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गरीब मजदूरों का सहारा बनी साझी रसोई, 5 रुपए में मिल रहा भरपेट भोजन

डिजिटल डेस्क शहडोल । नगर के युवाओं का छोटा सा प्रयास गरीब मजदूरों और रिक्शा चालकों के लिए बड़ा सहारा बन गई है। उनको 5 रुपए में अब भरपेट भोजन मिल रहा है। जेल बिल्डिंग के सामने गरीबों और जरूरतमंदों के लिए शुरू की गई साझी रसोई में दोपहर 12 बजे से तीन बजे तक भीड़ लगी रहती है। यहां रोजाना 200 से 300 लोग भोजन करते हैं।
अन्य शहरों की तरह ही पहले शहडोल में भी दीनदयाल रसोई चलती थी, जहां पांच रुपए में भोजन मिलता था। इसका संचालन नगर पालिका करती थी, लेकिन करीब छह माह से यह बंद है। इसके बंद होने से सबसे ज्यादा दिक्कत गरीब मजदूरों और रिक्शा चलाने वालों को हुई। मार्केट में पांच रुपए का या तो एक समोसा खा सकते थे या फिर चाय पी सकते थे। मजदूरों की इसी समस्या से साझी रसोई की शुरुआत हुई।
इस तरह शुरू हुई साझी रसोई
दीनदयाल रसोई बंद होने के बाद नगर के करीब 10 युवाओं ने जरूरतमंदों के लिए नि:शुल्क भोजन शुरू करने की योजना तैयार की गई। इसके लिए आपस में रुपयों का कलेक्शन किया गया। बाद में विचार आया कि इस व्यवस्था को लंबे समय तक सुचारू रखने और भोजन करने वालों के सामथ्र्य को ध्यान में रखते हुए इसकी दर निर्धारित की जाए। पांच रुपए में भरपेट भोजन कराने पर सहमति बनी और 1 जनवरी 2020 से इसकी शुरुआत कर दी गई। बताया जाता है कि पहले माह में 32 हजार रुपए एकत्र हुए थे। इसके बाद लोग जुड़ते गए और राह आसान होती गई। भोजन बनाने और वितरित करने के लिए चार लोगों को लगाया गया है। इनका वेतन भी आपसी सहयोग से ही निकलता है।
हर दिन बनता है 50 किलो चावल : साझी रसोई का संचालन कर रहे लोगों ने बताया कि हर दिन 50 किलो चावल बनता है। इसके साथ राजमा, कभी छोले तो कभी कढ़ी बनाई जाती है। पांच रुपए का टोकन प्राप्त करने के बाद दोने में भोजन दिया जाता है। पेट भरने तक लोग इसमें चावल व सब्जी ले सकते हैं। युवाओं के उत्साह और प्रयास को देखते हुए नगर के कई लोगों ने सहयोग करना शुरू कर दिया है। इस काम में लगातार लोग जुड़ते जा रहे हैं। कुछ लोग नकद तो कुछ सामग्री में अपना सहयोग करते हैं।
स्पॉन्सर करने लगे लोग
अब स्थानीय लोग बच्चों के बर्थ-डे, वेडिंग एनीवर्सरी व अन्य आयोजनों पर एक दिन का भोजन स्पॉन्सर भी करने लगे हैं। एक दिन के भोजन में करीब 4 हजार रुपए का खर्च आता है। इसके लिए साझी रसोई का संचालन करने वालों को तीन हजार रुपए देने होते हैं। जबकि करीब एक हजार रुपए टोकन से जुटाए जाते हैं। फिर उस दिन का भोजन गुप्त दानदाता के नाम से चलता है। रविवार को किसी दानदाता के सहयोग से ही भोजन की व्यवस्था की गई थी। संचालनकर्ता युवाओं का कहना है कि इस काम वे आत्मसंतुष्टि के लिए कर रहे हैं। उनकी प्लानिंग संभाग के उमरिया और अनूपपुर जिले में भी इसी तरह से साझी रसोई के संचालन करने की है। छह माह तक यहां का संचालन करने के बाद दोनों जिलों में जनसहयोग से ही इसकी शुरुआत की जाएगी।
Created On :   10 Feb 2020 2:42 PM IST