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Pune City News: शिकायत हुई घरेलू हिंसा की, पुलिस ने धारा लगा दी आतंकवाद की

- विश्रामबाग पुलिस की कार्रवाई पर उठे सवाल
- पुलिस ने कहा टाइपिंग मिस्टेक
- कोर्ट को भी दी जानकारी
भास्कर न्यूज, पुणे। एक 38 वर्षीय महिला ने अपने पति और ससुराल वालों पर पिछले 17 वर्षों से घरेलू हिंसा, मारपीट, मानसिक प्रताड़ना, आर्थिक शोषण जैसे गंभीर आरोप लगाए है। पति पर जबरन यौन संबंध बनाने का भी आरोप महिला ने लगाया। महिला ने 30 नवंबर को पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, जिसके आधार पर विश्रामबाग पुलिस ने पति और ससुराल पक्ष के खिलाफ मामला दर्ज किया। खास बात तो यह है कि आरोपियों पर एफआईआर में आतंकवाद की धारा भी लगा दी गई जिसे देखकर आरोपी पक्ष चौक गया। अब यह मामला न्यायालय में पहुंच गया है हालांकि पुलिस ने इसे टाइपिंग की गलती बताया है। इसकी जानकारी उसने न्यायालय को भी दी है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार इस एफआईआर में पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 113(2)—जो आमतौर पर आतंकवादी कृत्यों से जुड़ी है, घरेलू हिंसा के केस में लगाया गया है। पुलिस ने बीएनएस की धारा 85, 318 (4), 351(2), 352 सहित विवादित 113(2) भी लगा दी, जिसे देखकर आरोपी पक्ष के वकीलों ने कड़ी आपत्ति जताई। बचाव पक्ष के वकील एडवोकेट पुष्कर पाटिल और एडवोकेट अमित परदेशी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट पहले ही गलत धाराओं के दुरुपयोग पर चेतावनी दे चुके हैं। वकीलों का कहना है कि आईपीसी में पहले धारा 377 का अंधाधुंध उपयोग होता था, और अब आईपीसी हटने के बाद पुलिस ने सीधे बीएनएस की वह धारा लगा दी जो खासतौर पर आतंकवादी कृत्यों के लिए बनाई गई है। इसे वकीलों ने गलत बताया और कहा कि घरेलू विवाद में इस तरह की धारा लगाना बिल्कुल अनुचित है। इसी बीच, जब मामला चर्चा में आया तो विश्रामबाग पुलिस स्टेशन के वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक प्रदीप कसबे ने कहा कि एफआईआर में यह धारा (113(2)) संभवतः “टाइपो एरर” के कारण चढ़ गई थी। उन्होंने बताया कि अब एफआईआर में सुधार कर दिया गया है। अब बीएनएस की धारा 115 लगाई गई है, जो उन मामलों में लागू होती है, जहां अपराध की नीयत तो हो लेकिन अपराध घटित न हुआ हो। इसकी सजा मृत्यु दंड या आजीवन कारावास भी हो सकती है।
बेटी के साथ घर से भी निकाल दिया था
महिला ने शिकायत में कहा है कि उसकी शादी 29 मार्च 2008 को हुई थी। शादी के बाद से ही उसे मारपीट, धमकियां, दहेज की मांग, जबरन संपत्ति बेचने और बीमारी के दौरान भी अत्याचार का सामना करना पड़ा। महिला ने आरोप लगाया कि ससुराल वालों ने 2010 में उसे और उसकी डेढ़ साल की बेटी को घर से निकाल दिया था। पिता द्वारा खरीदे गए हड़पसर स्थित फ्लैट को जबरन बेचकर उससे दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करवाए गए। 2010 से 2012 के बीच उसके बैंक खाते से 7 लाख 67 हजार 883 रुपए पति और सास ने निकाले। महिला के अनुसार धायरी इलाके की जमीन उसके नाम करने का वादा किया गया था, लेकिन बाद में वह जमीन पति और सास के नाम कर दी गई। उसने यह भी कहा कि बीमारी की हालत में भी उसके साथ मारपीट की गई और उससे जबरन अनैसर्गिक संबंध बनाए गए, जिससे उसे गंभीर चोटें आई और तत्काल ऑपरेशन करना पड़ा। ससुराल पक्ष द्वारा लगातार अपमान करने, धमकाने और परिवार के एक परिचित से भी उसे डराने का आरोप लगाया है।
इन आरोपों के आधार पर पुलिस ने बीएनएस की धारा 85, 318(4), 351(2), 352 सहित विवादित 113(2) भी लगा दी, जिसे देखकर आरोपी पक्ष के वकीलों ने कड़ी आपत्ति जताई। बचाव पक्ष के वकील एडवोकेट पुष्कर पाटील और एडवोकेट अमित परदेशी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट पहले ही गलत धाराओं के दुरुपयोग पर चेतावनी दे चुके हैं। वकीलों का कहना है कि आईपीसी में पहले धारा 377 का अंधाधुंध उपयोग होता था, और अब आईपीसी हटने के बाद पुलिस ने सीधे बीएनएस की वह धारा लगा दी जो खासतौर पर आतंकवादी कृत्यों के लिए बनाई गई है। इसे वकीलों ने गलत बताया और कहा कि घरेलू विवाद में इस तरह की धारा लगाना बिल्कुल अनुचित है।
Created On :   4 Dec 2025 12:16 PM IST












