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घोटाले की अधूरी जानकारी देना सरकार के लिए शर्मनाक : हाईकोर्ट

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने आदिवासी विभाग में साल 2005 से 2010 के बीच हुए 6 हजार रुपए करोड़ रुपए के कथित घोटाले में जुड़े लोगों के खिलाफ कार्रवाई के विषय में अधूरी जानकारी देने पर नाराजगी जाहिर करते हुए इसे सरकार के लिए शर्मनाक बताया है। हाईकोर्ट ने अगली सुनवाई के दौरान आदिवासी विभाग की प्रधान सचिव को स्पष्ट तौर पर यह जानकारी देने को कहा है कि इस मामले में कितनी गिरफ्तारियां हुई हैं। कितनी एफआईआर दर्ज हुई है और कितनों के खिलाफ आरोपपत्र दायर किए गए हैं। आरोपपत्र दायर करने के बाद कितने लोगों के खिलाफ आरोप तय किए गए हैं। अदालत ने यह भी पूछा है कि कितने आरोपी जमानत पर हैं।
प्रशिक्षण शिविर में भेजी जाए प्रधान सचिव
अदालत ने अपने पिछले आदेश में आदिवासी की तरफ से हलफनामा दायर करने को कहा गया था। लेकिन आदिवासी विभाग की प्रधान सचिव मनीषा वर्मा की ओर से पूरी जानकारी वाला हलफनामा न दायर करने से नाराज न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति रियाज छागला की खंडपीठ ने कहा कि आधी-अधूरी जानकारी वाला हलफनामा दायर करनेवाली प्रधान सचिव को प्रशिक्षण शिविर में भेजा जाना चाहिए। ताकि वे हलफनामे के महत्व को समझ सके और मामले से जुड़ी गभीरता का एहसास कर सके। यह हलफनामा आंखो में धूल झोकने जैसा है।
सरकारी अधिकारियों के कामकाज में दखल न दें राजनीतिक आका
इस दौरान खंडपीठ ने कहा कि राजनीतिक आकाओं को भी इस बात का ख्याल रखना चाहिए की वे सरकारी अधिकारियों के कामकाज में दखल न दे। साल 2012 से यह मामला चल रहा है और अभी भी कार्रवाई को लेकर ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। इस तरह के मामले सरकार के लिए शर्म की बात है। इस प्रकरण को लेकर पहले बताया गया था 123 लोगों के खिलाफ 362 एफआईआर दर्ज कराई गई है। लेकिन आज जब खंडपीठ के सामने हलफनामा दायर किया गया तो उसमें बताया गया कि 104 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। कार्रवाई के लिए गृह विभाग से मदद लेने की भी बात कही गई थी। लेकिन हलफनामे में इसका खुलासा नहीं किया गया था कि इस मामले में पूर्व न्यायाधीश एमजी गायकवाड कमेटी की सिफारिश के हिसाब से कितनों की गिरफ्तारी हुई है कितनों के खिलाफ आरोपपत्र दायर किया गया है।
खंडपीठ ने कहा कि अदालत पुलिस व जांच अधिकारी की भूमिका नहीं निभा सकती। सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल साखरे ने कहा कि आदिवासी विभाग की सचिव ने इस मामले में उचित कदम उठाए हैं। लेकिन विस्तरा से हलफनामा दायर करने के लिए एक अवसर दिया दाए। खंडपीठ ने कहा कि सरकार ने मामले से जुड़े उन अधिकारियों से वसूली व पेंशन रोकने की दिशा में कार्रवाई क्यों नहीं की जो सेवानिवृत्त हो गए हैं। खंडपीठ ने फिलहाल मामले की सुनवाई 5 मार्च तक के लिए स्थगित कर दी है ।
Created On :   10 Feb 2020 6:33 PM IST