130 दिन में 96 हजार से अधिक लोगों को कराया भोजन - जरूरतमंदों के लिए मददगार बनी सांझी रसोई

More than 96 thousand people served food in 130 days - Sanjhi kitchen became helpful for the needy
130 दिन में 96 हजार से अधिक लोगों को कराया भोजन - जरूरतमंदों के लिए मददगार बनी सांझी रसोई
130 दिन में 96 हजार से अधिक लोगों को कराया भोजन - जरूरतमंदों के लिए मददगार बनी सांझी रसोई

डिजिटल डेस्क शहडोल । लॉकडाउन में नगर की सांझी रसोई जरूरतमंदों और प्रवासी श्रमिकों की सेवा में जुटी रही। इससे जुड़े युवाओं ने अपने खर्च पर लोगों को भोजन खिलाने का काम किया। युवाओं ने अब तक 96 हजार से अधिक लोगों को भोजन कराया है। इसके लिए इनकी सराहना जिले व प्रदेश में ही नहीं बल्कि यूके के वल्र्ड रिकार्ड बुक की ओर से भी की गई है।
   सांझी रसोई की शुरुआत जनवरी माह में हुई थी। कोई भी भूखा न रहे, इसकी तर्ज पर करीब आधा दर्जन युवाओं ने नाम मात्र का शुल्क रखते हुए भोजन खिलाने का काम शुरू किया। पांच रुपए का शुल्क इसलिए रखा ताकि लोग यह न समझें कि हम खैरात में खाना पा रहे हैं। हर रोज 2-3 घंटे में 300 से अधिक लोग भोजन करने लगे। मार्च में शुरू हुए कोरोना संक्रमण के दौरान सांझी रसोई ने नि:शुल्क भोजन कराना शुरू किया और दूसरे प्रदेशों से आने वाले प्रवासी श्रमिकों को बस स्टैंड में भोजन देने लगे।
एक भी प्रवासी नहीं गया भूखा
कोरोना वायरस संक्रमण के बीच जब लॉक डाउन में लोग घर से बाहर निकलने में दहशत खा रहे थे। ऐसे समय में संक्रमण का जोखिम उठाते हुए सांझी रसोई के युवाओं ने बिना किसी भय के भोजन परोसने का कार्य जारी रखा। लॉक डाउन के तीन महीनों में जब लोग बेरोजगार थे। रिक्शा, चाय-पान आदि व्यवसाय बंद हो चुके थे। बाहर से आने वाले श्रमिकों के लिए खाना-पानी का कोई ठिकाना नहीं था, सांझी रसोई मददगार के रूप में सामने आई। युवाओं ने 24 घंटे भोजन की व्यवस्था कराई। बस स्टैण्ड में स्थायी काउंटर तक बनाया। शहडोल से गुजरने वाली प्रवासी श्रमिकों के ट्रेनों में लगातार भोजन, पानी, दूध, फल आदि की व्यवस्था कराई। करीब 28 ट्रेनें यहां से गुजरीं, एक ट्रेन में औसतन 1600 लोग रहते थे। किसी दिन  3-3 ट्रेनें गुजरीं। सभी में हर बोगी में सारी व्यवस्था नि:शुल्क रूप से कराई। युवाओं ने यहां से होकर गुजरे एक भी प्रवासी श्रमिक को भूखा नहीं जाने दिया।
लगातार जुड़ते जा रहे लोग
हर कोई मदद को तैयार
जब सांझी रसोई की शुरुआत की गई थी तब इसमें एक दिन में 3-4 हजार रुपए का खर्च आता था। पांच रुपये के हिसाब से करीब आधी राशि मिल जाती थी। लेकिन कोरोना संक्रमण के बाद से पूरी तरह नि:शुल्क कर दिया गया है। टीम से जुड़े युवा अपने से राशि एकत्रित करते हैं। उनके इस नेक कार्य को देखकर अनेक लोग व संस्थाएं मदद को आगे आ रहे हैं। हालांकि अभी तक शासकीय मदद नहीं मिली है और न ही युवाओं ने कभी लेने का प्रयास किया। सेवा कार्य से जुड़े युवाओं का कहना है कि उन्हें अपने प्रचार प्रसार की जरूरत नहीं है। उन्हें इस कार्य से संतुष्टि मिलती है। प्रयास है कि उनके इस शहर से कोई भी भूखा न जाने पाए।

 

Created On :   22 Jun 2020 10:33 AM GMT

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