिल होते थे। आगे यही युवक देशभक्ति से प्रेरित हुए।
कार्तिक माह में रोज तड़के काकड़ा आरती होती है।
राष्ट्रसंत की खंजरी पूरी दुनिया में गूंजी
विश्व धर्म परिषद में जिसने खंजरी और अपनी जादुई आवाज से पूरी दुनिया को आकर्षित किया, राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज के खंजरी की पहली ताल सोमेश्वर मंदिर में ही सुनाई दी थी। राष्ट्रसंत का बचपन यावली शहीद में बीता। उससे आगे चांदुर बाजार में टेलर मामा के यहां वे रहे। प्राथमिक शिक्षा नपा के साथ हमेशा मंदिर में आते रहते थे। तत्कालीन पुजारी से खंजरी बजाने की कला सीखी। पुजारी गुरु को गुरुदक्षिणा के रूप में बीड़ी का बंडल देना पड़ा था। राष्ट्रसंत की खंजरी पूरी दुनिया में गूंजी।
1918 में श्रीसंत जमीदार सोम अप्पा संगेकर ने सोमेश्वर मंदिर का निर्माण कराया। पहले छोटा, बाद में विशाल रूप उन्होंने ही दिया। मंदिर में शिवलिंग के अलावा हनुमानजी, संत नामदेव व राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज की प्रतिमा है। मंदिर परिसर में देवानंद भारती (गोस्वामी) की समाधि है। मंदिर के लिए दिगंबर अन्ना संगेकर ने जगह खरीदी थी। इसमें पंडित जितेंद्र अभिषेकी का गायन हो चुका है। उस समय उन्हें किराया एवं 5 रुपए मानधन दिया गया था। अब मंदिर में महिला मंडल, गुरुदेव सेवामंडल द्वारा काकड़ा आरती की जाती है। मंदिर की देखभाल अभी संगेकर परिवार करता है।
करजगांव में 82 वर्षों से ग्राम प्रदक्षिणा की परंपरा जारी
कार्तिक माह में तहसील के करजगांव में 82 वर्ष से गांव प्रदक्षिणा की परंपरा निभाई जा रही है। काकड़ा आरती के दौरान ताल-मृदंग या कोई वाद्य न बजाते हुए केवल जय-जय रघुवीर समर्थ और तुकड़ोजी महाराज की जय-जयकार की जाती है। 1935 से यह परंपरा चली आ रही है। गांव की महिलाएं तड़के 4 बजे आंगन में रंगोली निकालती हैं। सूर्यनारायण के दर्शन के साथ फेरी का समापन होता है। अश्विन पूर्णिमा से बैकुंठ चर्तुदशी तक चलने वाली प्रभातफेरी की शुरुआत डा. भाऊसाहब सोनार ने 1935 में शुरू की, उन्हें मोतीराम सोनार, विश्वास सोनार, डी.के. जावरकर, भुयार गुरुजी ने नवसंजीवनी दी। गांवफेरी की काकड़ा आरती पर और भारतमाता के जयघोष से समापन होता है। विगत 50 सालों से नामदेव वांगे, रघुनाथ मेहरे, रघुनाथ लोखंडे, नितीन कोरडे, कैलाश वडनेरकर, संजय राहाटे, अशोक सेवतकर, दीपक खारकर ने इस परंपरा का जतन किया।

Created On :   12 Oct 2017 1:47 PM IST