नागपुर : परिजनों को देख छलक उठीं कैदियों की आंखें

prisoners sad to meet with family members
नागपुर : परिजनों को देख छलक उठीं कैदियों की आंखें
नागपुर : परिजनों को देख छलक उठीं कैदियों की आंखें

डिजिटल डेस्क, अमरावती.  पापा घर कब आओगे बहुत ही मासूम लहजे में जब यह सवाल जेल में सजा काट रहे अपने पिता से एक बच्चे ने पूछा तो बरबस ही सभी के आंसू छलक पड़े। अमरावती जिला मध्यवर्ती कारागृह में शनिवार की सुबह कैदियों का उनके परिजनों के साथ मनोमिलन का कार्यक्रम आयोजित किया गया। उस वक्त अपने बच्चों को देखकर जेल के कैदी अपने आंसू रोक नहीं पाए। इस समय नन्हे बालक भी अपने पिता को देखकर रो पड़े और घर आने का आग्रह करने लगे। अवसर इतना भाव-विभोर था कि देखने वालों का दिल भर आया। पिता-पुत्र की यह मुलाकात देख मौजूद अन्य कैदी भी अपने आंसू नहीं रोक सके। इसी बीच एक कैदी की बेटी का जन्मदिन भी मनाया गया।

अमरावती कारागृह द्वारा विगत दो वर्ष से कैदी व उनके बच्चों का मनोमिलन कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। कार्यक्रम के लिए वर्हाड संस्था का सहयोग करती है। कारागृह में सजा काट रहे कैदियों में कोई कैदी आजीवन कारावास, 7 साल, 10 साल की सजा भुगत रहा है। ये कैदी अपने बच्चों से मिल नहीं सकते इसलिए कारागृह व्दारा यह कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में 50 कैदियों को उनके बच्चों के साथ मिलाया गया। जिसमें 35 बच्चे अपने पिता को देखते ही रो पड़े और उनके पिता ने भी बच्चों को अपने सीने से लगाने की हसरत पूरी।

कैदियों ने अपने बच्चों को लेकर एक जगह बैठकर उनके साथ भोजन किया तथा जेल में किए गए काम की रकम के जरिए चॉकलेट तथा मिठाई खरीदी और अपने हाथों से अपने बेटे-बेटियों को खिलाया। सजा काट रहे कैदियों से बातचीत करने पर उन्होंने बताया कि हमें जानबूझकर झूठे मामले में फंसाया गया है, उसी की सजा काट रहे हैं। गरीब होने के चलते उच्च न्यायालय तक नहीं पहुंच सकते। जिससे आज हम यहां सजा भुगत रहे हैं। हमारे बच्चे पत्नी व नाना-नानी के भरोसे पल रहे हैं।

बेटी को देख रो पड़ा लक्ष्मण शिंदे: कारागृह में सजा काट रहे लक्ष्मण शिंदे अपनी दोनों पुत्रियों अश्विनी और पूजा को देखते ही अपने आंसू रोक नहीं पाया। शिंदे ने बताया कि 2013 में परिवार के साथ वह अमरनाथ-केदारनाथ यात्रा के लिए गया था। उस वक्त बाढ़ आयी थी। तब एक 2 वर्षीय लड़की उन्हें उन्नाव रेलवे स्टेशन पर मिली थी। इस बच्ची को लेकर रेलवे पुलिस को सौंपने गए तो रेलवे पुलिस ने जबरदस्ती उनकी ही बेटी कह कर उसे सौंप दी। उस वक्त की स्थिति देखकर बेटी को लेकर वह घर आया और वाशिम के पुलिस थाना जाकर संबंधित पुलिस को जानकारी दी। किंतु पुलिस का कहना था कि लड़की बहुत छोटी है, तुम ही इसका पालनपोषण करो। किंतु कुछ दिन बाद बेटी सीढ़ी से गिरने से उसके सिर पर चोट आ गयी, जिसमें उसकी मौत हो गई। यह देखते ही पुलिस पाटील व अन्य लोग मेरे खिलाफ चले गए और हत्या का मामला दर्ज करा दिया। अगर उस छोटीसी मासूम बच्ची को मुझे मारना ही था तो मैं क्यों उसे घर लाता। सरकारी कानून पर मेरा विश्वास नहीं है। मासूम बच्ची की मौत की मैं सजा काट रहा हूं। गरीब होने की वजह से मैं हाईकोर्ट तक नहीं पहुंच सकता, यही मेरी कमजोरी है। फिलहाल मेरी दो बेटियां अपनी मां के पास रहती है। जिसमें बड़ी बेटी अश्विनी खेत का काम करती है तथा छोटी पढ़ाई कर रही है। इस तरह अन्य कैदियों से बातचीत करने पर कई दु:खभरी कहानियां सामने आयी।

पति-पत्नी 6 साल से जेल में
खामगांव निवासी गजानन पारेकर व उनकी पत्नी इंदू हत्या के मामले में विगत 6 साल से सजा काट रहे हैं। उनकी पुत्री सोनू नेत्रहीन है। 10 वीं कक्षा में उसने 62 फीसदी मार्क हासिल किए हैं। सोनू का जन्मदिन होने की वजह से कारागृह में ही उसका जन्मदिन मनाया गया। जेल विभाग की ओर से सोनू को ड्रेस व एक घड़ी भेंट दी गई। सोनू के माता-पिता का कहना है कि उन्हें जानबूझकर इस मामले में फंसाया गया है। कांग्रेस के पूर्व सांसद व केंद्रीय मंत्री रह चुके मुकुल वासनिक के पिता बालकृष्ण वासनिक के खेत में गजानन पारेकर काम करते थे। अपनी पत्नी से छेड़छाड़ करने की वजह से इंगले नामक व्यक्ति से उसका झगड़ा हुआ था। इंगले की मौत हो गई उसने इंगले को नहीं मारा लेकिन सबूत के चलते आज यह सजा भुगतनी पड़ रही है।

Created On :   2 July 2017 2:49 PM IST

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