- Home
- /
- राज्य
- /
- महाराष्ट्र
- /
- मुंबई
- /
- डॉक्टरों को हड़ताल पर जाने से रोके...
डॉक्टरों को हड़ताल पर जाने से रोके हाईकोर्ट - याचिकाकर्ता की मांग

डिजिटल डेस्क, मुंबई। स्टाइपेंड में बढोत्तरी व अन्य मांगो को लेकर राज्य के रेजिडेंट डाक्टरों की हड़ताल के खिलाफ बांबे हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है। डाक्टरों की हड़ताल को लेकर अखबारों में छपी खबरों को आधार बनाकर सामाजिक कार्यकर्ता अफाक मांडवी ने कोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका में दावा किया गया है कि हाईकोर्ट ने अपने एक पूराने आदेश में डाक्टरों को चेतावनी देते हुए हड़ताल पर न जाने का निर्देश दिया था। अदालत ने हड़ताल पर जाने की बजाय अपनी मांग सरकार की ओर से डाक्टरों के मुद्दों को देखने के लिए बनाई गई कमेटी के पास रखने को कहा था। ऐसे में डाक्टरों का हड़ताल पर जाना कोर्ट के आदेश की अवमानना के दायरे में आता है। इसके अलावा याचिका में दावा किया गया है कि रेजिडेंट डाक्टरों की हड़ताल से सबसे ज्यादा गरीब लोग प्रभावित होते हैं, जो सरकारी व महानगरपालिका के अस्पताल में इलाज के लिए जाते हैं। इसलिए डाक्टरों को हड़ताल पर जाने से रोका जाए। मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नांदराजोग की खंडपीठ के सामने नौ अगस्त को मांडवी की याचिका पर सुनवाई हो सकती है। अधिवक्ता दत्ता माने याचिकाकर्ता की ओर से खंडपीठ के सामने पक्ष रखेगे।
पुलिसकर्मी पति के वेतन से पहले पत्नी को करें गुजराभत्ते का भुगतान
वहीं पत्नी को गुजारा भत्ता देने में पुलिसकर्मी की आनाकानी को देखते हुए बांबे हाईकोर्ट ने गुजारे भत्ते की रकम को पांच गुना कर दिया है। और राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह पुलिसकर्मी के वेतन से पहले गुजारे भत्ते की रकम सीधे पत्नी के खाते में जमा कर दे। बची हुई रकम पुलिस कांस्टेबल
महाराषट्र पुलिस में हेड कांस्टेबल के पद पर तैनात पुलिसकर्मी को पारिवारिक अदालत ने तीन हजार रुपए गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया था लेकिन वह पत्नी को यह रकम भी नहीं दे रहा था। जिसके चलते पत्नी को गुजारा भत्ता के लिए बार-बार कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ते थे। पुलिसकर्मी पारिवारिक अदालत में तारीख के दौरान हाजिर भी नहीं होता था। लिहाजा पत्नी ने गुजाराभत्ता बढाने की मांग को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। न्यायमूर्ति अकिल कुरेशी व न्यायमूर्ति एसजे काथावाला की खंडपीठ के सामने पत्नी की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका पर सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने पाया कि सातवें वेतन आयोग के लागू होने के बाद पुलिसकर्मी का मासिक वेतन 55 हजार रुपए के करीब है। जबकि महिला के पास कोई रोजगार नहीं है। महिला का बेटा भी उसके साथ रहता है। जबकि बेटी पुलिसकर्मी के साथ रहती है। इसे देखते हुए खंडपीठ ने पुलिसकर्मी को हर माह 15 हजार रुपए गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। हाईकोर्ट ने गुजराभत्ते की रकम पांच गुना कर दी। गुजारेभत्ते की बढी रकम 1 अगस्त 2019 से लागू होगी। खंडपीठ ने पुलिसकर्मी को बकाया गुजाराभत्ते का भी भुगतान करने का निर्देश दिया है। खंडपीठ ने कहा कि चूंकी पुलिसकर्मी गुजाराभत्ते के भुगतान को लेकर आनाकानी भरी प्रवृत्ति अपनाता नजर आ रहा है। इसलिए हम उसके नियोक्ता (राज्य सरकार) को निर्देश देते हैं कि पहले वह पुलिसकर्मी के वेतन से गुजारे भत्ते की रकम पत्नी के खाते में जमा करे इसके बाद उसे बचे हुए वेतन का भुगतान करे। वर्तमान में पुलिसकर्मी नाशिक की उपभोक्ता अदालत में तैनात है। इसलिए हमारे इस आदेश की प्रति नाशिक पुलिस आयुक्त को भी भेजी जाए। खंडपीठ ने कहा कि पुलिसकर्मी का भले ही किसी भी जगह तबादला कर दिया जाए लेकिन गुजारेभत्ते के संबंध में दिए गए निर्देश में अदालत की अनुमति के बाद बदलाव किया जा सकेगा।
Created On :   7 Aug 2019 9:43 PM IST