जन्म के बाद कैसे बनता है गंडमूल दोष और क्या हैं इसकी शांति के उपाय?

How Gandmool dosha made after birth, know measures of its peace
जन्म के बाद कैसे बनता है गंडमूल दोष और क्या हैं इसकी शांति के उपाय?
जन्म के बाद कैसे बनता है गंडमूल दोष और क्या हैं इसकी शांति के उपाय?

डिजिटल डेस्क । भारतीय ज्योतिष शास्त्र में गंडमूल नक्षत्रों को दोषकारी माना जाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार जब किसी शिशु का जन्म गण्डमूल नक्षत्र में हो तो इसको गंडमूल दोष कहा जाता है। इसके कारण बालक और उसके माता-पिता एवं भाई-बहिनों के जीवन पर कष्टकारी प्रभाव पड़ता है इसलिए इस नक्षत्र में पैदा हुए शिशु और उसके परिजनों की भलाई के लिए गंडमूल शांति के उपाय कराना अति आवश्यक है। इसे किसी विद्वान तथा योग्य पंडित द्वारा ही करवाना चाहिए जिसे मूल शांति कराने का पूर्ण ज्ञान हो। हालांकि इससे पहले हमें यह जानना जरुरी है कि आखिर यह गंडमूल नक्षत्र क्या होता है?

गंडमूल क्या होता है?

ज्योतिष में 27 नक्षत्र होते हैं। इनमें केतु व बुध के स्वामित्व में आने वाले नक्षत्रों को गंड मूल कहते हैं, जो इस प्रकार हैं:

नक्षत्र स्वामी ग्रह देवता अश्वनी केतु, अश्विनी कुमार अश्लेषा बुध सर्प, मघा केतु पितृ, ज्येष्ठा बुध इंद्र, मूल केतु राक्षस,रेवती बुध सूर्य, कैसे बनता है गण्डमूल योग?

 

राशि और नक्षत्र के एक ही स्थान पर मिलने या उदय होने पर गण्डमूल नक्षत्रों का निर्माण होता है। जैसे- यदि कर्क राशि तथा अश्लेषा नक्षत्र की समाप्ति साथ होती है। वही सिंह राशि का प्रारंभ और मघा नक्षत्र का उदय एक साथ हो तो इसे अश्लेषा गण्ड संज्ञक और मघा मूल संज्ञक नक्षत्र कहा जाता है। यदि वृश्चिक राशि और ज्येष्ठा नक्षत्र की समाप्ति एक साथ हो तथा धनु राशि और मूल नक्षत्र का आरम्भ यही से हो तो इस स्थिति को ज्येष्ठा गण्ड और ‘मूल’ मूल नक्षत्र कहा जाता है।

यदि मीन राशि और रेवती नक्षत्र एक साथ समाप्त हो तथा मेष राशि व अश्विनी नक्षत्र की शुरुआत एक साथ हो तो इस स्थिति को रेवती गण्ड और अश्विनी मूल नक्षत्र कहा जाता है
क्यों होता है गंडमूल नक्षत्र दोषकारी?

ज्योतिष के अनुसार नक्षत्र, लग्न और राशि के संधि काल को अशुभ माना जाता है और गंड मूल नक्षत्र संधि नक्षत्र होते हैं, इसलिए जातक पर इसके अशुभ प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। इसके साथ ही गंडमूल नक्षत्रों के देवता भी बुरे प्रभाव देने वाले होते हैं। 

ये नक्षत्र मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु व मीन राशी के आरम्भ व अंत में आते हैं। काल पुरुष चक्र के अनुसार इन राशियों का प्रभाव जातक के शरीर, मन, बुद्धि, आयु, भाग्य आदि पर पड़ता है और गंडमूल का प्रभाव भी इन्हीं के ऊपर देखने को मिलता है।


गंडमूल दोष का प्रभाव

यदि कोई बालक गंडमूल नक्षत्र में पैदा होता है तो उसे तथा उसके परिजनों को निम्न कष्टों का सामना करना पडता है:-

जातक को स्वास्थ्य संबंधी कष्टों का सामना करना पड़ता है। माता-पिता एवं भाई-बहिनों के जीवन पर बाधाएं आती हैं। जातक के जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है जातक को जीवनयापन में संघर्ष करना पड़ता है। जातक के परिवार में दरिद्रता आती है दुर्घटना का भय बना रहता है जातक भाग्यहीन हो जाता है। 

 

गंडमूल शांति के उपाय

यदि किसी शिशु का जन्म गंडमूल में हुआ है तो जन्म के 27वें दिन ठीक उसी नक्षत्र के आने पर शांति करनी चाहिए। 

इसके लिए निम्न उपाय किए जा सकते हैं:-

  • सर्प को दूध पिलाएं।
  • नाग देव का पूजन करें।
  • पितृों के निमित्त दान करें।
  • घर में गंडमूल शांति के लिए यज्ञ करें।
  • अमावस्या के दिन ब्राह्मण भोजन कराएं।
  • किसी मंदिर में शिवलिंग को स्थापित करें।
  • प्रत्येक अमावस्या को गौ, स्वर्ण, अन्न आदि का दान करें।
  • माता या पिता 6 माह तक विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
 

यदि गंडमूल शांति के उपाय शिशु के जन्म से ठीक 27वें दिन न हो पाएं अथवा किसी कारण से गंडमूल दोष के बारे में आपको विलम्ब से पता चले तो भी आप इसकी शांति के उपाय करवा सकते हैं।

Created On :   31 Dec 2018 2:23 PM IST

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