दो शिक्षकों ने तकनीक और कला के संगम से किया जिला परिषद स्कूलों का कायापलट

Two teachers transformed Zilla Parishad schools with the confluence of technology and art
दो शिक्षकों ने तकनीक और कला के संगम से किया जिला परिषद स्कूलों का कायापलट
मिलेगा राष्ट्रपति पुरस्कार दो शिक्षकों ने तकनीक और कला के संगम से किया जिला परिषद स्कूलों का कायापलट

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बीड स्थित जिला परिषद स्कूलों के दो शिक्षक शशिकांत कुलथे और सोमनाथ वालके इस बार राष्ट्रपति शिक्षक पुरस्कार पाने वाले 46 शिक्षकों में शामिल हैं। इसके अलावा मुंबई के एक स्कूल की प्रधानाचार्य कविता संघवी भी उन शिक्षकों में शामिल होंगी जिन्हें 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के दिन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों पुरस्कार मिलेगा। बीड़ जिले के जिन दो सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षकों को राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए चुना गया है उन्होंने अपने स्कूलों में आधुनिक तकनीक और कला दोनों का इस्तेमाल कर स्कूलों का कायापलट कर दिया है। सरकारी योजनाओं का पूरा इस्तेमाल और निजी सहयोग से शिक्षकों ने यह कारनामा किया है।  

स्कूल का हर कोना कुछ सिखाता है

वालके ने बीड जिले के आष्टी में स्थित पारगाव जोगेश्वरी के जिला परिषद स्कूल का हर हिस्सा ऐसा बनाया है कि बच्चे यहां से कुछ न कुछ सीख सकें। सरकारी स्कूल में भी सभी संसाधनों का इस्तेमाल कर तकनीक की मदद से आधुनिक बना दिया गया है। स्कूल में टैबलेट कंप्यूर स्मार्ट बोर्ड प्रोजेक्टर जैसे संसाधन मिल जाएंगे। बच्चे स्कूल में रोबोट बनाना और कोडिंग भी सीखते हैं। वालके ने दैनिक भास्कर से बताया कि बच्चों को बेहतर ढंग से सिखाने के लिए मैंने कई तरकीबें आजमाई हैं। स्कूल में रिकॉर्डिंग स्टूडियो बनाया है जहां बच्चे कविताएं गीत स्क्रिप्ट रिकॉर्ड कर सकते हैं। स्कूल में म्यूजिकल क्लासरूम भी है जहां 15 अलग-अलग तरह के वाद्ययंत्र हैं जिन्हें बच्चों को सिखाया जाता है। यहां कविताओं को संगीतबद्ध कर बच्चे सीखते हैं। अपने पाठ्यक्रम से अलग भी उन्हें काफी कुछ सीखने मिलता है। उन्होंने कहा कि मैंने बचपन से ही शिक्षक बनने का सपना देखा था। पढ़ाई के दौरान शिक्षक दिवस पर भी हमेशा बच्चों को पढ़ाता था। मै गरीब परिवार से था इसलिए शिक्षक ही मेरे लिए सबसे बड़े लोग थे जिनसे मेरा परिचय हुआ। इसके बाद उन्हें ही मैंने आदर्श बना लिया। अब तक जिन तीन स्कूलों में काम किया उन्हें नई पहचान दे दी। मुझे जो पुरस्कार मिला है वह सभी का है और इससे मेरी जिम्मेदारी और बढ़ गई है। 

क्यूआर कोड, स्मार्ट पीडिएफ से मनचाही जगह पर पढ़ाई

बीड़ जिले के ही गेवराई तालुका में स्थित दामुनाईक तांडा स्थित जिला परिषद स्कूल का भी कुछ इसी तरह का कायापलट शिक्षक शशिकांत कुलथे ने भी किया है। इस स्कूल में भी बच्चो की सिखाने के लिए नए-नए प्रयोग किए गए। स्कूल मनचाहे समय और जगह पर पढ़ाई कर सकें इसके लिए क्यूआरकोड आधारित स्मार्ट पीडीएफ तैयार किए गए हैं। बच्चों को पढ़ाने के लिए स्लाइड प्रोजेक्टर का इस्तेमाल होता है। तकनीक से लेकर संगीत तक हर विधा में बच्चों को उनकी रुचि के मुताबिक पारंगत किया जाता है। कुलथे ने एमए, एमएड, हिंदी, उर्दू, संगीत में भी महारत हासिल की है। उन्होंने बताया कि मैंने फैसला किया कि पारंपरिक तरीके से अलग हटकर मैं बच्चों को शिक्षा दूंगा जिससे इसमें उनकी रुचि बढ़े। बच्चों के व्यक्तित्व विकास पर भी जोर दिया गया। सिखाने के लिए ऑगमेंटेड फोर डी प्लस फ्लैश कार्ड का इस्तेमाल किया गया। बच्चों के लिए स्कूल की ओर से ब्लॉग बनाया गया है जिसके जरिए बच्चों की कला लोगों तक पहुंचाई जाती है। स्कूल की ओर से पढ़ाई के लिए यूट्यूब पर पाठ्यक्रम आधारित एनिमेटेड वीडियो अपलोड किए गए हैं। इसके अलावा यह स्कूल जिले का पहला तंबाकू मुक्त स्कूल भी बना है। 

नवाचार के को दिया बढ़ावा

मुंबई के विलेपार्ले में स्थित निजी स्कूल चत्रभुज नरसी मेमोरियल (सीएनएम) स्कूल की प्रधानाचार्य कविता संघवी को भी राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए चुना गया है। संघवी ने भी स्कूल के विद्यार्थियों में नवाचार (इनोवेशन) को लेकर उत्साहित किया है। सीएनएम स्कूल को नवाचार के मामले में दुनिया से 10 सबसे बेहतर स्कूलों में चुना जा चुका है। 20 साल से शिक्षा के क्षेत्र में अपना योगदान दे रहीं संघवी कई पुरस्कार जीत चुकीं हैं। 
 

Created On :   26 Aug 2022 9:10 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story