मौसम की मार से खराब हुई फसलों की गुणवत्ता, पूरा नहीं हो सका खरीद लक्ष्य

Quality of crops damaged by bad weather, Purchasing target not completed
मौसम की मार से खराब हुई फसलों की गुणवत्ता, पूरा नहीं हो सका खरीद लक्ष्य
मौसम की मार से खराब हुई फसलों की गुणवत्ता, पूरा नहीं हो सका खरीद लक्ष्य

डिजिटल डेस्क, मुंबई। प्रदेश में साल 2018 के खरीफ बुवाई के समय मौसम की मार का असर मूंग, उड़द और सोयाबीन की फसलों की गुणवत्ता पर पड़ा है। इसकी वजह से मूंग, उड़द और सोयाबीन की उपज फेयर एवरेज क्वालिटी (एफएक्यू) के मानक पर खरी नहीं उतरने के कारण राज्य में खरीद के लक्ष्य को पूरा नहीं किया जा सका है। राज्य में किसानों से न्यूनतम समर्थम मुल्य पर 3.80 लाख क्विंटल मूंग की खरीदारी की जानी थी। लेकिन 35 हजार 386 किसानों से केवल 1 लाख 87 हजार 693 क्विंटल मूंग खरीदा जा सका। उड़द 3.50 लाख क्विंटल खरीदने का लक्ष्य था लेकिन 20 हजार 70 किसानों से 1 लाख 13 हजार 799 क्विंटल उड़द की खरीद हो सकी। जबकि सोयाबीन 25 लाख क्विंटल की बजाय 1 हजार 27 किसानों से 12 हजार 840 क्विंटल खरीदारी हुई है। प्रदेश सरकार के विपणन विभाग के एक अधिकारी ने ‘दैनिक भास्कर’ से बातचीत में कहा कि बीते साल बारिश नहीं होने के कारण फसलों को ज्यादा पानी नहीं मिल सका। इसका असर अनाज की गुणवत्ता पर पड़ा है। खरीद केंद्र पर आने वाले अनाज एफएक्यू दर्जे का नहीं होने के कारण खरीदारी लक्ष्य को पूरा नहीं किया जा सका है।

किसानों का 53.68 करोड़ रुपए का भुगतान बाकी
प्रदेश में नाफेड और एफसीआई ने मिलकर किसानों से 198.99 करोड़ रुपए की मूंग, उड़द और सोयाबीन खरीदा है। जिसमें से 145.31 करोड़ रुपए किसानों के बैंक खाते में जमा करा दिए गए हैं जबकि 53.68 करोड़ रुपए का भुगतान बाकी है। विपणन विभाग के अधिकारी ने बताया कि अगले सप्ताह तक किसानों के बैंक खाते में बकाया राशि जमा करा दी जाएगी। पिछले साल केंद्र सरकार के फैसले के बाद किसानों को फसलों के उत्पादन खर्च से डेढ़ गुना के आधार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया गया। किसानों को मूंग के लिए 6 हजार 975, उड़द के लिए 5 हजार 600 और सोयाबीन के लिए 3 हजार 399 रुपए प्रति क्विंटल की दर दी गई। मूंग, उड़द और सोयाबीन खरीदने के लिए 216 खरीद केंद्र खोले गए थे। फिलहाल मूंग, उड़द और सोयाबीन की खरीदी बंद कर दी गई है।

कपड़ा उद्योग के करोड़ों रुपए जीएसटी रिफंड में अटके
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) रिफंड न मिलने से कपड़ा उद्योग से जुड़े व्यवसायी परेशान हैं। इन्हीं व्यापारियों की ओर से भारत मर्चेंट चेंबर के अध्यक्ष चंद्रकिशोर पोद्दार ने केंद्रीय वित्त मंत्री को ज्ञापन भेजा है जिसमें व्यापारियों को जल्द से जल्द रिफंड देने की मांग की गई है। दरअसल सिंथेटिक यार्न यार्न पर 12 फीसदी जीएसटी लगता है जबकि कच्चे कपड़े (ग्रे) पर 5 फीसदी जीएसटी देना होता है। सरकार ने छह महीने पहले कपड़ा उद्योग की मांग मानते हुए यार्न और ग्रे के बीच के अंतर को व्यापारियों को वापस करने का फैसला किया था। अगस्त 2018 में एक नोटिफिकेशन जारी करने रिफंड देने की घोषणा की गई थी। सरकार की इस घोषणा से कपड़ा उद्योग से जुड़े लोगों में खुशी की लहर थी लेकिन व्यापारियों को अब तक व्यापारियों, उत्पादकों, पावरलूम मालिकों को किसी तरह का रिफंड नहीं मिला है। जिसके चलते व्यापारियों के करोड़ों रूपए सरकार के पास अटके पड़े हैं। पोद्दार ने अपने खत में वित्त मंत्री से सवाल किया है कि जब सरकार रिफंड का वादा कर चुकी है तो इसमें देरी क्यों की जा रही है। उन्होंने सुझाव दिया कि अगर सरकार कॉटन यार्न और सिंथेटिक यार्न दोनों पर जीएसटी 5 फीसदी कर दे तो पूरा कपड़ा उद्योग एक ही स्लैब में आ जाएगा और सरकार रिफंड की परेशानी से बच जाएगी। व्यापारी भी अपने काम पर ज्यादा ध्यान दे पाएंगे। पोद्दार ने दक्षिण मुंबई से सांसद अरविंद सावंत को भी खत लिखकर सरकार से रिफंड दिलाने में मदद की अपील की है। 

Created On :   27 Jan 2019 1:49 PM GMT

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