सुप्रीम कोर्ट ने जघन्य अपराधों में किशोरों के वयस्कों के तौर पर ट्रायल को लेकर मूल्यांकन के लिए दिशानिर्देशों का किया समर्थन
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि दुनिया मानती है कि कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चों के साथ वयस्कों की तुलना में अलग व्यवहार किया जाना चाहिए। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग और अन्य को जघन्य अपराधों में वयस्क के रूप में ट्रायल के लिए बच्चे के प्रारंभिक मूल्यांकन पर उचित दिशानिर्देश पारित करने पर विचार करने को कहा। अदालत ने कहा कि इन दिशानिर्देशों से जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड यानी किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) को यह तय करने में मदद और सुविधा मिलनी चाहिए कि क्या 16-18 वर्ष की आयु के बच्चे को एक जघन्य अपराध के लिए वयस्क के तौर पर पेश किया जाना चाहिए?
जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस विक्रम नाथ की बेंच ने कहा कि किसी व्यक्ति के अपराध करने के कई कारण हो सकते हैं - दुश्मनी, गरीबी, लालच, मन की विकृति, जबरदस्ती, परिवार और दोस्तों की मदद करना आदि।
अदालत ने यह नोट किया कि बच्चों को अधिक तात्कालिक संतुष्टि की ओर अग्रसर किया जा सकता है और वे अपने कार्यों के दीर्घकालिक परिणामों को गहराई से समझने में सक्षम नहीं हो सकते हैं। पीठ ने कहा, वे तर्क के बजाय भावनाओं से प्रभावित होने की अधिक संभावना रखते हैं। शोध से पता चलता है कि युवा अपने लिए जोखिम जानते हैं। इस ज्ञान के बावजूद, किशोर वयस्कों की तुलना में जोखिम भरा व्यवहार करते हैं (जैसे नशीली दवाओं और शराब का उपयोग, असुरक्षित यौन गतिविधि, खतरनाक ड्राइविंग या अपराधी जैसा व्यवहार)।
किशोर न्याय अधिनियम, 2015 का हवाला देते हुए, पीठ ने कहा कि वह संबंधित पहलुओं पर जेजेबी द्वारा प्रारंभिक मूल्यांकन की सुविधा के लिए कोई दिशानिर्देश या ढांचा नहीं रखते हैं और जेजेबी केवल एक अनुभवी मनोवैज्ञानिक या एक मनोसामाजिक कार्यकर्ता या अन्य विशेषज्ञ से सहायता प्राप्त कर सकता है।
अदालत की ओर से आगे कहा गया कि दुनिया इस बात को स्वीकार करती है कि कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चों के साथ वयस्कों की तुलना में अलग व्यवहार किया जाना चाहिए। बेंच की ओर से फैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति नाथ ने कहा, इसका कारण यह है कि बच्चे का दिमाग परिपक्व नहीं हुआ होता है और यह अभी भी विकसित हो रहा होता है। इसलिए, बच्चे का विभिन्न मानकों पर परीक्षण किया जाना चाहिए और उसे मुख्यधारा में लाने का अवसर दिया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि अधिनियम की धारा 15 के तहत प्रारंभिक मूल्यांकन का कार्य विशेषज्ञता की आवश्यकता के साथ एक नाजुक कार्य है और मामले की सुनवाई के संबंध में इसके अपने निहितार्थ हैं। उन्होंने 94 पन्नों के फैसले में कहा कि इस मामले को देखते हुए यह उचित लगता है कि इस संबंध में उचित और विशिष्ट दिशा-निर्देश तैयार किए जाएं।
अधिनियम अनिवार्य करता है, जब एक बच्चे ने एक जघन्य अपराध किया है और उसकी वर्ष 16 वर्ष से ऊपर है, ऐसे में किशोर न्याय बोर्ड और बच्चों की अदालत प्रारंभिक मूल्यांकन करेगी और उचित आदेश पारित करेगी। प्रारंभिक मूल्यांकन के महत्व पर विस्तार से बताते हुए, पीठ ने कहा कि मूल्यांकन की रिपोर्ट 16 से 18 वर्ष की आयु के बच्चे के मामले को बच्चों की अदालत में स्थानांतरित करने के सार्थक प्रश्न को तय करती है।
न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि मानसिक क्षमता के मूल्यांकन और कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे के परिणामों को समझने की क्षमता को एक साधारण और नियमित कार्य की स्थिति में नहीं लाया जा सकता है। उन्होंने कहा, एक निर्णय लेने की प्रक्रिया, जिस पर कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे का भाग्य अनिश्चित रूप से निर्भर करता है, एक सावधानीपूर्वक मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन किए बिना नहीं लिया जाना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने 2018 के पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली सीबीआई और पीड़ित के पिता की अपील को खारिज कर दिया, जिसने गुरुग्राम के एक निजी स्कूल के कक्षा 11वीं के छात्र को एक दूसरी कक्षा के बच्चे की हत्या के मामले में वयस्क के रूप में पेश करने के फैसले को रद्द कर दिया था।
उच्च न्यायालय ने बुद्धि, परिपक्वता और शारीरिक फिटनेस पर नए सिरे से विचार करने का निर्देश दिया था। शीर्ष अदालत ने कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे को पर्याप्त अवसर न मिलने पर त्रुटियों को ठीक करने के बाद मामले को नए सिरे से विचार करने के लिए उच्च न्यायालय के आदेश पर सहमति व्यक्त की।
बता दें कि गुरुग्राम के एक नामी निजी स्कूल के टॉयलेट में दूसरी कक्षा के एक छात्र की हत्या कर दी गई थी। बच्चे का गला रेतकर उसे टॉयलेट में छोड़ दिया गया था। इस मामले में 11वीं के छात्र को गिरफ्तार किया गया था और उस वक्त उसकी उम्र 16 साल थी। अब वह बालिग हो चुका है, मगर ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि अब उसका ट्रायल बालिग के तौर पर होना चाहिए या अपराध के वक्त के की उम्र के हिसाब से इसे देखा जाना चाहिए।
(आईएएनएस)
डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ bhaskarhindi.com की टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.
Created On :   13 July 2022 10:30 PM IST