हाईकोर्ट ने तीन आरोपियों की फांसी की सजा को उम्र कैद में बदला

Shakti Mill Gangrape - High Court commutes death sentence of three accused to life imprisonment
हाईकोर्ट ने तीन आरोपियों की फांसी की सजा को उम्र कैद में बदला
शक्ति मिल गैंगरेप हाईकोर्ट ने तीन आरोपियों की फांसी की सजा को उम्र कैद में बदला

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने शक्ति मिल में एक महिला प्रेस फोटोग्राफर के साथ सामुहिक दुष्कर्म के मामले में दोषी पाए गए तीन आरोपियों की फांसी की सजा को अजीवन कारावास में बदल दिया है। हाईकोर्ट ने कहा कि अरोपी अपने किए गए अपराध का पश्चापात कर सके। इसलिए उनकी फांसी की सजा को उम्र कैद में परिवर्तित किया जाता है। क्योंकि फांसी की सजा से इन आरोपियों के जीवन का अंत हो जाएग और वे अपने किए गए अपराध का पश्चाताप नहीं कर पाएगे। पश्चाताप की अवधाराण को कायम रखने के लिए आरोपियों की फांसी की सजा को आजीवन कारावास में परिवर्तित किया जाता है। न्यायमूर्ति साधवना जाधव व न्यायमूर्ति पीके चव्हाण की खंडपीठ ने यह बात कहते हुए शक्ति मिल सामुहिक बलात्कार के मामले में फांसी की सजा पाए आरोपी विजय जाधव,मोहम्मद कासिम, व मोहम्मद अंसारी की फांसी की सजा को कायम रखने से इंनकार कर दिया। और तीनों अपराधियों को तउम्र जेल में रखने का निर्देश दिया।

आरोपी समाज में रहने के काबिल नहीं,कभी न किए जाए जेल से रिहा 

खंडपीठ ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि तीनों आरोपियों में सुधार की कोई संभावना नहीं है। ये समाज में रहने के काबिल नहीं है। इसलिए आजीवन कारावास की सजा के दौरान आरोपियों को कभी फर्लो व पैरोल पर भी न छोड़ा जाए। साल 2013 में जब 22 वर्षीय युवती प्रेस फोटोग्राफर के साथ दुष्कर्म की घटना घटी थी। उस समय आरोपी जाधव की उम्र 19 साल,कासिम शेख 21 साल व अंसारी की उम्र 28 साल थी। 

ऐसे मामले में सिर्फ जनाक्रोश पर विचार नहीं कर सकते

फैसला सुनाते समय खंडपीठ ने कहा कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि इस मामले से जुड़े अपराध ने समाज की सामूहित चेतना को झकझोरा है। इस घटना से पूरा समाज स्तब्ध रह गया था। दुष्कर्म का अपराध मानवाधिकारों का उल्लंघन है। दुष्कर्म पीड़िता शारिरिक रुप से ही नहीं मानसिक रुप से आह्त होती है। यह अपराध मानवाधिकार का उल्लंघन है। किंतु इस तरह के मामले में सिर्फ जनाक्रोश व जनता की राय पर ही विचार नहीं किया जाना चाहिए। कोर्ट का दायित्व है कि वह सभी पहलूओं पर निष्पक्षता पूर्वक विचार करे।  कोर्ट कानूनी प्रक्रिया की अनदेखी नहीं कर सकती है। 

मौत पश्चाताप की अवधारणा को खत्म कर देती है

खंडपीठ ने कहा कि मौत पश्चाताप की अवधारणा को खत्म कर देती है। हम यह नहीं कह सकते है कि इस मामले में आरोपी सिर्फ मौत की सजा पाने का हक रखते है। हमे प्रतीत होता है कि आरोपियों को आजावीन कारावास की सजा दी जाए ताकि वे अपने किए गए अपराध का पश्चाताप कर सके। तीनों आरोपी समाज में रहने लायक नहीं है। क्योंकि ये महिलाओं को सिर्फ एक वस्तु के रुप में देखते है। फैसले में खंडपीठ ने कवि खलील जिब्रान के कथन का उल्लेख करते हुए लिखा है कि तुम उन्हें कैसे दंड दोगे जिनका पश्चाताप पहले से उनके कुकर्मों से बड़ा है। इस तरह से खंडपीठ ने आरोपियों की फांसी की सजा को आजावीन करावास में बदल दिया। 

आरोपियों की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता युग चौधरी ने दावा किया था कि निचली अदालत ने गलत तरीके से आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई है। मामले से जुड़ा मुकदमा निष्पक्ष तरीके से नहीं चलाया गया है। जबकि सरकारी वकील ने मामले में आरोपियों की दी फांसी की सजा को न्यायसंगत ठहराया था। साल 2013 के इस मामले में  निचली अदालतन  साल 2014 में तीनों आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई थी। 

Created On :   25 Nov 2021 3:14 PM GMT

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