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आरोपी के पास से पैसे बरामद होना रिश्वतघोरी का सबूत नहीं - हाईकोर्ट

डिजिटल डेस्क, मुंबई। सिर्फ आरोपी के पास से मिले पैसे के आधार पर नहीं बल्कि रिश्वत मांगने का सबूत पेश करने के आधार पर ही उसे घूसखोरी के लिए दोषी ठहाराया जा सकता है। बांबे हाईकोर्ट ने घूसखोरी के मामले में एक सरकारी कर्मचारी के रिहाई के आदेश को कायम रखने वाले फैसले में यह बात कही है। आरोपी सौकत मनेर कोल्हापुर के शिक्षा अधिकारी कार्यालय में क्लर्क के रुप में कार्यरत था। उसके पास विभिन्न तरह के भुगतान की जिम्मेदारी थी। उसे रिश्वत लेने के मामले में गिरफ्तार किया गया था। निचली अदालत ने इस मामले में आरोपी मनेर को बरी कर दिया था जिसके खिलाफ राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में अपील की थी। न्यायमूर्ति के.आर श्रीराम ने मामले से जुड़े तथ्यों व सबूतों पर गौर करने के बाद राज्य सरकार की अपील को खारिज कर दिया और आरोपी के रिहाई के आदेश को कायम रखा।
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति ने पाया कि शिकायतकर्ता की पत्नी स्कूल में चपरासी के रुप में कार्यरत थी। उसने छुट्टी के भुगतान के लिए आवेदन किया था। यह रकम 3916 रुपए थी। काफी समय तक जब भुगतान नहीं किया गया तो शिकायतकर्ता ने शिक्षा अधिकारी के कार्यालय से संपर्क किया तो क्लर्क के रुप में कार्यरत आरोपी ने कहा कि यदि वह दो सौ रुपए देगा तो उसका काम हो जाएगा। शिकायतकर्ता ने रिश्वत मांगे जाने कि शिकायत भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) से कर दी। इसके बाद शिकायतकर्ता ने आरोपी से मुलाकात की और एसीबी की टीम ने मनेर को गिरफ्तार कर लिया।
आरोपी के जेब से दौ सौ रुपए बरामद किया गया। इसके बाद आरोपी के खिलाफ कोर्ट में आरोपपत्र दायर किया गया। आरोपी ने खुद पर लगे आरोपों का खंडन किया। आरोपी के खिलाफ भ्रष्टाचार प्रतिबंधक कानून की धारा 13(1डी) व धारा सात के तहत मुकदमा चलाया गया। निचली अदालत ने सबूत के अभाव में 2003 में बरी कर दिया। जिसके खिलाफ सरकार ने हाईकोर्ट में अपील की। न्यायमूर्ति श्रीराम ने मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि रिश्वतखोरी के मामले में घूसखोरी की मांग का सबूत जरुरी है आरोपी के पास से सिर्फ पैसे मिलने के आधार पर उसे भ्रष्टाचार प्रतिबंधक कानून की उन धाराओं के तहत दोषी नहीं ठहाराया जा सकता जो इस मामले के आरोपी पर लगाई गई है। अभियोजन पक्ष आरोपी पर लगे आरोपों को लेकर सबूत नहीं पेश कर पाया है इसलिए निचली अदालत के रिहाई के आदेश को कायम रखा जाता है और सरकार की अपील को खारिज किया जाता है।
Created On :   13 Feb 2020 9:01 PM IST