भगत सिंह की फांसी के लिए जिम्मेदार थे महात्मा गांधी!
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली. 23 मार्च यानी, भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव का शहीदी दिवस. "आदमी को मारा जा सकता है उसके विचार को नहीं। बड़े साम्राज्यों का पतन हो जाता है लेकिन विचार हमेशा जीवित रहते हैं और बहरे हो चुके लोगों को सुनाने के लिए ऊंची आवाज जरूरी है।" बम फेंकने के बाद भगतसिंह द्वारा फेंके गए पर्चों में यह लिखा था। शहीद-ए-आजम भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने देश के लिए हंसते-हंसते मौत को गले लगा लिया था। 23 मार्च 1931 को जब लाहौर में उन्हें फांसी दी गई तो वह उस वक्त वो मुस्कुरा रहे थे। लेकिन भगत सिंह और बाकी शहीदों को फांसी दिए जाने के वक्त लाहौर जेल में बंद सभी कैदियों की आंखें नम थीं।
आज भी जब कभी भगत सिंह की मौत का जिक्र होता है तो इसका गुनहगार महात्मा गांधी को माना जाता है। लोगों द्वारा यह कहा जाता है कि अगर गांधी चाहते तो वे भगत सिंह की फांसी रुक सकती थी। भगत सिंह के जीवन पर बनाई गई तमाम फिल्में हों या सोशल मीडिया पर युवाओं के गर्म जोशी से भरे नारें, उनमें सदैव ही महात्मा गांधी को एक नकारात्मक भूमिका में दिखाया जाता हैं। युवाओं के आक्रोष और भगत सिंह पर बनीं तमाम क्रांतिकारी फिल्मों में भी भगत सिंह की फांसी के लिए गांधी को ही असली खलनायक के रूप में दर्शाया जाता है।
महात्मा गांधी ने हमेशा हिंसा का विरोध किया है। वह किसी भी व्यक्ति को किसी भी प्रकार की सजा देने के विरोधी रहे थे। गांधी हमेशा से ही किसी को भी मृत्युदंड दिए जाने का विरोध करते आए हैं। गांधी का यह मानना था कि किसी की जान लेने का हक केवल उसे ही है जिसने वह प्राण दिया है यानी किसी की मृत्यु निर्धारित करने वाले हम कोई नही हैं उसका फैसला केवल ईश्वर ही कर सकते हैं।
गांधी का भाषण
गांधी ने 26 मार्च 1931 को अपने कराची अधिवेशन में दिए गए भाषण में भगत सिंह पर बोलते हुए कहा था कि किसी खूनी,चोर या डाकू को भी सजा देना मेरे धर्म के विरुद्ध है। महात्मा गांधी की इस सभा में नौजवान भारत सभा के सदस्य भी बड़ी संख्या में मौजूद थे और तभी भीड़ में से किसी एक ने गांधी से चिल्लाकर पूछा- आपने भगत सिंह को बचाने के लिए क्या किया है।
इस पूछे गए सवाल का गांधी ने कहा कि मैं वाइसराय को जिस तरह समझा सकता था मैने उस तरह से उन्हें समझाने की पूरी कोशिश की। गांधी ने कहा कि भगत सिंह के परिवार वालों के साथ 23 मार्च को हुई आखिरी मुलाकात के दिन भी मैंने वाइसराय को एक खत लिखा था लेकिन वे सब बेकार हुआ। वाइसराय को लिखे उस पत्र में भगत सिंह को बचाने के लिए गांधी ने वाइसराय से तमाम मिन्नतें की थी। गांधी ने अपने पत्र में वाइसराय को देश की जनता का वास्ता देते हुए लिखा था कि भगत सिंह की सजा में रियायत दी जाए।
मैं देश के नवयुवकों को इस बात की चेतावनी देता हूं कि वे उनके पथ का अवलंबन न करें। हमें भरसक उनके अभूतपूर्व त्याग, अदम्य उत्साह और विकट साहस का अनुकरण करना चाहिए, परंतु उन गुणों का उपयोग उनकी तरह न करना चाहिए। देश की स्वतंत्रता हिंसा और हत्या से प्राप्त न होगी"।
गांधी ने अपने पत्र में कहा कि मौत की सजा का फैसला होने के बाद तो वह कदम वापस नहीं लिया जा सकता लेकिन यदि आप यह सोचते हैं कि फैसले में थोड़ी सी भी गुंजाइश अभी बाकि है तो मैं आपसे यह प्रार्थना करूंगा कि इस सजा को आगे और विचार करने के लिए स्थगित कर दिया जाए।
Created On :   22 March 2018 9:53 PM IST