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एग्रीमेंट से हो रहा नुकसान, बिजली खरीदी किए बगैर करना पड़ रहा करोड़ों का भुगतान

डिजिटल डेस्क, नागपुर। महावितरण प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए का भुगतान उन बिजलीघरों को कर रहा है, जिनसे बिजली की अधिकता के चलते बिजली ही नहीं खरीदी जाती। आयोग ने बिजली खरीद में एमओडी पद्धति लागू की है। एमओडी यानी मेरिट आर्डर डिस्पैच। बिजली खरीदते समय सबसे पहले उस बिजलीघर की बिजली खरीदी जाएगी, जिसकी दर सबसे कम है, उसके बाद उससे अधिक दर वाली से खरीदी जाएगी। इससे उपभोक्ताओं को कुछ लाभ होता है। उसे ईंधन समायोजन शुल्क के रूप में भुगतान कम करना पड़ता है। परेशानी यह है कि कमी न पड़ने के डर में महावितरण ने जरूरत से अधिक बिजली खरीदी के दीर्घकालीन करार कर रखे हैं। ऐसे में इन बिजलीघरों से बिजली खरीदें या न खरीदें, पर करोड़ों रुपए स्थाई शुल्क के रूप में भरने होते हैं।
जरूरत से ज्यादा बिजली खरीदी के हैं करार
महावितरण ने प्रदेश की मांग से ज्यादा बिजली की खरीद के करार किए हैं। इससे बगैर बिजली खरीदे भी इन बिजलीघरों को स्थाई शुल्क का भुगतान करना होता है। हालांकि कई बार आपात स्थिति या गर्मी के मौसम में बिजली खरीद के ये करार काम आते हैं, लेकिन इससे उपभोक्ताओं पर हर माह करीब 31 से 35 पैसे प्रति यूनिट तक का भार आता है। आयोग द्वारा सन 2016 में दी गई मंजूरी के अनुसार देखें, तो सन 2016-17 में 25605 दस लाख यूनिट बिजली महावितरण के पास अतिरिक्त उपलब्ध थी।
2017-18 में 46558 दस लाख यूनिट अतिरिक्त बिजली थी, जबकि सन 2018-19 में 44653 दस लाख तथा 2019-20 में 42582 दस लाख यूनिट अतिरिक्त होगी। बंद रखे गए बिजली घरों की क्षमता सन 2016-17 में 2654 मेगावाट व 2018-19 में 5020 मेगावाट थी। सन 2018-19 में 4520 मेगावाट तथा सन 2019-20 में 4020 मेगावाट होगी। इसके चलते बंद रखे गए बिजलीघरों को स्थाई शुल्क के रूप में सन 2016-17 में 1152 करोड़ तथा 2017-18 में 3363 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया, जबकि सन 2018-19 में 3096 तथा 2019-20 में 2520 करोड़ रुपए का भुगतान होगा, जिसका ठीकरा विद्युत उपभोक्ताओं के सिर ही फूटेगा।