मिट्‌टी से देवता बनाने में गजब का हुनर रखती हैं ये महिलाएं, सावन लगते ही शुरू हुआ मूर्ति बनाना

Ladies too have the super talent of making some great mud idols
मिट्‌टी से देवता बनाने में गजब का हुनर रखती हैं ये महिलाएं, सावन लगते ही शुरू हुआ मूर्ति बनाना
मिट्‌टी से देवता बनाने में गजब का हुनर रखती हैं ये महिलाएं, सावन लगते ही शुरू हुआ मूर्ति बनाना

डिजिटल डेस्क, नागपुर। आमतौर पर मिट्‌टी से मूर्ति बनाने का कार्य पुरुषों द्वारा ही किया जाता है, लेकिन शहर में ऐसी भी कई महिलाएं हैं तो मिट्‌टी से देवता बनाने में गजब का हुनर रखती हैं। श्रावण मास से त्यौहार शुरू होने जा रहे हैं। आने वाले दिनों में गणेशोत्सव, जन्माष्टमी, नवरात्रोत्सव, शारदोत्सव की धूम रहेगी। इन दिनों मूर्तिकार मूर्ति बनाने में जुटे हुए हैं। मूर्ति बनाने का काम पुरुष कारीगर तो करते ही हैं, महिलाएं भी इस काम में पीछे नहीं हैं।

 



महिला कारीगर ज्यादातर छोटी मूर्तियां बनाती हैं। बड़ी मूर्तियां बनाने में मेहनत ज्यादा लगती है और काफी देर तक खड़ा रहना पड़ता है। 5 फीट तक की मूर्तियां महिला कारीगर बनाती हैं। ये अपने हाथों से मूर्तियों में जान फूंकने में कोई कसर नहीं छोड़ती।  शहर की आबादी करीब 35 से 40 लाख के बीच है, पर मूर्तिकार महिलाएं गिनी-चुनी ही हैं। महिला मूर्तिकारों से चर्चा कर उनके कार्य और मूर्ति बनाने की प्रेरणा कहां से मिली इस संबंध में बातचीत की।

रूचि जरूरी है
वैसे तो हर काम के लिए धैर्य होना चाहिए, पर मूर्ति बनाने के लिए काफी धैर्य की जरूरत होती है। बिना इसके मूर्ति बनाना या कोई भी आर्ट वर्क नहीं किया जा सकता है। 15 वर्ष से मूर्ति बनाने का काम कर रही हूं। मूर्तियों में वर्क भी बहुत रुचि से करती हूं। सिल्क, नेट और सनिल के कपड़े से बनाई गई ड्रेसेज और एक्सेसरीज से सजी गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां लोगों को खूब भाती हैं।

पहले इस तरह की मूर्तियां मेट्रो सिटीज के कलाकार डिजाइन करते थे, लेकिन अब नागपुर में भी इस तरह की मूर्तियों का प्रचलन बढ़ गया है। सिल्क पर जरी और चंदेरी एम्ब्राॅयडरी की ड्रेस से मूर्तियों की शोभा और भी बढ़ जाती है। हमारे द्वारा किया गया  सोलह शृंगार उनके रूप को और निखार देता है। 
संजना संतोष सूर्यवंशी, चितारओली

20 वर्ष से बना रहीं हैं मूर्तियां

जब मैं शादी कर के आई, तो हर सीजन में अपने पति को मूर्ति बनाते देखती थी। फिर मैंने सोचा कि क्यों न मैं भी मूर्ति बनाना शुरू कर दूं। मैंने कोशिश की और एक बार काम बिगड़ भी गया, पर मैंने हार नहीं मानी और आज मूर्ति बनाते हुए मुझे 20 वर्ष हो गए। गणेश, लक्ष्मी, दुर्गा हर तरह की मूर्तियां बनाती हूं। यह हमारा पुश्तैनी काम है। यह काम करने से पति की मदद भी हो जाती है और हेल्पर की भी जरूरत नहीं पड़ती है।

गणेशोत्सव में 1 फीट से लेकर 10 फीट तक लगभग 20 मूर्तियां बना लेते हैं। दुर्गा पूजा के लिए दुर्गा और काली की भी मूर्ति बनाते हैं। नग और जरी के काम से सजे कपड़ों के साथ डिजाइनर पगड़ी और मोजरी वाली गणेश की मूर्तियां बना रही हूं। दिवाली की शॉपिंग लोग एक हफ्ता पहले शुरू करते हैं, लेकिन हमें मूर्तियों के लिए ऑर्डर दो महीने पहले से मिलने लगते हैं। मूर्तियों को सजाने के लिए हम ज्यादातर सामान बाहर से मंगवाते हैं। इसके लिए खुद ही शाॅपिंग करने भी जाते हैं। 
आशा संजय सूर्यवंशी, चितारओली

मिट्‌टी से मूर्ति बनाना नहीं है आसान

मूर्ति बनाने का काम आसान नहीं है। इसके लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। पहले मिट्टी को छानना, फिर उसे एक जैसा करना और उसके बाद मूर्ति बनाने का काम किया जाता है। मिट्टी में फिनिशिंग होना सबसे ज्यादा जरूरी है। इसके लिए बहुत पहले से ही तैयारी शुरू हो जाती है। हर महिला अपनी क्षमता के अनुसार मूर्ति बनाती है। मूर्ति बनाने के पहले हमारे मन में एक आकृति तैयार हाे जाती है और उसी तरह की आकृति का चेहरा मूर्ति में आ जाती है।

कलाकार को मूर्ति बनाने से पहले ही अपने मन में अच्छी सी मूरत तैयार कर लेनी चाहिए। मूर्ति में जान उसमें की जाने वाली कलाकृति से आती है, इसलिए इसमें किया गया वर्क बहुत ही सावधानी से करना पड़ता है। मूर्ति की कीमत 300 रुपए से शुरू होती है, जो हजारों रुपए तक होती है। लोग अपनी हैसियत के अनुसार मूर्ति खरीदते हैं।                   
सोनिका केसरवानी, सदर

 

Created On :   27 July 2018 8:31 AM GMT

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story