सरकारी कर्मचारी के खिलाफ भ्रष्टाचार का मुकदमा चलाने की अनुमति विवेकपूर्ण हो

Permission to prosecute corruption against government employee should be prudent
सरकारी कर्मचारी के खिलाफ भ्रष्टाचार का मुकदमा चलाने की अनुमति विवेकपूर्ण हो
सरकारी कर्मचारी के खिलाफ भ्रष्टाचार का मुकदमा चलाने की अनुमति विवेकपूर्ण हो

डिजिटल डेस्क, मुंबई। घूसखोरी से जुड़े मामले में भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत सरकारी कर्मचारी के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी का आदेश तकनीकी न होकर विवेकपूर्ण होना चाहिए। बॉम्बे हाईकोर्ट ने 1500 रुपए की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ पकड़े गए एक क्लर्क को राहत देते हुए यह बात कही। क्लर्क आनंद साल्वी को निचली अदालत ने इस मामले में दो साल की सजा सुनाई थी। नगर नियोजन विभाग में कार्यरत साल्वी पर साल 2004 में सैलरी से जुड़े बिल अपलोड करने के लिए रिश्वत लेने का आरोप था। 

निचली अदालत के आदेश के खिलाफ साल्वी ने हाईकोर्ट में अपील की थी। न्यायमूर्ति एस के शिंदे के सामने अपील पर सुनवाई हुई। साल्वी ने अपील में दावा किया था कि उसके खिलाफ  मुकदमा चलाने की मंजूरी देनेवाले प्राधिकरण ने जांच से जुड़े दस्तवेजों को देखे बिना ही मुकदमा चलाने की अनुमति दे दी है। क्योंकि प्राधिकरण के अधिकारी ने कहा है कि उन्हें याद नहीं है कि उन्होनें मंजूरी देने से पहले प्रकरण की जांच से जुड़े दस्तावेज देखे थे अथवा नहीं। इस लिहाज से मेरे खिलाफ तकनीकी तौर पर मुकदमा चलाने के मसौदे पर सिर्फ हस्ताक्षर कर  मंजूरी दे दी गई है। वहीं सरकारी वकील ने निचली अदालत के आदेश को न्यायसंगत बताया और मुकदमा चलाने की मंजूरी को भी सही बताया। 

मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद न्यायमूर्ति शिंदे ने कहा कि सरकारी कर्मचारियों को आधारहीन मुकदमे से बचाने के लिए भ्रष्टाचार प्रतिबंधक कानून में मंजूरी का प्रावधान किया गया है। ऐसे में मुकदमा चलाने की मंजूरी देने वाला आदेश तकनीकी अथवा बुद्धिरहित न होकर विवेकपूर्ण होना चाहिए। मंजूरी के आदेश को दर्शना चाहिए कि मंजूरी देते समय स्वतंत्र रुप से विवेक का इस्तेमाल किया गया है। न्यायमूर्ति ने कहा कि मंजूरी देने वाले प्राधिकरण के पास जांच से जुड़े दस्तवेज होते हैं। इसलिए वह यह तय करने के लिए सबसे उपयुक्त होता है कि मुकदमा चलाने की मंजूरी दी जाए कि नहीं। न्यायमूर्ति ने माना कि इस मामले में आरोपी के खिलाफ दी गई मंजूरी तकनीकी स्वरूप की है। इसलिए निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया। 

 
 

Created On :   25 Feb 2021 8:17 PM IST

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