Pune City News: पुणे में आज भी जीवित है 70 के दशक में बनी आंदेकर गैंग

पुणे में आज भी जीवित है 70 के दशक में बनी आंदेकर गैंग

भास्कर न्यूज, पुणे। धर्म और संस्कृति की राजधानी और शिक्षा का मायका कहे जाने वाले पुणे में पिछले दिनों फिर एक गैंगवार देखने को मिला। यह गैंगवार आंदेकर गैंग के ही दो हिस्से होने के बाद शुरू हुई वर्चस्व की लड़ाई बताई जा रही है। आपको बता दें पुणे में आंदेकर गैंग साल 1970 से सक्रिय है और अब तक बनी हुई है। ये गैंग पुलिस की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े करती है। दैनिक भास्कर पाठकों के समक्ष पुणे के विभिन्न गैंगों को लेकर रिपोर्ट पेश कर रहा है जो अंकवार (पहला अंक आज) प्रकाशित की जाएगी। क्राइम रिपोर्टर गुणवंती परस्ते की रिपोर्ट को देने का हमारा आशय सिर्फ यही है कि पुलिस सक्रिय हो ताकि गैंगवार समाप्त हो सके। पुणे की जनता ने पूर्व में जो भुगता है, वह अब न भुगते। फिर एक बार हमारा शांत शहर गैंगवार की भेंट न चढ़े क्योंकि पुणे में दाउद व छोटा राजन तक के गैंग चल चुके हैं।

पिछले साल पूर्व नगरसेवक वनराज आंदेकर की हत्या ने शहर की जनता को चौंका दिया था। उसकी हत्या के आरोप में उसी की दो बहनें और उनके पति पर पुलिस ने कार्रवाई की। साथ ही कुछ अन्य लोगों को भी वनराज हत्याकांड में पकड़ा जो पहले बंडू आंदेकर गैंग के ही सदस्य थे। इस साल सितंबर में आयुष उर्फ गोविंद कोमकर की हत्या हुई जिसे लेकर आंदेकर गैंग के सरगना बंडू आंदेकर को पुलिस ने पकड़ा है। आयुष बंडू का नाती और गणेश कोमकर का बेटा था। गणेश को वनराज के हत्या के आरोप में पुलिस ने पकड़ा है।

बात यदि आंदेकर गैंग के बनने की करे तो इसकी शुरुआत बालू आंदेकर ने की जो बंडू का सगा बड़ा भाई था। आंदेकर परिवार मूल रूप से सोलापुर का है, वह पुणे मेंकामकाज के लिए आया था। 1960 से 70 के दशक में पुणे के अपराध जगत पर नारायण जगताप का वर्चस्व था। बताया जाता है नारायण जगताप गैंग उस समय मटका, जुआं, पत्ते और वेश्या व्यवसाय के लिए प्रोटेक्शन मनी लिया करती थी। नारायण मूल रूप से मंडई का सब्जी व्यापारी था जिसने शराब और मटका अड्डे चलाकर गैंग खड़ी की थी। मुंबई के तस्कर करीमलाला से उसकी दोस्ती थी। पुलिस वर्दी में पहुंचकर तस्करी का माल लूटने में लाला गैंग की महारत थी। आंदेकर परिवार इस दौरान पुणे में भरण-पोषण कर रहा था। बालू आंदेकर ने नारायण जगताप गैंग का काफी नाम सुना था। इस कारण वह नारायण जगताप का फैन हो गया और गैंग के कनेक्शन में आया। खंडोबा का भक्त नारायण जेजुरी मंदिर पर दीपमाला चढ़ाते समय शिखर से गिरकर दिव्यांग हो गया था। इसके बाद भी वह व्हीलचेयर पर बैठकर खौफ कायम रखता था।

अंडरवर्ल्ड से भी बन गए थे कनेक्शन

बालू आंदेकर का कनेक्शन पुणे तक ही सीमित नहीं था। वह मुंबई भी जाया करता था। उसके कनेक्शन अंडरवर्ल्ड से भी बन गए थे। अरुण गवली के दुश्मनों से बालू आंदेकर के अच्छे संपर्क थे जिसके चलते बालू ने मुंबई में भी वर्चस्व बना लिया था। बताया जाता है नाना पेठ, नारायण पेठ और भवानी पेठ में आंदेकर गैंग व्यापारियों से प्रोटेक्शन मनी लिया करते थे।

