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हाईकोर्ट : सामान्य वर्ग कर्मचारियों की नियुक्ति रद्द करने के अध्यादेश पर रोक, आश्रम स्कूलों को लेकर भी पूछा सवाल
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने मराठा आरक्षण को लागू करने के लिए सामान्य वर्ग के सरकारी कर्मचारियों की नियुक्ति रद्द करने के संबंध में लाए गए अध्यादेश पर रोक लगा दी है। इसके साथ ही अदालत ने सरकार को मामले में स्थिति को यथावत रखने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति आरवी मोरे व न्यायमूर्ति एमएस कर्णिक की खंडपीठ ने सरकारी कर्मचारी रेखा मांडवकर सहित अन्य 13 लोगों की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के बाद यह निर्देश दिया है। इससे पहले याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता सदाव्रते गुणरत्ने ने खंडपीठ के सामने दावा किया कि सरकार बड़े पैमाने पर सामान्यवर्ग की पुरानी नियुक्तियों को रद्द करने की तैयारी में है। वर्तमान में राज्य में सरकार का अस्तित्व नहीं है। ऐसे में इस मामले में अदालत का हस्तक्षेप बेहद जरुरी है। अन्यथा सरकार की ओर से जुलाई 2019 में जारी अध्यादेश के तहत मनमाने तरीके नई नियुक्तियां की जाएगी और पुरानी नियुक्ति को रद्द कर दिया जाएगा। इस दौरान उन्होंने खंडपीठ के सामने सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के फैसले की प्रति भी पेश की। जिसके तहत मराठा आरक्षण को पूर्ववर्ती प्रभाव से लागू नहीं किया जा सकता है। ऐसे में यदि प्रशासन को नियुक्तियों को रद्द करने से नहीं रोका गया तो सामान्य वर्ग के कर्मचारियों की परेशानी बढेगी। इस दौरान विशेष सरकारी वकील ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि सरकार ने मराठा आरक्षण के संबंध में जो निर्णय लिया है। उसे नियमों के तहत ही लागू किया जाएगा। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने सरकार को सामान्य वर्ग के कर्मचारियों की नियुक्ति को रद्द करने से रोक दिया और मामले में स्थिति को यथावत रखने का निर्देश दिया। और मामले की सुनवाई 5 दिसंबर तक के लिए स्थगित कर दी। गौरतलब है कि शुरुआत में जब मराठा आरक्षण से जुड़े कानून को लाया गया था तो हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी। जिसके चलते मराठा समुदाय के लिए आरक्षित पदों पर सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों की नियुक्ति की गई थी। अब सरकार इन नियुक्तियों को रद्द करना चाहती है। जिसके खिलाफ सरकार के विभिन्न उपक्रमों में कार्यरत कर्मचारियों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है।
आश्रम स्कूलों में सुधार के लिए सरकार ने क्या किया?
बांबे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि सरकारी आश्रम स्कूलों की कमियों को दूर करने के संबंध में टाटा इंस्टीट्यूट आफ सोशल साइंस (टीस) की ओर से दी गई रिपोर्ट के आधार पर क्या कदम उठाए हैं। टीस ने राज्य के आदिवासी आश्रम स्कूलों के संबंध में एक रिपोर्ट तैयार की है। जिसमें साफ किया गया है कि कई आश्रम स्कूलों में बच्चों को पीने के लिए पानी की व्यवस्था नहीं है। स्कूलों में दरवाजे नहीं है। यहां प्राथमिक उपचार की व्यवस्था नहीं है। कई स्कूलों में बच्चों के लिए प्रकाश की भी व्यवस्था नहीं है। स्कूलों में सुरक्षा दीवार तक नहीं है। आश्रम स्कूलों में महिला संरक्षकों (वुमेन वार्डन) के पद रिक्त हैं। सुरक्षा को लेकर स्कूलों में पर्याप्त इंतजाम नहीं है। सामाजिक कार्यकर्ता रविंद्र तलपे ने आदिवासी आश्रम स्कूलों की खास्ताहाल स्थिति को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। इस दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता उदय वारुंजकर ने दावा किया कि सरकार ने अब तक आश्रम स्कूलों के विषय में टीस की रिपोर्ट में दर्शाई गई कमियों को दूर नहीं किया है। राज्य में 498 सरकारी आश्रम स्कूल हैं। इसके अलावा कई अनुदानित आश्रम स्कूल भी चलाए जाते हैं। मामले की पिछली सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने सरकार को आश्रम स्कूलों की सुरक्षा व वहां पर रिक्त पदों को भरने की दिशा में उठाए गए कदमों की जानकारी देने को लेकर हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया था। इस दौरान सरकारी वकील ने दावा किया कि सरकार ने टीस की रिपोर्ट में दर्शायी गई 90 प्रतिशत कमियों को दूर कर दिया है। सरकार ने आश्रम स्कूलों के सुचारु संचालन के लिए जरुरी सभी सुविधाएं प्रदान कर दी है। इस दौरान खंडपीठ ने पाया कि सरकार ने जो हलफनामा दायर किया है उसमे सिर्फ सरकारी आश्रम स्कूलों की सुरक्षा को लेकर जानकारी दी गई है। अनुदानित आश्रम स्कूलों के बारे में क्या कदम उठाए गए इसका हलफनामे में ब्यौरा नहीं दिया गया है। खंडपीठ ने कहा कि हम सरकार को मामले को लेकर नया हलफनामा दायर करने का निर्देश देते हैं। यह कहते हुए खंडपीठ ने मामले की सुनवाई 11 दिसंबर तक के लिए स्थगित कर दी है।
Created On :   8 Nov 2019 6:39 PM IST