कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न मामले में अब तक केंद्र सरकार ने क्यों नहीं दिया जवाब

Why the central government has not yet responded in the case of sexual harassment at the workplace
कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न मामले में अब तक केंद्र सरकार ने क्यों नहीं दिया जवाब
हाईकोर्ट ने पूछा कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न मामले में अब तक केंद्र सरकार ने क्यों नहीं दिया जवाब

डिजिटल डेस्क, मुंबई। कार्यस्थल पर महिलाओं को यौन उत्पीड़न से जुड़े मामलों को देखने के लिए निजी क्षेत्र की विभिन्न ईकाइयों में बनाई जानेवाली कमेटी के सदस्यों को सरंक्षण देने की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका पर केंद्र सरकार के महिला व बाल विकास विभाग की ओर से अब तक जबाव क्यों नहीं दिया गया हैॽ सोमवार को बांबे हाईकोर्ट ने यह सवाल किया। इससे पहले अधिवक्ता आभा सिंह ने इस मामले में केंद्रीय महिला व बाल विकास विभाग के उदासीन रवैए की जानकारी मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति गिरीष कुलकर्णी की खंडपीठ को दी। उन्होंने खंड़पीठ को बताया कि हाईकोर्ट ने काफी पहले इस मामले में केंद्र सरकार को जवाब देने को कहा था लेकिन अब तक कोई जवाब नहीं आया है। इस बात को जानने के बाद खंडपीठ ने अप्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि अब तक याचिका के जवाब में हलफनामा क्यों नहीं दायर किया गया है। 

इस विषय पर एक निजी क्षेत्र की कंपनी की पूर्व अधिकारी जानकी चौधरी ने याचिका दायर की है। याचिका  के मुताबिक कार्यस्थल पर महिला यौन उत्पीड़न प्रतिबंधक अधिनियम 2013 में कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न से जुड़ी शिकायतों का निपटारा कैसे किया जाए इस बारे में प्रावधान किया गया है। इस कानून के तहत कंपनी के नियोक्ता को आतंरिक शिकायत कमेटी (आईसीसी) जबकि राज्य सरकार को स्थानीय शिकायत कमेटी बनाने के लिए अनिवार्य किया गया है। लेकिन आतंरिक कमेटी को कार्यस्थल से जुड़े मामले को निष्पक्ष तरीके से जांच व सुनवाई करने का दायित्व सौपा गया है। एक तरह से यह कमेटी सीविल कोर्ट व अर्ध-न्यायिक प्राधिकरण की तरह काम करती है लेकिन कमेटी के सदस्यों को कोई संरक्षण नहीं दिया गया है। जबकि सार्वजनिक क्षेत्र के निकायों की आंतरिक शिकायत कमेटी के सदस्यों को पर्याप्त संरक्षण मिला हुआ है। यह भेदभावपूर्ण है। 

याचिका में कहा गया है कि निजी क्षेत्र की कमेटी की स्थिति बेहद दयनीय है। जबकि सार्वजनिक क्षेत्र की कमेटी सदस्यों का एक तय कार्यकाल है। उन्हें मनमाने तरीके से नौकरी से नहीं निकाला जा सकता है। वे निर्भिक होकर कानून के प्रावधानों के तहत कार्य करती हैं। याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता की ओर से एक पत्र के माध्यम से इस विषय पर केंद्रीय महिला व बाल विकास मंत्रालय का भी ध्यानाकर्षित कराया गया है लेकिन वहां से कोई सकारत्मक प्रतिसाद नहीं मिला है। इस लिए इस मामले को लेकर कोर्ट में याचिका दायर की गई है। याचिका पर अब 12 अगस्त 2021 को सुनवाई रखी गई है। 
 

Created On :   9 Aug 2021 10:37 PM IST

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