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ठेकेदारों- दुकानदारों से करोड़ों वसूलते हैं माओवादी, एनआईए के आरोप पत्र में खुलासा
डिजिटल डेस्क, मुंबई। प्रतिबंधित माओवादी संगठनों को हर साल करीब 3 करोड़ रुपए की फंडिंग मिलती है। यह रकम सीपीआई (माओवादी) के सदस्य आदिवासियों, सड़क ठेकेदारों, बांस के ठेकेदारों, दुकानदारों और गांववालों से इकठ्ठा करते हैं। एल्गार परिषद मामले में आठ आरोपियों के खिलाफ दाखिल आरोपपत्र में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने यह जानकारी दी है। आरोपपत्र के मुताबिक महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में सक्रिय माओवादी हर साल ढाई से तीन करोड़ रुपए जुटाते हैंं इन पैसों का इस्तेमाल माओवादी गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए किया जाता है। एक गवाह ने जांच एजेंसी को बताया कि माओवादी आदिवासी और ठेकेदारों से तेंदुपत्ता के लिए साढ़े तीन सौ रूपए वसूलते हैं। सड़क ठेकेदारों से भी माओवादी जंगल टैक्स वसूलते हैं। बांस के ठेकेदारों से भी वसूली की जाती है। इसके अलावा इलाके में रहने वाले आदिवासियों को भी हर साल एक तय रकम देनी पड़ती है। इलाकों के दुकानदारों को भी हर साल तय रकम देनी पड़ती है।
मोबाईल फोन इस्तेमाल से बचते हैं नक्सली
माओवादी बड़ी संख्या में ऐसे हथियारों का इस्तेमाल करते हैं जिन्हें देश की सुरक्षा एजेंसियों से लूटा जाता है साथ ही अवैध उत्खनन से जुड़े लोगों से जिलेटिन हासिल करते हैं और सोडा सल्फर का इस्तेमाल कर विस्फोटक बनाते हैं। इसके अलावा कैल्सियम, अमोनियम नाइट्रेट की मदद से आईईडी तैयार करते हैं। पुलिस के डर से माओवादी एक दूसरे से संपर्क के लिए अब मोबाइल के इस्तेमाल से बचते हैं और संदेश वाहकों, वाकी टाकी के जरिए एक दूसरे तक संदेश पहुंचाते हैं। अगर बेहद जरूरी हो तो ही ईमेल भेजने और डाटा डाउनलोड करने के लिए मोबाइल का इस्तेमाल किया जाता है। एक दूसरे की पहचान छिपाने के लिए संबोधन के लिए दूसरे नामों का इस्तेमाल किया जाता है। पूरक आरोपपत्र में दावा किया गया है कि मामले में गिरफ्तार मिलिंद तेलतुंबड़े को माओवादी आपसी बातचीत में साहिल नाम से बुलाते थे।
Created On :   21 Oct 2020 7:42 PM IST