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भौतिकवादी संस्कृति के विकास ने बदला योग के प्रति दृष्टिकोण: ब्रह्मकुमारी
डिजिटल डेस्क, पन्ना। योग हमारी संस्कृति एवं दिनचर्या का प्राचीनकाल से अभिन्न अंग रहा है परंतु भोैतिकवादी संस्कृति के विकास के साथ योग के प्रति दृष्टिकोण बदल गया है। मनुष्य स्वयं की आत्मा की भूलकर शरीर समझने लगा है उक्त आशय की बात ब्रह्मकुमारी बहिन जी द्वारा ब्रह्मकुमारी विद्यालय पन्ना में आयोजित कार्यक्रम के दौरान कही गई। उन्होंने आगे कहा कि योग के नाम पर शरीर को निरोग बनाने वाले विभिन्न शारीरिक योगासन, शारीरिक मुद्रायें और हठ योग प्रचलित हो गए है आज ऐसे योग की आवश्यकता है जो इस भौतिक शरीर को संचालित करने वाली चैतन्य सत्ता ’आत्मा’ को स्वस्थ और पवित्र बनाते हुए परमात्मा से मिलन कराकर सच्ची सुख-शांति और खुशी की अनुभूति करा सके।
राजयोग का साप्ताहिक कोर्स करने तथा कुछ दिनों तक इसका नियमित अभ्यास करने से जीवन में मानसिक तनाव, दु:ख, निराशा, सम्बंधों में टकराव इत्यादि सभी समस्याओं के उत्पन्न होने का मूल कारण स्पष्ट रूप से समझ में आ जाता है। ब्रह्माकुमारी संस्था में सिखाया जाने वाला राजयोग भारत का सबसे प्राचीन और परमात्मा द्वारा सिखाया जाने वाला योग है। यह आत्मा में व्याप्त दु:ख और पाप के पांच मूल कारणों काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार को दूर करने वाला एकमात्र योगाभ्यास है। वर्तमान समय में ऐसे ही योगाभ्यास की आवष्यकता है। जो मनुष्य के मन को स्वस्थ और निरोग बना सके। श्रीमद भगवत गीता में एक बात बहुत ही स्पष्ट रूप से कही गई है मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु और सबसे बड़ा मित्र उसका मन ही होता है। सभी भाई बहनों ने प्रतिदिन योग करने की प्रतिज्ञा ली।
Created On :   22 Jun 2023 9:32 PM IST