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पन्ना: घर घर हुआ देवी लक्ष्मी जी का जोरदार स्वागत, सुबह होते ही नाच उठी दिवारी
डिजिटल डेस्क, पन्ना। पूरे देश के साथ दीपावली पन्ना जिले में उत्साहपूर्वक मनाया गया। घरों में धन वैभव समृद्धि की देवी लक्ष्मी जी की पूजा की और रोशनी के दीपकों से पूरा शहर जगमगा उठा। रंग-बिरंगी आतिशबाजी से दूर-दूर तक अमावस्य की काली घटायें गायब हो गयी और आसमान सतरंगी होकर चमकने लगा। पटाखें चलाकर उत्साह पूर्वक देवी लक्ष्मी जी का स्वागत हुआ। दीपावली की रात में पन्ना शहर के मंदिरों की छटा भव्य हो गयी। हजारों की संख्या में श्रद्धालु भगवान जुगल किशोर जी सरकार के दर्शन करने के लिये पहुंचते रहे। रात के वक्त भव्य रोशनी के सजे मंदिर में दीपोत्सव शुरू हुआ। भगवान की परम्परागत तरीके से विशेष पूजा अर्चना की गयी। एक दीपक श्रृद्धा का जुगल किशोर सरकार के मंदिर में रखने के लिये हर घर से श्रृद्धालु पहुंचे हजारों दीपक की बतियो से भगवान जुगल किशोर जी मंदिर का दरबार जगमागा उठा।
नगर के अन्य मंदिरों मां फूला देवी मंदिर, श्रीराम जानकी मंदिर, गोविन्द जी मंदिर, बल्देव जी मंदिर, संकट मोचन शिव साई हनुमान जी मंदिर, जगन्नाथ स्वामी बड़ा दिवाला मंदिर सहित नगर के अन्य मंदिरों में हजारों की संख्या में श्रृद्धालु दर्शन करने व दीपदान करने के लिये पहुंचे। पन्ना के प्रसिद्ध जुगल किशोर जी मुरलिया वाले के दरबार में घर-घर से पहुंचे दीपकों की रोशनी से मंदिर की आभा निखर उठी। दिवाली की रात से ही पहुंचे गवालों ने देवी लक्ष्मी जी के स्वागत और सम्मान करते हुये भगवान जुगल किशोर जी मुरलिया वाले की अराधना करते हुये दिवारी नाच कर कर्तव्य दिखाये और आज गोवर्धन पूजा के दिन की शुरूआत १२ वर्ष की साधना के नृत्य दिवारी की शुरूआत हुयी। जिसमें गवालों के थिरकने से मुरलिया वाले की नगरी पन्ना नाच उठी।
१२ वर्ष की साधना का नृत्य है दिवारी
भगवान श्रीकृष्ण के ग्वालों के साथ गांये चराने जाते थे जगत के नाथ भगवान श्रीकृष्ण ग्वालों के सखा थे। ग्वाल बाल भगवान श्रीकृष्ण के साथ अपार स्नेह था। गोकुल में इन्द्र द्वारा की जानी वाली भारी बारिश से रक्षा के लिये भगवान ने गोवर्धन पर्वत उठाया था। गोवर्धन पर्वत उठाकर ग्वाल बालों की रक्षा करने के लिये भगवान के लिये स्नेह के साथ समर्पण और साधना का नृत्य है दिवारी नृत्य। दिवारी नृत्य के बोलों में बुन्देलखण्ड की संस्कृति की छाप छिपी हुई है और ढोलक तथा नगडिय़ा की थाप के साथ ही सहसा नांचने का मन सभी का उठ जाता है। बुन्देलखण्ड में दिवारी का नृत्य समूचे क्षेत्र में बेहद ही लोकप्रिय है। भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति के भाव को लेकर दीपावली नृत्य के साथ ही ग्वालों की बारह वर्ष की साधना इसमें निहित हो जाती है। मौनी नृत्यकार बारह वर्ष पूरे होने पर वृदंावन पहुंचते है और वहां भगवान श्री कृष्ण के दर्शन एवं पूजा अर्चना करने के बाद बारह वर्ष में श्रीकृष्ण को भेंट करने के लिये भारक मूठा समर्पित करते है।
सूर्याेदय से पहले नारियल बांधकर शुरू हुआ मौनियों का व्रत
