- Home
- /
- राज्य
- /
- महाराष्ट्र
- /
- अमरावती
- /
- कला और संस्कृति का अद्भुत नमूना है...
कला और संस्कृति का अद्भुत नमूना है अमरावती का 'हेमाड़पंथी मंदिर'

डिजिटल डेस्क,अमरावती। शहर के दर्यापुर के पास स्थित हेमाड़मंथी मंदिर इतिहास और संस्कृति का नायब नमूना है। इसकी भव्यता किसी को भी आश्चर्य में डालने के लिए काफी है। बताया जाता है कि 12वीं सदी में यादव राज्य के काल में देवगिरी राज्य के प्रधान हेमाद्रि ने यहां पर भव्य शिवालय का निर्माण करवाया था।
शहर के पश्चिमी छोर पर करीब 12 किमी दूरी पर स्थित ग्राम लासूर पूर्णा नदी के तट पर बसा हुआ है। दूर से किले की तरह प्रतीत होने वाला ये ऐतिहासिक मंदिर स्थापत्य कला का एक बेजोड़ नमूना है। 3500 स्क्वेयर फीट का अति भव्य पत्थरों से निर्मित यह मंदिर किसी भव्य किले की तरह नजर आता है। यहां के प्राचीन,भव्य और ऐतिहासिक शिवालय पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। लासुर का यह प्राचीन ऐतिहासिक गुंबज बाहर से गोलाकार प्रतीत होता है, लेकिन इसमें प्रवेश करने के लिए संकरा और कम ऊंचाई का द्वार बना हुआ है। इस द्वार से प्रवेश करते ही स्तंभ पर शिल्पकारों की नक्काशी अचंभित कर देती है। मंदिर के गर्भगृह में शिवजी की छोटी सी प्रतिमा रखी हुई है जिसकी आज भी विधि विधान से पूजा-अर्चना होती है।
खास बात ये है कि इस मंदिर में सूरज से आने वाली प्रकाश व्यवस्था को देख वर्तमान दौर के विशेषज्ञ अभियंता भी अचरज में पड़ जाते हैं। प्रकाश व्यवस्था इतनी सुनियोजित तरीके से की गई है कि मंदिर के भीतरी इलाके में ऊपर की उस खुली जगह से कोने-कोने तक प्रकाश पहुंचता है। इस गुंबद की परिक्रमा करते समय हर जगह कारीगरों की निर्मित एक से बढ़कर एक नक्काशियां दिखाई देती हैं।
अजंता-एलोरा की तरह शिल्प
बताया जाता है कि हेमाड़पंथी आनंदेश्वर मंदिर लासुर जागृत देवस्थान है। अजंता-एलोरा के 7 और 8 नंबर की गुफा में जिस प्रकार के शिल्प बनाए गए हैं, उसी तरह के शिल्प यहां देखने को मिलते हैं। एक के ऊपर एक पत्थरों को रखकर इस मंदिर का निर्माण कार्य किया गया है। ऊपर से स्वस्तिक आकार वाले इस शिवालय का गुंबद नहीं है,लेकिन मंदिर के अंदर और सभागृह में भरपूर प्रकाश होने के कारण बीच का सभामंडप खुला रखा गया है। प्रवेश द्वार के सामने एक भव्य चबूतरा और दो छोटे चबूतरे बने हुए हैं। मंदिर के पूर्व और पश्चिम दिशा में हरे भरे पेड़ हैं तथा मंदिर की दक्षिण दिशा में दो फर्लांग की दूरी पर पूर्णा नदी है। इस मंदिर के चारों ओर प्रशस्त प्रदक्षिणा मार्ग होने के साथ ही इस ऊंचे प्रदक्षिणा मार्ग पर खड़े रहने पर आसपास के छोटे-छोटे गांवों का दृश्य और प्राकृतिक सौंदर्य मन को आनंदित कर देता है।
सूर्योदय व सूर्यास्त का मनोरम दृश्य
यहां से सुबह के समय सूर्योदय और शाम के समय सूर्यास्त का मनोरम दृश्य देखते ही बनता है। शिवालय के अंदरुनी हिस्से में खुले 12 और दीवार में 6 कुल 18 स्तंभ हैं। प्रत्येक स्तंभ पर नक्काशीदार शिल्पकारी दिखाई देती है जो कि हमारे देश की समृद्ध कलात्मकता की गवाही दे रहे हैं। मंदिर के भीतरी तथा बाहरी दीवारों पर भूमितीय आकृतियां, फूल, फल तथा आलेख पध्दति का इस्तेमाल किया हुआ नजर आता है। आकृतियों की आकार की रचना परिपक्व और परिणत है। छत पर राधा-कृष्ण, गोपियों का नृत्य, गोधन एवं दीवारों पर हाथी, घोड़े, मदारी, गौपालक, नर्तक, भक्तगण, बंदर, हनुमान, गणेशजी तथा भगवान कृष्ण आदि की कलाकृतियां तथा शोभायात्रा की पंक्तियों को उकेरा गया है। मंदिर की बाहरी दीवारों पर विष्णु, शिव, ब्रह्मा, राधा-कृष्ण, गोवर्धन की मूर्तियों का निर्माण किया गया है।

Created On :   20 Sept 2017 11:09 AM IST