Pune City News: गजानन मारणे गैंग ने शहर में खड़ा किया अपराध का नया सिस्टम

गजानन मारणे गैंग ने शहर में खड़ा किया अपराध का नया सिस्टम
  • घायवल साथ आया तो हत्याएं भी की
  • पहला बड़ा केस – मिलिंद ढोले हत्या प्रकरण
  • जेल में नया गठबंधन और नई दुश्मनी

भास्कर न्यूज, पुणे। साल 1997-98 के समय तक कुछ ऐसी स्थितियां बनी की मुंबई पुलिस के सख्त होने से बड़े गैंगेस्टर महाराष्ट्र से बाहर होने लगे। इसे पुणे पुलिस का भाग्य ही कहेंगे कि बड़े नामों के प्रदेश छोड़ने से पुणे में कुछ शांति की उम्मीद जागृत हुई। दो-तीन साल शहर में कुछ शांति की स्थिति बनी भी लेकिन पुणे में आंदेकर गैंग के अलावा भी कुछ नए चेहरे अपराध की दुनिया में और चमकने लगे जिनमें गजानंद मारणे और नीलेश घायवल प्रमुख थे। ये दोनों ही अभी भी अपनी-अपनी गैंग चला रहे हैं। मारणे फिलहाल जेल में बंद है तो घायवल फरार चल रहा है।

गजानन मारणे गैंग ने केवल अपराध नहीं किया, बल्कि उसने शहर में अपराध का सिस्टम खड़ा किया। जहां राजनीति, रियल एस्टेट, गुंडागर्दी और सामाजिक छवि, सब कुछ मिलाकर उसने एक ऐसा नेटवर्क बनाया, जो आज भी पुलिस और समाज के लिए चुनौती बना हुआ है। 59 वर्षीय गजानन पंढरीनाथ मारणे का बचपन सासवड़ में मामा के घर बीता, जहां उसने पहली से छठी कक्षा तक पढ़ाई की। बाद में वह कोथरुड (पुणे) आया और मोरे विद्यालय में सातवीं से दसवीं तक पढ़ाई की, लेकिन दसवीं में असफल रहा और उसकी शिक्षा वहीं खत्म हो गई। इसके बाद गजानन का जीवन धीरे-धीरे अपराध की ओर मुड़ गया। उसके पिता पंढरीनाथ मारणे एस.टी. विभाग (राज्य परिवहन) में कार्यरत थे और 2015 में सेवानिवृत्त होने के बाद उनका निधन हो गया। उसकी पत्नी जयश्री मारणे पहले महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) से कोथरुड की नगरसेविका रही, लेकिन बाद में अजित पवार गुट की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से सक्रिय राजनीति में आ गई।

अपराध की शुरुआत: दोस्ती से दुश्मनी तक

साल 1988 में गजानन मारणे को पहली बार मारपीट के मामले में गिरफ्तार किया गया। तब वह कोथरुड में हमराज मित्र मंडल नाम से एक संगठन चलाता था। यहीं उसकी मुलाकात नीलेश घायवल से हुई जो एक पढ़ा-लिखा युवक था जो वनाज कंपनी में नौकरी करता था। दोनों में दोस्ती हुई और यह दोस्ती धीरे-धीरे आपराधिक गठबंधन में बदल गई।

पहला बड़ा केस – मिलिंद ढोले हत्या प्रकरण (2001)

साल 2001 में मिलिंद ढोले की हत्या हुई। कोथरुड पुलिस थाने में दर्ज यह हत्या का मामला गजानन मारणे के अपराधी जीवन का निर्णायक मोड़ था। वनाज कंपनी के यूनियन विवाद में नीलेश घायवल और मिलिंद ढोले के बीच झगड़ा हुआ था। नीलेश का समर्थन करने के लिए गजानन मारणे ने मिलिंद की हत्या कर दी। यह उसकी पहली सुपारी मानी जाती है, जिसने उसे अपराध की दुनिया में और आगे बढ़ा दिया।

बबलू कावड़िया हत्या प्रकरण (2003)

2003 में गजानन का नाम फिर हत्या के मामले में सामने आया। बताया जाता है इस बार मामला केबल और लॉटरी के कारोबार से जुड़ा था। सतीश मिसाल और बबलू उर्फ महेंद्र कावड़िया साझेदार थे, लेकिन पैसों को लेकर विवाद बढ़ा। बबलू ने सतीश की हत्या करवा दी। इसके बदले में, सतीश के भाई बाबा मिसाल के कहने पर गजा मारणे, नीलेश घायवल और इनके साथियों ने सारसबाग स्थित हरजीवन हॉस्पिटल के सामने बबलू की हत्या कर दी।

जेल में नया गठबंधन और नई दुश्मनी (2009)

2009 में येरवडा जेल में गजा की मुलाकात बाबा बोड़के से हुई। दोनों ने मिलकर रियल एस्टेट में अवैध जमीन सौदों का काम शुरू किया, लेकिन मुलशी तालुका में वर्चस्व की लड़ाई बढ़ गई। बाबा गैंग ने गजा के करीबी सुधीर रसाल की हत्या कर दी। इसके बाद जेल में दोनों गैंगों में हिंसक झगड़ा हुआ, जिसमें गजानन मारणे ने बाबा बोड़के का दांत तोड़ दिया था। यहीं से गजा का स्वभाव और भी हिंसक होने लगा। वह जेल के अंदर से ही अपने गैंग को ऑपरेट करने लगा।

घायवल बना दुश्मन :

बाबा बोड़के और नीलेश घायवल में दोस्ती हो गई लेकिन उनकी दोस्ती गजा को रास नहीं आई। जेल से छूटने के बाद गजा मारणे ने अपने साथी पप्पू कुडले के साथ कोथरुड के कमिन्स कंपनी के पास नीलेश पर हमला किया। इसके जवाब में नीलेश घायवल ने हमराज चौक में गजानन मारणे पर फायरिंग की, जिसमें सुमित नाइक घायल हुआ। मारणे ने भी जवाब में फायर किए। गैंगवार में दोनों तरफ से गोलियां चलने का यह मामला पुणे के गैंगवार में पहली बार सामने आया। मांगीरबाबा चौक में नीलेश घायवल गैंग ने पप्पू कुडले और उसके भाई सचिन कुडले पर फायरिंग की। सचिन की मौके पर ही मौत हो गई। हवेली तालुका में पप्पू तावरे की हत्या, 2013 में शिवा नथु साष्टे पर फायरिंग, फिर पप्पू गावड़े की हत्या हुई। 29 नवंबर 2014 को नीलेश के आदमी अमोल हरि बधे की वैकुंठ श्मशान भूमि के बाहर हत्या की गई। पुलिस ने मारणे पर केस दर्ज किया गया।

फिर ताकत का प्रदर्शन :

2022 में गजानन मारणे तलोजा जेल से रिहा हुआ। लेकिन बाहर आते ही उसने यह साबित कर दिया कि उसका आतंक खत्म नहीं हुआ। रिहाई के दिन उसने लगभग 400 से 500 गाड़ियों की रैली निकाली, जो नवी मुंबई से पुणे और पिंपरी-चिंचवड़ तक चली। सोशल मीडिया पर इस रैली के वीडियो वायरल हुए। पुलिस के आला अधिकारियों ने तुरंत कार्रवाई करते हुए नवी मुंबई, पुणे और पिंपरी-चिंचवड़ पुलिस आयुक्तालयों में अलग-अलग एफआईआर दर्ज की।

Created On :   7 Nov 2025 5:00 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story