भीष्माष्टमी: आज ये काम करने से मिलेगी पितृदोष से मुक्ति, जानें इस पर्व का महत्व

Bhishmashtami: By doing this work today, you will get relief from Pitru Dosh
भीष्माष्टमी: आज ये काम करने से मिलेगी पितृदोष से मुक्ति, जानें इस पर्व का महत्व
भीष्माष्टमी: आज ये काम करने से मिलेगी पितृदोष से मुक्ति, जानें इस पर्व का महत्व

​डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हिन्दू धर्म में सालभर व्रत और त्यौहारों की बहार देखने को मिलती है। इनमें से एक है भीष्माष्टमी, जो कि महाभारत के महान पात्र भीष्म पितामह को समर्पित है। यह त्योहार प्रति वर्ष माघ शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस बार यह पर्व 2 फरवरी 2020 यानी कि आज रविवार को मनाया जा रहा है। 

धर्म शास्त्र के मुताबिक, जिस दिन भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने पर प्राण त्यागे थे, उसे भीष्माष्टमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन की याद में ही भीष्माष्टमी पर व्रत किया जाता है। पौराणिक रूप से यह पर्व भीष्म पितामह की मृत्यु का प्रतीक है। इसी दिन भीष्म पितामह ने अपने प्राण को त्यागा था। 

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मुहूर्त
तिथि प्रारंभ: 01 फरवरी शाम 6:08 बजे से
तिथि समापन: 02 फरवरी रात 20:00 बजे तक 

करें ये काम
इस पावन दिन को उन्होंने स्वयं ही चुना था। इस दिन कुश, तिल, जल से भीष्म पितामह का तर्पण करना चाहिए। कहा जाता है कि ऐसा करने से मनुष्य को सभी पापों से मुक्ति मिलती है। साथ ही उनके पुरखों को भी आत्मा की शांति मिलती है। मान्यता है कि गंगा-पुत्र भीष्म के निमित्त जो भी भीमाष्टमी का व्रत, पूजा और तर्पण करता है, उसे वीर और सत्ववादी पुत्र की प्राप्ति होती है। 

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पितृदोष से मुक्ति
यदि आप पितृदोष से मुक्ति या संतान की प्राप्ति के लिए यह व्रत काफी महत्व रखता है क्योंकि महाभारत के सभी पात्रों में भीष्म पितामह विशिष्ट स्थान रखते हैं। कहा जाता है कि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान, दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। भीष्म अष्टमी पर जल में खड़े होकर ही सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए। पुराणों के मुताबिक उन्होंने अपने पिता की खुशी के लिए आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया। साथ ही उन्हें न्यायप्रिय, सत्यनिष्ठ एवं गंगापुत्र के रूप में भी जाना जाता है। 

कौन थे भीष्म
धर्म शास्त्रों के अनुसार भीष्म के बचपन का नाम देवव्रत था। वह हस्तिनापुर के महाराज शांतनु और देवी गंगा की संतान थे। देवव्रत की माता देवी गंगा अपने पति शांतनु को दिए वचन के अनुसार अपने पुत्र को अपने साथ ले गई थी। देवव्रत की प्रारम्भिक शिक्षा और लालन-पालन माता गंगा के पास ही पूरा हुआ। जब देवव्रत ने शिक्षा पूरी कर लीं तो उन्हें गंगा ने उनके पिता महाराज शांतनु को सौंप दिया। कई वर्षों के बाद पिता-पुत्र का मिलन हुआ और महाराज शांतनु ने अपने पुत्र देवव्रत को युवराज घोषित कर दिया।

Created On :   1 Feb 2020 10:53 AM GMT

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