दीपावली के दूसरे दिन सूर्याेदय से पहले मौनियों की टोली को धार्मिक स्थल में पूजा के साथ पंडित गांठी में नारियल बांधकर दिन भर मौन रहने और भगवान श्रीकृष्ण की साधना के लिये दिवारी नृत्य करने का संकल्प दिलाता है। मौनियों की इस टोली का नेतृत्व बरेदी करता है जो कि ग्वाल जाति का होता है बरेदी की जिम्मेेदारी दिवारी नृत्य में नांचने वाले मौनियों की पानी तथा अन्य व्यवस्थाओं की होती है तथा आवश्यकतानुसार वह उनके संकेतों को समझकर आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। दीवारी नृत्य की टोली में गायन तथा वादक यंत्रों ढोलक, नगाड़ा, झींगा, मजीरा बजाने वालों का समूह होता है और मौन व्रत के संकल्प के साथ ही पंडित के मार्गदर्शन में दिवारी आंगे बढ़ती है। जिसमें दिन भर के लिये यह संकल्प होता है कि सात गांव में पहुंच कर वह गांवों की परिक्रमा करेगें और वहां पर भगवान के दर्शन करेगें। दिन भर अपना यह संकल्प पूरा करने के साथ ही गौधुली बेला जब सूर्यास्त होता है मौनियों की टोली जहां भी होती है वहां पर पुजारी गांठी में बांधा गया नारियल छुड़ाता है और पूजा अर्चना के बाद व्रत तोड़ता है।
प्यास लगी तो गौमाता बनकर विधान के साथ पीते है पानी
भगवान श्री कृष्ण की आराधना के लिये दीवली नृत्य साधना का व्रत रखने वाले ग्वाल बाल सुबह से मौन धारण के साथ व्रत की शुरूवात करते है और दिन भर देव स्थलों में पहुंचकर भगवान के दर्शन दीवारी नृत्य की प्रस्तुति करते हुये प्राप्त करते है। इस दौरान यदि मौनी ग्वाल को प्यास लगती है तो इसकी अनुमति वह बरेदी से प्राप्त करता है बरेदी की निर्देशन में मौनी ग्वाल को जिस तरह गौमाता पानी पीती है उसी तरह पानी पिलाये जाने की विधि अपनाई जाती है। पीतल के कूपर में पीने के लिये पानी भरकर रख दिया जाता है मौनी ग्वाल अपने दोनो हाथ बंधवा लेता है और पशु की तरह बरेदी द्वारा पूजा विधि के साथ पानी पीने की अनुमति दी जाती है। सीधे झुक कर कूपर में रखा हुआ पानी से मौनी अपनी प्यास बुझाता है। बरेदी बताते है कि भगवान श्री कृष्ण ने गाय चराई थी और पानी पीने की इस विधि में गौमाता और भगवान श्री कृष्ण के संबंधों का भाव छिपा है।
मौनी हर साल जोड़ता है पांच मोर पंख
दिवारी नृत्य के साथ ग्वाले मौनी जो मोर पंख लेकर नांचते है ग्वाले यह पंख आमतौर पर जंगलों में गाय चराने के दौरान जब पहुंचते है और उन्हे वहां पर मोर के नांचने से जो गिरे पंख मिलते है उन्हे जुटाते है। दिवारी नृत्य शुरू करने वाला मौनी टोली का हर सदस्य पहले साल पांच मोर पंख लेकर नृत्य करता है और हर साल पांच और मोर पंख उसके भारक में जुड़ते जाते है इस तरह कुल बारह साल में भारक में साठ मोर पंख इक_े हो जाते है। इन्ही इक_े हो चुके मोर पंख को दिवारी रखने वाला मौनी वृंदावन में भगवान को समर्पित करता है।
सोमवती अमावस्या पर महिलाओं ने की परिक्रमा
दीपावली के दूसरे दिन सोमवती अमावस्या होने के कारण महिलाओं द्वारा सुबह से स्नान आदि कर अपने घर में तुसली के चारों और विभिन्न प्रकार की वस्तुओं की १०८ परिक्रमा की। इसके अलावा कुछ महिलाओं द्वारा भगवान श्री जुगल किशोर मंदिर पहुंचकर भी परिक्रमा की जिसे स्थानीय बुंदेलखण्डी भाषा में भौंरी कहा जाता है।
Created On :   14 Nov 2023 2:22 PM IST