गुलजार ने दिल्ली की कड़वी हवा पर लिखी झकझोर कर रख देने वाली ये कविता

गुलजार ने दिल्ली की कड़वी हवा पर लिखी झकझोर कर रख देने वाली ये कविता

डिजिटल डेस्क, मुम्बई। गीतकार-फिल्मकार,शायर या लेखक कितने ही नामों से गुलज़ार को जाना जाता है। शायरी की दुनिया में शोहरत कमाने वाले गुलज़ार की रचना के सभी दीवाने हैं। उनका लिखा एक बार में सबके मन में घर कर जाता है, लेकिन इस बार उन्होनें ऐसा कुछ लिखा जिसने सबको झकझोर कर रख दिया है और सब इस पर सोचने के लिए मजबूर हो गए हैं।

गुलज़ार साहब ने आगामी फिल्म ‘कड़वी हवा’ के लिए दिल को छू जाने वाली कविता लिखी है जिसका शीर्षक है ‘मौसम बेघर होने लगे हैं’। क्लाइमेट चेंज पर ये कविता बनाई है जिसमें उन्होंने इन्सानों द्वारा किए जा रहे विनाश को प्रकृति के नजरिए से शब्दों में पिरोया है। कविता में लोगों को संदेश दिया गया है इंसानों से विकास के चाह में कैसे प्रकृति को बर्बाद कर दिया है।

24 नवंबर को रिलीज होगी ‘कड़वी हवा’

प्रदुषण के मुद्दे पर बनी इस फिल्म का कॉन्सेप्ट उन्हें काफी पसंद आया इसलिए उन्होनें न सिर्फ ये कविता लिखी बल्कि इसके लिए अपनी आवाज भी दी। इस फिल्म में संजय मिश्रा, रणवीर शौरी और तिलोत्तमा शोम नजर आएगें। इसके डायरेक्टर नील माधव पांडा हैं।


इन दिनों दिल्ली एनसीआर और वहां आसपास के इलाकों में स्मॉग के बादल छाए हैं, और लोग अपने ही हाथों किए पॉल्युशन से परेशान हैं। ऐसे में ये कविता वाकई दिल छू रही है, और ताजा हालतों का सटीक बयां भी कर रही है, ये कविता कुछ इस तरह है...
बंजारे लगते हैं "मौसम"
मौसम बेघर होने लगे हैं

जंगल, पेड़, पहाड़, समंदर 
इंसां सब कुछ काट रहा है
छील-छील के खाल जमीं की 
टुकड़ा टुकड़ा बांट रहा है
आसमान से उतरे मौसम
सारे बंजर होने लगे हैं
मौसम बेघर होने लगे हैं

दरियाओं पे बांध लगे हैं
फोड़ते हैं सर चट्टानों से
"बांदी" लगती हे ये जमीन
डरती है अब इंसानों से 
बहती हवा पर चलने वाले 
पांव पत्थर होने लगे हैं 
मौसम बेघर होने लगे हैं

Created On :   11 Nov 2017 6:36 AM GMT

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