कुंडली में हो अशुभ शुक्र तो करें ये उपाय

कुंडली में हो अशुभ शुक्र तो करें ये उपाय

डिजिटल डेस्क, भोपाल। शुक्र ग्रह को सभी के जीवन में रूप-रंग और स्नेह आदि का कारक माना जाता है। सौरमंडल के नवग्रहों में शुक्र का महत्व अधिक है। आकाश में सबसे तेज चमकदार तारा शुक्र ही है। आकाश में शुक्र ग्रह को आसानी से देखा जा सकता है। इसे संध्या और भोर का तारा भी कहते हैं, क्योंकि इस ग्रह का उदय आकाश में या तो सूर्योदय के पूर्व या संध्या को सूर्यास्त के पश्चात होता है। पुराणों अनुसार शुक्र दानवों के गुरु हैं। इनके पिता का नाम कवि और इनकी पत्नी का नाम शतप्रभा है। दैत्य गुरु शुक्र दैत्यों की रक्षा करने हेतु सदैव तत्पर रहते हैं। ये बृहस्पति की तरह ही शास्त्रों के ज्ञाता, तपस्वी और कवि हैं। इन्हें सुंदरता का प्रतीक माना गया है।

शुक्र के अस्त दिनों में भी शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं। इसका कारण यह है कि उक्त वक्त पृथ्वी का पर्यावरण शुक्र प्रभा से दूषित माना गया है। यह ग्रह पूर्व में अस्त होने के बाद 75 दिनों पश्चात पुन: उदित होता है। उदय के 240 दिन वक्री चलता है। इसके 23 दिन पश्चात अस्त हो जाता है। पश्चिम में अस्त होकर 9 दिन के पश्चात यह पुन: पूर्व दिशा में उदित होता है।

शुक्र के देवता : लक्ष्मी 
शुक्र का दिवस : शुक्रवार 
शुक्र का गोत्र : दनु   
इनका वाहन : अश्व  
शुक्र के पालतू पशु : बैल और गाय 
शुक्र की पोशाक : कमीज 
शुक्र की दान वस्तु : मिट्टी और  मोती 
शुक्र वृक्ष : कपास का पौधा 
शुक्र की वर्ण-जाति : श्वेत, ब्राह्मण 
शुक्र विशेषता : प्रेमी स्वभाव 
शुक्र के शरीर में अंग : गाल और गले की त्वचा 
शुक्र से सम्बंधित कार्य : कुम्हार, किसान, जमींदार, भोजनालय या भव्य एवं चमकदार वस्तु की दुकान या शोरूम  
शुक्र का गुण : मिट्टी, कामदेव, स्त्री, गृहस्थ  
शुक्र नक्षत्र : भरणी, पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा आदि नक्षत्रों का स्वामी होता 
शुक्र का भ्रमण काल : प्रत्येक राशि में एक माह 
शुक्र की बलवृद्धि : बुध के साथ बलवान स्थिति में  
शुक्र की दिशा : शुक्र दक्षिण-पूर्व दिशा के स्वामी हैं  
शुक्र की शक्ति : प्यार, लगन, शांति, ऐश,और रति क्रिया 
शुक्र के अन्य नाम : दैत्यगुरु, दैत्य पूज्य, भार्गव, सित, मृगु, उसना, काम और कविकाण  
शुक्र का स्वभाव : भूमि और वायु तत्व के स्वामी किन्तु क्रोधयुक्त  
शुक्र की राशि : वृषभ और तुला राशि 
शुक्र के मित्र ग्रह : बुध, शनि और केतु  
शुक्र के शत्रु ग्रह : सूर्य व चंद्र  
शुक्र के सम ग्रह : मंगल, गुरु और राहु  
शुक्र कन्या में नीच और मीन में उच्च के होते हैं। भाव सप्तम इनका पक्का घर है।


शुभ शुक्र के संकेत :  

सुंदर शरीर वाला पुरुष या स्त्री में आत्मविश्वास भरपूर रहता है। विपरीत लिंग वाले स्वत: ही आकर्षित होने लगते हैं। व्यक्ति धनवान और साधन-सम्पन्न होता है। कवि चरित्र, कामुक प्रवृत्ति यदि शनि मंद कार्य करे तो शुक्र साथ छोड़ देता है। शुक्र का बल हो तो ऐसा व्यक्ति भोग-विलास में अपना जीवन व्यतीत करता है।

फिल्म या साहित्य में रुचि रखता है जातक  

मान्यता है कि अगर कुंडली में शुक्र अशुभ स्थिति में हो तो शारीरिक कठिनाइयों के साथ रिश्तों में भी खटास आती है। कुण्डली के अनुसार विवाह और वैवाहिक सुख के लिए शुक्र सबसे अधिक कारक होता है इसलिए इसके अशुभ होने पर जातक को इसके लिये उपाय करना चाहिए। कुण्डली में शुक्र नीच स्थान पर है और यदि शुक्र ग्रह के कारण आपके जीवन में कुछ उथल-पुथल हो रही है तो आप निम्न उपाय अपना सकते हैं:

प्रथम भाव में शुक्र उचित फल देने वाला ना हो तो 25 वर्ष की उम्र में विवाह संस्कार नहीं करना चाहिए। साथ ही काले रंग की गाय की सेवा करें और दही से स्नान करने की सलाह दी जाती है।

दूसरे भाव में शुक्र ग्रह के उत्तम फल पाने के लिए मंगल से संबंधित वस्तुओं जैसे शहद, सौंफ और खाण्ड आदि का दान बहुत लाभदायक माना जाता है।

तृतीय भाव में शुक्र ग्रह की पीड़ा शांत करने के लिए जीवन-संगिनी का सम्मान करना उचित माना जाता है।

चौथे भाव में बैठे शुक्र के कारण आपको कष्ट हो रहा है तो अपनी पत्नी का नाम बदलकर और औपचारिक रूप से पुनर्विवाह करने पर पीड़ा शांत होती है। मान्यता है कि लक्ष्मी माता को खीर का भोग लगाने से भी शुक्र की पीड़ा से शांति मिलती है।

पंचम भाव में शुक्र की पीड़ा शांत करने के लिए जातक को अपने माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध विवाह नहीं करना चाहिए। गाय व माता की सेवा करने पर शुभ सूचना प्राप्त होती है।

छठे भाव में शुक्र ग्रह के शुभ फल पाने के लिए जातक सुनिश्चित कर लें कि पत्नी के बालों में सोने की क्लिप है। अपने पति या पत्नी को नंगे पाँव ना रहने दें, ऐसा होने पर हानि हो सकती है।

सातवें भाव में अगर शुक्र ग्रह से हानि हो रही हो तो सफ़ेद गाय नहीं पालनी चाहिए। काली या लाल गाय की सेवा करना या पालना शुभ माना जाता है।

आठवें भाव में शुक्र ग्रह के अशुभ परिणामों को कम करने के लिए दान स्वीकार करने से बचने की सलाह दी जाती है। तांबे का सिक्का या नीले फूल को लगातार दस दिन तक नाले में फेंकना शुभ माना जाता है।

नौवें भाव में शुक्र ग्रह की पीड़ा शांत करने के लिए या दुष्प्रभावों से बचने के लिए भवन निर्माण के समय शहद और चाँदी नीव में गाड़ना शुभ बताया गया है।

दसवें भाव में शुक्र ग्रह की पीड़ा शांत करने के लिए घर में पश्चिम दिशा की तरफ मिट्टी की दीवार का होना शुभ होता है।

ग्याहरवें भाव में होने के कारण कष्टों का सामना करना पड़ रहा है तो, बुध के उपाय भी अपना सकते हैं। मूंग की दाल का दान करना और सफ़ेद गाय को हरा चारा खिलाना शुभ रहता है।

बारहवें भाव में बैठे शुक्र ग्रह की पीड़ा कम करने के लिए शुक्रवार के दिन सूर्यास्त के समय नीले रंग के फूल को जमीन में दबा देना शुभ माना जाता है।

शुक्र के साथ राहु का होना अर्थात स्त्री तथा धन को कमाने में व्यक्ति का मन नहीं होता है किन्तु उसे विरासत में धन, भूमि, भवन आदि प्राप्त होते हैं। यदि शनि कमजोर या नीच का हो तब भी शुक्र का बुरा असर होता है। इसके अतिरिक्त भी ऐसी कई स्थितियां हैं जिससे शुक्र को कमजोर माना गया है। अंगूठे में दर्द का रहना या बिना रोग के ही अंगूठा बेकार हो जाता है, त्वचा में विकार, गुप्त रोग, पत्नी से अनावश्यक कलह आदि भी ख़राब शुक्र के संकेत हैं।

उपाय : 

लक्ष्मी की उपासना करें और इस मन्त्र का जाप करें

ॐ महालक्ष्म्यै नमः ।  

सफेद वस्त्र दान करें, भोजन का कुछ हिस्सा गाय, कौवे, और कुत्ते को दें। शुक्रवार का व्रत रखें। खटाई न खाएं। दो मोती लेकर एक पानी में बहा दें और एक जिंदगीभर अपने पास रखें। स्वयं को और घर को साफ-सुथरा रखें और हमेशा साफ कपड़े धारण करें नित्य स्नान करें। शरीर को सदा स्वच्छ रखें। सुगन्धित इत्र या सेंट का उपयोग करें। पवित्र बने रहें और इस मन्त्र का जाप करते रहें ।  

ॐ शुं शुक्राय नम:

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से : ज्योतिष और वैज्ञानिकों का मानना है कि शुक्र की किरणों का हमारे शरीर और जीवन पर अकाट्य प्रभाव पड़ता है। शुक्र का व्यास 126000 किलोमीटर है और गुरुत्व शक्ति पृथ्वी के ही समान। इसे सूर्य की परिक्रमा पूरी करने में 225 दिन लगते हैं।  शुक्र एवं सूर्य के बीच की दूरी वैज्ञानिकों ने लगभग 108000000 किलोमीटर मानी है।  

Created On :   22 Aug 2018 1:55 PM GMT

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