जितिया व्रत: जानें इस व्रत का महत्व और शुभ मुहूर्त

Jitiya fast: know auspicious time and importance
जितिया व्रत: जानें इस व्रत का महत्व और शुभ मुहूर्त
जितिया व्रत: जानें इस व्रत का महत्व और शुभ मुहूर्त

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हर वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जितिया व्रत होता है, जो इस साल 10 सितंबर दिन गुरुवार को है। जीवित्पुत्रिका व्रत को जितिया या जिउतिया या जीमूत वाहन का व्रत आदि नामों से जाना जाता है। जितिया व्रत महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। यह व्रत विशेष तौर पर संतान के लिए किया जाता है।इस व्रत को तीन दिन तक किया जाता है। इस व्रत में तीन दिन तक उपवास किया जाता है। 

महिलाएं व्रत के दूसरे दिन और पूरी रात में जल की एक बूंद भी ग्रहण नहीं करती हैं। पहले दिन महिलाएं स्नान करने के बाद भोजन करती हैं और फिर दिन भर कुछ नहीं खाती हैं। व्रत का दूसरा दिन अष्टमी को पड़ता है और यही मुख्य दिन होता है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं। व्रत के तीसरे दिन पारण करने के बाद भोजन ग्रहण किया जाता है। 
आइए जानते हैं इस व्रत की पूजा विधि के बारे में...

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शुभ मुहूर्त
जितिया व्रत पूजा: 10 सिंतबर को 
अष्टमी तिथि तिथि आरंभ: 09 सितंबर, दोपहर 01 बजकर 35 मिनट से
अष्टमी तिथि समापन: 10 सितंबर, दोपहर 03 बजकर 04 मिनट तक  
पारण का समय: 11 सितंबर, सुबह सूर्योदय के बाद से दोपहर 12 बजे तक  

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महत्व
आपको बता दें कि इस व्रत का संबंध महाभारत काल से भी है। कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध में अपने पिता की मौत के बाद अश्वत्थामा बहुत नाराज था। उसके हृदय में बदले की भावना भड़क रही थी। इसी के चलते वह पांडवों के शिविर में घुस गया। शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे। अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर मार डाला। वे सभी द्रोपदी की पांच संतानें थीं। फिर अर्जुन ने उसे बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि छीन ली। अश्वत्थामा ने बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को गर्भ को नष्ट कर दिया। ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उसको गर्भ में फिर से जीवित कर दिया। गर्भ में मरकर जीवित होने के कारण उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा। तब से ही संतान की लंबी उम्र और मंगल के लिए जितिया का व्रत किया जाने लगा।  

Created On :   7 Sep 2020 11:08 AM GMT

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