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महाराष्ट्र में संस्कृत के साथ-साथ खोली जाए उर्दू और पाली यूनिवर्सिटी, गड़चिरोली के धार्मिक स्थलों को ऐतिहासिक दर्जे की मांग
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। औरंगाबाद से सांसद सैयद इम्तियाज जलील ने लोकसभा में सेंट्रल संस्कृत यूनिवर्सिटी वियेधक पर चर्चा में भाग लेते हुए संस्कृत को बढावा देने के लिए महाराष्ट्र में एक संस्कृत यूनिवर्सिटी शुरु कराए जाने की मांग उठाई। साथ ही उन्होने संस्कृत की तरह उर्दू और बौद्ध कालीन पाली भाषा को बढावा दिए जाने के लिए अपने संसदीय क्षेत्र में दोनों भाषाओं की भी यूनिवर्सिटी शुरु कराए जाने का सरकार से आग्रह किया। सांसद जलील ने अपनी बात रखते हुए कहा कि सरकार बेशक संस्कृत को बढ़ावा दें, इसमें हम सरकार का पूरा साथ देंगे, लेकिन अफसोस की बात यह है कि इस देश में जबान को भी मजहब के साथ जोड़ दिया है। उन्होने कहा कि यह इसलिए कहना पड़ रहा है कि संस्कृत के विधेयक पर बोलने के लिए सेंट्रल हॉल में जब मै बैठकर कुछ लिख रहा था तब महाराष्ट्र के ही एक सहयोगी सांसद मेरे पास आए और उन्होने हंसते हुए कहा कि आपका संस्कृत से क्या ताल्लुक है। जलील ने कहा कि केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री निशंक पोखरियाल के अनुसार 100 देशों में 250 विश्वविद्यालय हैं, जहां संस्कृत बोली जाती है। देश में संस्कृत बोलने वाले लोगों की संख्या को पेश करते हुए जलील ने सरकार के समक्ष सवाल भी उठाया कि अपने देश में संस्कृत की हालत ऐसी क्यों हो गई है? वर्ष 2001 के सेन्सस के मुताबिक देश में संस्कृत बोलने वाले महज 14,000 लोग थे। 2011 में हुई जनगणना में देश में संस्कृत बोलने वाले महज 24,821 ऐसे थे, जिन्होंने अपने नाम से पंजीकरण कराया था कि हम संस्कृत बोलते, लिखते और पढते है। हालांकि 10 साल में 10 हजार लोग बढे है, लेकिन प्रतिशत की बात करें तो इतने बड़े देश में सिर्फ 0.00198 लोग ही संस्कृत जानते है। उन्होने सदन में इस बात को भी साझा किया कि मेरी पत्नी मुसलमान होने के बावजूद भी संस्कृत इतनी अच्छी तरह से जानती है कि वह पुणे शहर में संस्कृत का ट्यूशन लेती है। उन्होने सरकार से संस्कृत के साथ-साथ ढाई हजार साल पुरानी पाली जबान को भी बढावा देने का आग्रह करते हुए कहा कि भगवान बुद्ध और भगवान महावीर का सारा लिट्रेचर पाली में है। लेकिन अफसोस की बात है कि सिंगापुर, थाईलैंड में लोग आज भी पाली भाषा पढ रहे हैं और इसी देश की इस प्राचीन भाषा को खत्म कर दिए हैं। औरंगाबाद में बुद्धिस्ट का एक बड़ा केन्द्र है। इसलिए संस्कृत जिस तरह से पुनर्जिवित करने का प्रयास किया जा रहा है उसी तरह पाली भाषा का भी शहर में एक विश्वविद्यालय शुरु किया जाए।
वैगन रिपेयर वर्कशॉप के निर्माण कार्य की जांच के लिए कमेटी गठित की जाए
