डिजिटल डेस्क, जम्मू। जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट ने जर्नलिस्ट और लेखक गौहर गिलानी की याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है। गिलानी ने उनके खिलाफ लगाए गए गैरकानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम (यूएपीए) को चुनौती दी थी। अदालत ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से लगभग एक घंटे तक मामले को सुना और शाम तक इस पर फैसला आने की संभावना है। जस्टिस अली मोहम्मद मगरे ने इस मामले की सुनवाई की।

गिलानी के वकील सलीह पीरज़ादा ने अपनी याचिका में उनके मुवक्किल के केस और  साइबर पुलिस स्टेशन के अधिकार क्षेत्र के खिलाफ सवाल उठाया है। याचिका में गिरफ्तारी पर रोक लगाने और एफआईआर को रद्द करने की भी मांग की गई है। याचिकाकर्ता ने तर्क देते हुए कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के दायरे से परे अपराधों की जांच करने के लिए प्रतिवादी के पास कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है। वहीं गिलानी ने कहा कि उन पर लगे सभी आरोप बेबुनियाद हैं। उन्होंने कहा, "मैंने हमेशा सोशल मीडिया के माध्यम से हिंसा के सभी रूपों की निंदा की है।"

क्या है मामला?
कश्मीर जोन की साइबर पुलिस ने मंगलवार को गिलानी के खिलाफ UAPA के तहत मामला दर्ज किया था। सोशल मीडिया के माध्यम से गैरकानूनी गतिविधियों को बढ़ावा देने वाले पोस्ट और लेखों के आरोप में उन पर ये मामला दर्ज किया गया था। जम्मू और कश्मीर पुलिस ने कहा था कि गौहर गिलानी ने सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर जो पोस्ट लिखी थीं उससे राष्ट्रीय अखंडता, संप्रभुता और भारत की सुरक्षा को लेकर बड़ा खतरा हो सकता है। साथ ही यह भी उल्लेख किया कि गिलानी की गैरकानूनी गतिविधियों में कश्मीर घाटी में आतंकवाद का महिमामंडन करना और लोगों के मन में डर पैदा करना शामिल है।

Created On :   24 April 2020 10:54 AM GMT

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