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हाईकोर्ट की फटकार - महिला आयोग के कामकाज को ठप नहीं कर सकती सरकार

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने राज्य महिला आयोग को निष्क्रिय बनाने के लिए राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। हाई कोर्ट ने कहा कि आयोग एक वैधानिक संस्था है। सरकार इसके कामकाज को ठप्प नहीं कर सकती हैं। बुधवार को कोर्ट ने यह तल्ख टिप्पणी आयोग में रिक्त पड़े पदों की बात को जानने के बाद कि। हाईकोर्ट में आरटीआई कार्यकर्ता विहार धुर्वे की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई चल रही हैं। न्यायमूर्ति एस सी धर्माधिकारी व न्यायामूर्ति रियाज छागला की खंडपीठ ने कहा कि आयोग के पास काफी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। वह महिलाओं व उनकी सुरक्षा से जुड़े मुद्दों को खास तौर से देखता है। इसलिए सरकार आयोग को जरूरी सुविधाएं प्रदान करे जिससे वह प्रभावी ढंग से काम कर सके। इससे पहले कोर्ट को बताया गया कि आयोग में सदस्य व काउंसिलर के पद रिक्त हैं। इसके अलावा आयोग में प्रशासकीय स्टाफ के पद भी खाली हैं। सुनवाई के दौरान सरकारी वकील प्रियभूषण काकड़े ने कहा कि सरकार रिक्त पदों को भरने के लिए प्रतिबद्ध है। कुछ पद भरे गए हैं कुछ पदों के स्वरूप में बदलाव किया गया है। इसके साथ ही जरूरी कानूनी प्रक्रिया का पालन करने के बाद जल्द से जल्द आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति की जाएगी। यह काम दो महीने के भीतर करने की कोशिश की जाएगी। उन्होंने कहा कि सरकार ने आयोग की अध्यक्ष विजया रहाटकर का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है। इन दलीलों को सुनने के बाद खडंपीठ ने कहा कि सरकार आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों के अलावा दूसरे रिक्त पदों को भी भरे और आयोग के कामकाज के लिए पर्याप्त जगह भी उपलब्ध कराए।
सुप्रीम कोर्ट की महाराष्ट्र सरकार को खरीखोटी
उधर नई दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मराठा आरक्षण के मसले पर महाराष्ट्र सरकार को खड़े बोल सुनाते हुए मराठा आरक्षण के बारे में दस्तावेजों का समय के भीतर अंग्रेजी में अनुवाद कराने के आदेश दिए। महाराष्ट्र सरकार ने बीते सोमवार को एक पत्र प्रेषित कर इसके लिए 10 हफ्तों का समय मांगा था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को 4 हफ्ते का ही समय दिया है। सुप्रीम कोर्ट में आज इस मुद्दे पर सुनवाई हई कि मराठा छात्रों को मेडिकल पीजी कोर्सेस के एडमिशन में आरक्षण लागू करना है या नहीं। सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने शिक्षा और रोजगार में मराठों को आरक्षण देने के महाराष्ट्र सरकार के कानून को वैध ठहराने के बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से इंकार कर दिया। जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा कि यह मामला लंबे समय से चल रहा है और इसकी विस्तृत सुनवाई की आवश्यकता है। मराठा आरक्षण के विरोध और समर्थन में कई याचिकाएं दायर की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इनकी सुनवाई अब 17 मार्च को होगी। इसके बाद राज्य सरकार को जवाब दाखिल करने या दस्तावेजों के अनुवाद के लिए किसी प्रकार का समय नही दिया जाएगा।
Created On :   5 Feb 2020 9:44 PM IST