अंगुली काटी तो बालू का नाम चमका

उस दौर में कसबा पेठ का गोविंद तारू, लश्कर और भवानी पेठ इलाके के पठान बंधु- नन्हे खान और अकबर खान, सोमवार पेठ का जॉन लांडगे, मंडई क्षेत्र में अप्पा थोरात, धोंडिबा अण्णा मिसाल, अनिल आल्हाट और गुरुवार पेठ में बालकृष्ण व्यंकटेश उर्फ बालू आंदेकर, मक्खनदादा मिसाल और चांगा थोरात जैसे अपराधी सक्रिय थे। ये सभी अपराध जगत में चर्चा का केंद्र थे। पठान बंधुओं और अन्य गिरोहों में दुश्मनी रहती थी। इन झगड़ों में घोड़ागाड़ी का इस्तेमाल होता था। लड़ाइयों में साइकिल और मोटरसाइकिल की चेन, लोहे के गज, छुरे, सोडा वॉटर की बोतलें, तलवारें और रामपुरी चाकू आम हथियार थे। लगभग 1975 से 1980 के बीच पुणे में संगठित अपराध की शुरुआत हुई। उस समय नाना पेठ में किसन रोमन नामक बदमाश का दबदबा था। गुरुवार पेठ के बालू आंदेकर ने उस पर चाकू से हमला कर उसकी अंगुली काट दी थी। तभी से आंदेकर का नाम अपराध जगत में और ज्यादा चर्चा में आने लगा।

प्रेम कहानी से गिरोह में पड़ गई थी दरार

एक प्रेम कहानी ने आंदेकर गिरोह में दरार डाल दी थी। पिंपरी चिंचवड़ के दबंग फकीरभाई पानसरे की बेटी का यरवड़ा के सुनील पंजाबी से प्रेम संबंध हो गया। बताते हैं साल 1982-83 में पंजाबी ने उसे भगाकर शादी कर ली थी। फकीरभाई ने बेटी को वापस लाने के लिए मालवदकर को भेजा लेकिन पंजाबी के दोस्त लोंबर और निजामपुरकर ने उसे रोक दिया। झगड़े में मालवदकर ने निजामपुरकर पर हमला कर दिया। इसी विवाद में आंदेकर ने मालवदकर के पिता को थप्पड़ मार दिया था। यह अपमान सह न पाने के कारण मालवदकर और उसके साथी गिरोह से अलग हो गए। हालांकि, गिरोह में दरार का यह केवल तात्कालिक कारण था। बताते हैं आंदेकर की बढ़ती ताकत से असंतुष्ट थोरात, मिसाल और पानसरे जैसे लोग पहले से ही इस गैंग में फूट डालने की कोशिश कर रहे थे। इस विवाद ने उस कोशिश को हवा दे दी और गिरोह टूट गया।

मटका किंग से भी हो गई थी दोस्ती

पुणे पुलिस की पकड़ से बचने के लिए आंदेकर अक्सर मुंबई चला जाता था। वहां उसकी दोस्ती मटका किंग पारसनाथ पांडे से हुई। पांडे और दगड़ी चाली के रमा नाइक के गिरोह में दुश्मनी थी। इस वजह से आंदेकर कई बार सीधे दगड़ी चाली में जा धमकता था। उसके बेखौफ स्वभाव के कारण मुंबई और अन्य इलाकों के कुख्यात अपराधियों से भी उसके संबंध बन गए। विरार का भाई ठाकुर, सोलापुर का रवि पाटिल और पंढ़रपुर का अनिल डोंबे इनमें प्रमुख थे।

आंदेकर-तारू गिरोह की लड़ाई :

बालू सिर्फ मुंबई में ही लड़ाइयां नहीं लड़ रहा था बल्कि पुणे में भी वह वर्चस्व जमाने में लगा था। 1975 के आसपास आंदेकर और कसबा पेठ के अप्पा तारू के गिरोहों के बीच वर्चस्व की जंग शुरू हुई। संघर्ष में आंदेकर के साथ प्रमोद मालवदकर, मुरली भोकरे, बालू पोमण, बाबा लोंबर, मोहन निजामपुरकर, नागेश अगज्ञान, किशोर अगज्ञान और कालीदास अगज्ञान थे। दूसरी ओर तारू गिरोह में प्रकाश ढोके, अनिल तारू, बबन धनवड़े और बालू कांबले जैसे लोग शामिल थे। झगड़े में आंदेकर ने कांबले की हत्या कर दी। उसके बाद से शहर में आंदेकर गिरोह का दबदबा बढ़ने लगा। गैरकानूनी धंधों से मिलने वाला ‘हफ्ता’ ही इस गिरोह की आय का मुख्य स्रोत बन गया।

Created On :   30 Oct 2025 5:00 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story