हाईकोर्ट : अब मालेगांव मामले की रोजाना सुनवाई, एक मामले में कहा - बेटी को शिक्षा देना पिता का संवैधानिक कर्तव्य

High Court: Now daily hearing will start of Malegaon blast case
हाईकोर्ट : अब मालेगांव मामले की रोजाना सुनवाई, एक मामले में कहा - बेटी को शिक्षा देना पिता का संवैधानिक कर्तव्य
हाईकोर्ट : अब मालेगांव मामले की रोजाना सुनवाई, एक मामले में कहा - बेटी को शिक्षा देना पिता का संवैधानिक कर्तव्य

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने मालेगांव बम धमाके के मामले में आरोपी भारतीय जनता पार्टी की सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, कर्नल प्रसाद पुरोहित व समीर कुलकर्णी के मामले से मुक्त किए जाने के आवेदन पर 18 नवंबर से रोजाना सुनवाई करने की बात कही है। इससे पहले मुंबई की एक विशेष अदालत ने तीनों आरोपियों को मामले से मुक्त करने से इंकार कर दिया था। निचली अदालत के इस आदेश के खिलाफ तीनों ने हाईकोर्ट में आवेदन दायर कर अपील की है। बुधवार को न्यायमूर्ति एसएस शिंदे के सामने तीनों आरोपियों के आवेदन सुनवाई के लिए आए। पर 18 नवंबर से रोजाना उनके आवेदन पर सुनवाई करने की बात कही है। इससे पहले न्यायमूर्ति ने कहा कि कुछ समय बाद दिवाली की छुटि्टयां शुुरु हो जाएंगी। आरोपियों के आवेदन पर सुनवाई में समय लगेगा। इसलिए फिलहाल हम आवेदन पर सुनवाई नहीं करेंगे। सभी आवेदनों पर 18 नवंबर से रोजाना सुनवाई की जाएगी। गौरतलब है कि इन तीनों आरोपियों के खिलाफ राष्ट्रीय जांच एजेंसी की विशेष अदालत में मुकदमा भी चल रहा है। साल 2008 में मालेगांव में हुए धमाके में 6 लोगों की मौत हो गई थी जबकि सौ लोग घायल हो गए थे। 


      
बेटी को शिक्षा देना पिता का संवैधानिक कर्तव्य

फीस व स्कूल से जुड़े मुद्दे को लेकर एक पिता से टकराव के कारण लड़की के शिक्षा से वंचित होने पर बांबे हाईकोर्ट ने नाराजगी जाहिर की है। हाईकोर्ट ने साफ किया है कि बेटी को शिक्षा देना पिता का संवैधानिक कर्तव्य है और प्राथमिक शिक्षा पाना लड़की का संवैधानिक अधिकार। पिता के स्कूली से संबंधी शिकायतों की वजह से बच्ची के हित व अधिकार प्रभावित नहीं होने चाहिए। इससे पहले न्यायमूर्ति एससीधर्माधिकारी व न्यायमूर्ति गौतम पटेल की खंडपीठ ने पाया कि याचिकाकर्ता (पिता) के दो बच्चे कल्याण स्थित डीएसडी स्कूल में पढते थे। फीस व दूसरे मुद्दे को लेकर से हुए मतभेद के चलते स्कूल ने याचिकाकर्ता के बेटे व बेटी को स्कूल से निकाल दिया । कुछ समय बाद याचिकाकर्ता पिता ने बेटे को दूसरे स्कूल में दाखिला दिला दिया लेकिन 11 साल की बेटी अभी घर बैठी है। इस दौरान याचिकाकर्ता ने स्कूल के शिक्षकों व अन्य अधिकारियों के खिलाफ बाल अधिकार व मानव अधिकार आयोग से शिकायत के साथ ही याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। स्कूल ने फीस न भरने के कारण याचिकाकर्ता के बच्चों को स्कूल से निकाल दिया था। याचिका में मांग की गई है कि उनकी बेटी को स्कूल में दोबारा दाखिला देने का निर्देश दिया जाए और साथ ही स्कूल के खिलाफ जांच की जाए। इस दौरान स्कूल की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता एनआर बूबना ने याचिका में उठाए गए मुद्दों को निराधार बताया। उन्होंने कहा कि स्कूल अभिभावक-स्कूल एसोसिएशन (पीटीए) द्वारा मंजूर फीस ही ले रहा है। इसके अलावा फीस को लेकर पीटीए कानूनी विकल्प अपना सकता है। व्यक्तिगत स्तर पर अभिभावक इस मामले में सीधे हाईकोर्ट में याचिका नहीं दायर कर सकते हैं। जबकि सरकारी वकील ने खंडपीठ को बताया कि शिक्षा अधिकारी ने याचिकाकर्ता के बेटी के लिए तीन स्कूल खोजे थे लेकिन याचिकाकर्ता के अनुचित बर्ताव के कारण इन स्कूलों ने दाखिला देने से मना कर दिया। वहीं इस दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि स्कूलवालों ने मेरे मुवक्किल के साथ बदसलूकी की है। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ कहा कि हर 6 से 14 साल के बच्ची का प्राथमिक शिक्षा पाने का संवैधानिक अधिकार है। जबकि बेटी को स्कूल भेजना पिता का संवैधानिक कर्तव्य है। चूकी पिता की अपने संवैधानिक कर्तव्यों के निवर्हन मे विफलता नजर आ रही है। इसलिए हम बच्ची की शिक्षा के लिए पहल करेंगे। बशर्ते पिता हमे लिखित रुप से यह आश्वसन दे कि जिस स्कूल में उसकी बेटी को प्रवेश दिया जाएगा वह उस स्कूल की शिक्षा, प्रवेश व कामकाज में दखल नहीं देगा। यहीं नहीं फीस को लेकर भी शिक्षा अधिकारी के पास पड़ताल नहीं करेगा। खंडपीठ ने कहा कि स्कूल के साथ अभिभावक की भी जिम्मेदारी होती है। खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को अंडरेटेकिंग देने के लिए 10 अक्टूबर तक का समय दिया है। 
 

Created On :   9 Oct 2019 4:36 PM GMT

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