अमरावती से सांसद नवनीत राणा ने लोकसभा में अपने संसदीय क्षेत्र में निर्माणाधीन वैगन रिपेयर वर्कशॉप का कार्य लंबित होने की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित किया। विशेष उल्लेख के तहत इस मुद्दे को उठाते हुए उन्होने इस परियोजना के निर्माण में देरी के लिए इंन्फास्ट्रक्टचर कंपनियों को जिम्मेदार ठहराया। सांसद राणा ने सरकार से मांग की कि इन कंपनियों के कामों की जांच के लिए एक कमेटी गठित करके इनके कामों का परीक्षण कराया जाए। राणा ने सदन को बताया कि 2014 में प्रारंभ हुई इस परियोजना को वर्ष 2020 तक पूरा करने की समय सीमा तय की थी, लेकिन इसका अभी तक 60 प्रतिशत भी काम पूरा नही हुआ है। जबकि इसमें विक्रम इंन्फास्ट्रक्टचर, प्रेमको कंपनी के अलावा अन्य कंपनियां काम कर रही है। सांसद राणा ने इस दौरान सरकार को यह भी याद दिलाई कि इसमें कई किसानों की जमीन गई है। रेलवे विभाग ने वादा किया था कि परियोजना का काम शुरु होने के पहले ही किसान परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाएगी। वर्कशॉप का न तो अब तक काम हुआ है और न ही किसी को नौकरी मिली है।
गड़चिरोली क्षेत्र के धार्मिक स्थलों को ऐतिहासिक स्थलों का मिले दर्जा
गड़चिरोली से सांसद अशोक नेते ने लोकसभा में अपने संसदीय क्षेत्र में पर्यटन को बढावा दिए जाने की ओर सरकार ध्यान आकर्षित किया। उन्होने सरकार से मांग की कि जिले में कई धार्मिक स्थल हैं जिन्हे ऐतिहासिक स्थल घोषित किया जाए ताकि क्षेत्र में बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर हो सके।
विशेष उल्लेख के तहत इस मुद्दे को उठाते हुए उन्होने कहा कि क्षेत्र में जल, वन और खनिज संपदा से संपन्न है, लेकिन आज भी यह अविकसित क्षेत्र है और नक्सल प्रभावित भी। सांसद नेते ने कहा कि रोजगार के अभाव में यहां के युवा गल़त राह अख्तियार कर रहे है। इसलिए यहां के धार्मिक स्थलों जैसे मार्कण्डेय महादेव मंदिर, चपरला मंदिर, कालेश्वर मंदिर, बैरागढ़ शारदा माता पीठ, अर्कतुंडी, कचारगढ़, रामदेगी और गायमुख आदि को ऐतिहासिक स्थल घोषित कर पर्यटन को बढावा दिया जाए। इससे युवाओं को बडे पैमाने पर रोजगार मिलेगा और वे राष्ट्र के विकास की मुख्यधारा में जुड़ जायेंगे।
ओबीसी जाती आधारित जनगणना कराई जाए, धानोरकर ने उठाई मांग
इसके अलावा चंद्रपुर से सांसद सुरेश धानोरकर ने लोकसभा में जनगणना का मसला उठाते हुए वर्ष 2021 में होने वाली जनगणना की प्रश्नावली के कॉलम में ओबीसी (वीजे, एनटी, डीएनटी, एसबीसी) का उल्लेख नही होने की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित किया। विशेष उल्लेख के तहत इस मसले को उठाते हुए सांसद धानोरकर ने कहा कि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की संख्या देश में सबसे अधिक है, लेकिन किसी भी सरकार द्वारा अभी तक ओबीसी की जाती निहाय जनगणना नही कराई गई है। देश में पहली बार 1931 में कराई गई जनगणना के आधार पर 52 प्रतिशत ओबीसी थे। इस जनगणना के आधार पर तैयार की गई मंडल आयोग की सिफारिशों के आधार पर ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है। धानोरकर ने कहा कि जनगणना 2021 के लिए बीते अगस्त और सितंबर 2019 में पूर्व परीक्षण (प्री टेस्ट) हुआ था, लेकिन इसके लिए जो प्रश्नावली तैयार की गई थी उसके कॉलम 13 में ओबीसी का उल्लेख ही नही है।
Created On :   14 Dec 2019 2:38 PM IST