रुक्मणी अष्टमी पर करें कृष्ण संग रुक्मणी की पूजा, होगी धन-धान्य में वृद्धि

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रुक्मणी अष्टमी पर करें कृष्ण संग रुक्मणी की पूजा, होगी धन-धान्य में वृद्धि
रुक्मणी अष्टमी पर करें कृष्ण संग रुक्मणी की पूजा, होगी धन-धान्य में वृद्धि

डिजिटल डेस्क।  रुक्मणीअष्टमी पर कृष्ण संग रुक्मणीकी पूजा करने से धन-धान्य की वर्षा होती है। इस बार रुक्मणीअष्टमी शनिवार यानि 29 दिसम्बर को है। रुक्मणी- अष्टमी पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन रुक्मणी का जन्म हुआ था, इसीलिए इसको रुक्मणी- अष्टमी कहा जाता है। इस दिन व्रत एवं पूजा करने के इच्छुक जातक को चाहिए कि वो इस पौष मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को स्नानादि से निवृत्त होकर संकल्प ले। फिर किसी चौकी आदि पर सुवर्ण निर्मित श्रीकृष्ण रुक्मणी एवं प्रद्युम्न की प्रतिमा स्थापित करें। गन्ध पुष्प अक्षत धूप दीप आदि से विधिवत पूजन करें। नैवेद्य के लिए विविधविध उत्तम पदार्थों को अर्पित करें। इसके बाद आठ सुवासिनी या सुहागन स्त्रियों को भोजन एवं दक्षिणा दे कर आशीष प्राप्त करें।

 

 

रुक्मणीअष्टमी की संक्षिप्त कथा

  • रुक्मणीजी भगवान श्रीकृष्ण की पटरानियों में प्रमुख थीं। वे विदर्भ नरेश भीष्मक की पुत्री थीं। 
  • रुक्मणीजी साक्षात् लक्ष्मी की अवतार थीं। युवावस्था होने पर उन्हें श्री कृष्ण के सौन्दर्य  बल-पराक्रम, गुण, वैभव, आदि की जानकारी मिली। 
  • उन्होंने श्रीकृष्ण के पास अपने विवाह का प्रस्ताव भेजा। 
  • रुक्मणीके भाई रुक्मी था जो उनका विवाह शिशुपाल के साथ करना चाहता था। 
  • तब श्री कृष्ण ने रुक्मणीका हरण कर अपने साथ विवाह कर लिया।
 

रुक्मणीअष्टमी का माहात्म्य  

रुक्मणीको देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। तन्दनान रामायण और तुलसीदास जी के रामायाण में उल्लेख आया है कि नारद के श्राप के कारण रामावतार में भगवान राम को सीता का वियोग सहना पड़ा। कृष्णावतार में राधा और कृष्ण का वियोग हुआ। रुक्मणीअष्टमी का पर्व बहुत महत्वपूर्ण एवं पुण्यदायक है। इस व्रत को करने से रुक्मणीजी की अतिशय कृपा प्राप्त होती है। ये भगवान श्रीकृष्ण की भार्या और प्रियतमा थीं। इसलिए इस पूजन से भगवान श्रीकृष्ण की भी अनुकम्पा प्राप्त होती है, लेकिन सदा भगवान विष्णु के साथ रहने वाली माता लक्ष्मी रुक्मणीरूप में भगवान श्री कृष्ण के साथ रही।
 

शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान श्री कृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि को हुआ, राधा जी भी अष्टमी तिथि को उत्पन्न हुई और रुक्मणीका जन्म भी अष्टमी तिथि को हुआ है। इसलिए अष्टमी तिथि को बहुत ही शुभ माना गया है। इनमें राधाष्टमी और रुक्मणीअष्टमी को लक्ष्मी पूजन का दिन लिखा गया है। मान्यता है कि जो भी व्यक्ति रुक्मणीअष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण और देवी रुक्मणीसहित इनके पुत्र प्रद्युम्न की पूजा करते हैं उनके घर में धन धान्य की वृद्धि होती है। साथ ही परिवार में आपसी सामंजस्य बढ़ता तथा संतान सुख की प्राप्ति होती है। 

 

रुक्मणीजी के जन्म संदर्भ में पद्म पुराण एक अन्य कथा का वर्णन मिलता है। इस पुराण के अनुसार देवी रुक्मणीपूर्व जन्म में एक ब्राह्मणी थी। तब युवावस्था में ही इन्हें विधवा होना पड़ा। इसके बाद यह भगवान विष्णु की पूजा आराधना में बाकी समय बिताने लगी। निरन्तर भगवान विष्णु की भक्ति के कारण से इन्हें अगले जन्म में भगवान विष्णु के अवतार में श्री कृष्ण की पत्नी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और यह लक्ष्मी तुल्य बन गयी। 

Created On :   26 Dec 2018 7:31 AM GMT

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