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पति से झगड़े के चलते दिया नगरसेवक पद से इस्तीफा, रद्द करने को तैयार हुआ हाईकोर्ट
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने एक महिला नगरसेवक द्वारा से गुस्से में दिए गए अपने इस्तीफे को वापस लेने की अनुमति देने से इंकार कर दिया है और नगरसेवक की याचिका को भी खारिज कर दिया है। भिवंडी महानगरपालिका में कांग्रेस की नगरसेविका फर्जाना इस्माइल रंगरेज ने याचिका में कहा था कि पति से हुए झगड़े के चलते गुस्से में उन्होंने 26 अक्टूबर 2020 को अपना त्यागपत्र महानगरपालिका के आयुक्त के पास भेज दिया था। इसलिए अब उसे अपने त्यागपत्र को वापस लेने की इजाजत दी जाए। किंतु हाईकोर्ट ने नगरसेवक के इस आग्रह को अस्वीकार कर दिया।
न्यायमूर्ति एसजे काथावाला व न्यायमूर्ति रियाज छागला की खंडपीठ ने कहा कि कानून याचिकाकर्ता (नगरसेवक) को सिर्फ इसलिए त्यागपत्र को वापस लेने की इजाजत नहीं देता है। क्योंकि वह गुस्से व अवसाद में थी। खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता के त्यागपत्र के देने के बाद उनकी सीट रिक्त हो गई थी। ऐसे में फिर से त्यागपत्र को वापस लेने के लिए आवेदन करने का कोई औचित्य नहीं है।
याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अतुल दामले ने कहा कि 25 अक्टूबर 2020 को उनके मुवक्किल का घर में झगड़ा हुआ था। दूसरे दिन उन्होंने अपना इस्तीफा दे दिया। लेकिन जैसे ही उनके घरवालों को इस बारे में जानकारी हुई तो उन्होंने मेरे मुवक्किल को समझाया। इसके बाद मेरे मुवक्किल को एहसास हुआ कि उनसे बड़ी गलती हुई है। फिर याचिकाकर्ता ने 3 नवंबर 2020 को मनपा आयुक्त को पत्र लिखकर त्यागपत्र वापस लेने की इजाजत मांगी। पत्र मिलने के बाद मनपा आयुक्त ने मेरी मुवक्किल की बातों को सुना। जिसके बाद याचिकार्ता को लगा उनके आग्रह को स्वीकार कर लिया गया है। किंतु 2 दिसंबर 2021 को मेरे मुवक्किल को उस समय झटका लगा जब उन्हें जानकारी दी गई कि उनका त्यागपत्र स्वीकार कर लिया गया है। इस मामले में मनपा आयुक्त की कार्रवाई मेरे मुवक्किल के खिलाफ दुराश्यपूर्ण नजर आ रही है। सरकारी वकील मौलीना ठाकुर ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि मनपा आयुक्त की कार्रवाई को बदले की भावना से अथवा दुरशायपूर्ण नहीं कहा जा सकता है।
खंडपीठ ने मामले से जुड़े कानून प्रावधानों पर गौर करने के बाद कहा कि यदि निर्वाचित नगरसेवक त्यागपत्र देता है तो कानूनी रुप से उसे तत्काल प्रभाव से स्वीकार किए जाने का प्रावधान है। याचिकाकर्ता ने त्यागपत्र में ऐसा कुछ नहीं लिखा है कि किस तारीख से उनका त्यागपत्र स्वीकार किया जाए। यदि इस तरह की बात होती तो निश्चित तौर पर याचिकाकर्ता को अपना त्यागपत्र वापस लेने की इजजात होती। इस तरह से खंडपीठ ने मामले में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया और याचिका को खारिज कर दिया।
Created On :   22 Feb 2021 7:46 PM IST