यौन उत्पीड़ित की पहचान सोशल मीडिया में सार्वजनिक होने के मामले में क्या कार्रवाई करेगी सरकार

What action will government take in case the identity of sexually harassed goes public on social media
यौन उत्पीड़ित की पहचान सोशल मीडिया में सार्वजनिक होने के मामले में क्या कार्रवाई करेगी सरकार
यौन उत्पीड़ित की पहचान सोशल मीडिया में सार्वजनिक होने के मामले में क्या कार्रवाई करेगी सरकार

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को ऐसे मामले में अपना रुख स्पष्ट करने को कहा है जिसमें सोशल मीडिया के प्लेटफार्म फेसबुक, ट्विटर व गूगल के सर्च इंजिन में यौन उत्पीड़न का शिकार पीड़िता की पहचान को सार्वजनिक किया जाता है। हाईकोर्ट ने कहा कि हम जानना चाहते है कि सरकार इस मामले में क्या कार्रवाई करेगी। क्योंकि यौन उत्पीड़न की शिकार पीड़िता की पहचान को सार्वजनिक करना भारतीय दंड संहिता की धारा 228ए के तहत अपराध है। और इसके अंतर्गत दो साल की सजा का प्रावधान किया गया है। हाईकोर्ट में यौन उत्पीड़न की शिकार एक पीड़िता की ओर से दायर की गई जनहित याचिका पर सुनवाई चल रही है। याचिका में मांग की गई है कि केंद्र व राज्य सराकर को उस कानून के प्रावधानों को कडाई से लागू करने का निर्देश दिया जाए जिसके तहत दुष्कर्म पीड़िता की तस्वीर व पहचान को सार्वजनिक करने पर प्रतिबंध लगाया गया है। शुक्रवार को न्यायमूर्ति आरवी मोरे व न्यायमूर्ति सुरेंद्र तावड़े की खंडपीठ के सामने यह याचिका सुनवाई के लिए आयी। इस दौरान याचिकाकर्ता की वकील माधवी तवनंदी ने कहा कि यौन उत्पीड़न का शिकार पीड़िता की पहचान को सार्वजनिक करना भारतीय दंड संहिता की धारा 228ए के तहत संज्ञेय अपराध है। इसके तहत दो साल तक के कारावास की सजा का प्रावधान है। इस दौरान उन्होंने पिछले दिनों हैदारबाद में एक महिला डाक्टर के साथ हुए दुष्कर्म के मामले का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि इस मामले में पीड़िता की तस्वीर बड़े पैमाने पर ट्विटर व सोशल मीडिया के दूसरे मंचों पर बिना किसी खौफ के डाली गई। अभी भी इस प्रकरण से जुड़ी पीड़िता की पहचान को सार्वजनिक करनेवाली जानकारी आनलाइन सोशल मीडिया के माध्यमों में उपलब्ध है। इसे हटाए जाने का निर्देश दिया जाना जरुरी है। इन दलीलों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि  हम जानना चाहते है कि सरकार इस मामले में क्या कार्रवाई करेगी। इस दौरान खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को यूएस स्थित गूगल एलएलसी,ट्विटर आईएनसी व फेसबुक आईएनसी को पक्षकार बनाने को कहा। क्योंकि खंडपीठ को बताया गया कि भारत स्थित इन कंपनियों की शाखाए सिर्फ मार्केटिंग व विज्ञापन के मुद्दे को देखती है। सोशल मीडिया में क्या कंटेट आ रहा है।यह उनके नियंत्रण में नहीं है।

डंपिंग ग्राउंड के विस्तार से फ्लेंमिंगो पक्षी का अभ्यारण तो नहीं प्रभावित होगा

वहीं बांबे हाईकोर्ट ने मुंबई स्थित कांजूरमार्ग डंपिग ग्राउंड के प्रस्तावित विस्तार से पड़नेवाले विपरीत असर को लेकर राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी शोध संस्थान(निरी) व बांबे नेच्युरल हिस्ट्री सोसायटी से रिपोर्ट मंगाई है। हाईकोर्ट ने इन दोनों विशेषज्ञों को अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट करने को कहा है कि कही डंपिंग ग्राउंड के विस्तार से कांजुरमार्ग स्थिति फ्लेमिंगो पक्षी के अभ्यारण पर तो प्रतिकूल असर नहीं पड़ेगा। खंडपीठ ने निरी व सोसायटी को दो सप्ताह के भीतर अपनी अध्ययन रिपोर्ट पेश करने को कहा है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश बीपी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति एनआर बोरकर की खंडपीठ ने यह निर्देश वनशक्ति नामक गैर सरकारी संस्था की ओर से दायर की गई जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद दिया। याचिका में डंपिंग ग्राउंड के विस्तार से जुड़े प्लान का विरोध किया है। प्रस्तावित विस्तार प्लान के अंतर्गत डंपिग ग्रांउड को 65 हेक्टर से बढाकर 121 हेक्टर में करने की योजना बनाई गई है। याचिका में इसे सीआरजेड के नियमों के खिलाफ बताया गया है। याचिका में दावा किया गया है कि इस योजना से पर्यवरण पर विपरीत असर पड़ेगा इसके साथ इसका ठाणे की खाडी के निकट फ्लेमिंगो के अभ्यारण को भी काफी क्षति पहुंचेगी।

नई टैरिफ नीति पर क्या एक माह रुक सकता है अमल

उधर बांबे हाईकोर्ट ने भारतीय दूर संचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) से जानना चाहा है कि क्या केबल चैनल की तय की गई नई दर (टैरिफ रेट पालिसी) के अमल को एक माह के लिए टाला जा सकता है। हाईकोर्ट में ट्राई की नई टैरिफ नीति के खिला इंडियन ब्राडकास्टिंग फाउंडेशन की ओर से दायर की गई याचिका पर सुनवाई चल रही है।  ब्राडकास्टिंग फाउंडेशन टीवी ब्राडकास्टर की प्रतिनिधि संस्था है। ट्राई ने दिसंबर 2019 उपभोक्ताओं के हित को ध्यान में रखते हुए टैरिफ दर से जुड़े नियमों में संसोधन किया है। जिसके खिलाफ इंडियन ब्राडकास्टिंग फाउंडेशन व अन्य संस्थानों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका में ट्राई के निर्णय को मनमानीपूर्ण व असंवैधानिक बताया गया है। इसके साथ ही दावा किया गया है कि यह ब्राडकास्टर के कारोबार करने के मौलिक अधिकारों का हनन करता है। बुधवार को न्यायमूर्ति एए सैय्यद की खंडपीठ के सामने यह याचिका सुनवाई के लिए आयी। इस दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने खंडपीठ के सामने एक याचिकाकर्ता की ओर से पक्ष रखा। इन दलीलों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि क्या नई टैरिफ दर को एक माह के लिए अमल में लाने से रोका जा सकता है। ताकि कोर्ट इस मामले की सुनवाई पूरी कर सके। अन्यथा हमे इस मामले में अंतरिम आदेश जारी करना पड़ेगा। गुरुवार को भी इस मामले की सुनवाई जारी रहेगी।  

Created On :   26 Feb 2020 8:04 PM IST

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