क्या होता है पितृ पक्ष, क्या होगा श्राद्ध का सही समय 

Pitru Paksha 2018: Know About Pitru Paksh, Time and Its Importance
क्या होता है पितृ पक्ष, क्या होगा श्राद्ध का सही समय 
क्या होता है पितृ पक्ष, क्या होगा श्राद्ध का सही समय 

डिजिटल डेस्क, भोपाल। पितृ पक्ष के समय लोग अपने पूर्वजों का तर्पण कराते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो लोग पितृ पक्ष में पूर्वजों का तर्पण नहीं करते, उन्हें पितृदोष लगता है। इससे मुक्ति पाने का सबसे आसान उपाय पितरों का श्राद्ध कराना है। श्राद्ध करने के बाद ही पितृदोष से मुक्ति मिलती है। पितृ-पक्ष 24 सितंबर 2018 सोमवार से आरंभ हो रहा है।  यह 9 अक्टूबर 2018  मंगलवार तक रहेगा। यहां देखें तिथियों की पूरी सूची और जानें, किस दिन कौन सा श्राद्ध है।

पहला श्राद्ध : 24 सितंबर 2018, सोमवार 
तिथि - पूर्णिमा, जिनकी मृत्यु पूर्णिमा तिथि को हुई हो, उनका श्राद्ध पितृ पक्ष के पहले दिन होता है।

श्राद्ध करने का सही समय
कुतुप मुहूर्त : 11:48 से 12:36 तक 
रोहिण मुहूर्त : 12:36 से 13:24 तक 
अपराह्न काल : 13:24 से 15:48 तक


24 सितंबर 2018 सोमवार पूर्णिमा पहला श्राद्ध 
25 सितंबर 2018 मंगलवार प्रतिपदा दूसरा श्राद्ध 
26 सितंबर 2018 बुधवार द्वितीय तीसरा श्राद्ध 
27 सितंबर 2018 गुरुवार चतुर्थ श्राद्ध 
28 सितंबर 2018 शुक्रवार चतुर्थी पांचवा श्राद्ध 
29 सितंबर 2018 शनिवार षष्ठी श्राद्ध 
30 सितंबर 2018 रविवार सप्तमी श्राद्ध 
1 अक्टूबर 2018 सोमवार अष्टमी श्राद्ध 
2 अक्टूबर 2018 मंगलवार नवमी श्राद्ध 
3 अक्टूबर 2018 बुधवार दशमी श्राद्ध 
4 अक्टूबर 2018 गुरुवार एकादशी श्राद्ध 
5 अक्टूबर 2018 शुक्रवार द्वादशी श्राद्ध 
6 अक्टूबर 2018 शनिवार त्रयोदशी श्राद्ध 
7 अक्टूबर 2018 रविवार चतुर्दशी श्राद्ध 
8 अक्टूबर 2018 सोमवार सर्वपितृ अमावस्या, सोमंती अमावस्या 
9 अक्टूबर 2018 मंगलवार मातामह श्राद्ध महालय अमावस्या


पितृ पक्ष के अंतिम दिन को महालय अमावस्या के नाम से जाना जाता है। इसे सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या भी कहते हैं। इस दिन उन सभी मृत पूर्वजों का तर्पण करते हैं, जिनकी कोई तिथि या तारीख नहीं मालूम हो और जिनका किसी न किसी रूप में हमारे जीवन में योगदान रहा लेकिन वो हमारे रिश्ते में कुछ नहीं थे।

इस दिन सभी उनके प्रति आभार प्रक्रट करते हैं और उनसे जाने-अनजाने में हुई अपनी भूल-चूक की क्षमा मांगी जाती हैं। इस दिन किसी भी मृत व्यक्ति का श्राद्ध किया जा सकता है विशेष रूप से वो लोग जो अपने मृत पूर्वजों की तिथि नहीं जानते हैं उनका तर्पण करवा सकते हैं।

माना जाता है कि अगर आपके पूर्वज या पितृ प्रसन्न हैं, तो दुनिया की कोई भी हस्ती आपका एक बाल भी बांका नहीं कर सकती और अगर रूठ जाए तो पूरे परिवार का ही सर्वनाश हो जाता है। पितृ का अर्थ आपके पूर्वज और श्राद्ध का मतलब श्रद्धा। अपने पूर्वजों का श्रद्धापूर्वक सम्मान करना ही श्राद्ध होता है। ऐसा कहा जाता है कि मरणोपरांत भी आत्मा को शांति नहीं मिलती वो भटकती रहती है।

पूर्वजों की संतानें जौं और चावल का पिंड करते हैं। कहा जाता है कि इस समय में हमारे पूर्वज कौए का रूप धारण कर के आते हैं और पिंड लेकर चले जाते हैं। श्राद्ध के समय लोग ब्राह्मणों को भोजन कराने के साथ-साथ दान और भंडारे भी करते हैं।

पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण वर्षभर तक प्रसन्न रहते हैं। धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि पितरों का पिण्ड दान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धान्य आदि की प्राप्ति करता है।

भविष्य पुराण के अनुसार श्राद्ध 12 प्रकार के होते हैं, जो इस प्रकार हैं-

1. नित्य, 2. नैमित्तिक, 3. काम्य, 4. वृद्धि, 5. सपिण्डन, 6. पार्वण, 7. गोष्ठी, 8. शुद्धर्थ, 9. कर्मांग, 10 . दैविक, 11. यात्रार्थ, 12. पुष्टयर्थ। आज हम आपको श्राद्ध से जुड़ी कुछ विशेष बातें बता रहे हैं, जो इस प्रकार हैं।

श्राद्धकर्म में गाय का घी, दूध या दही काम में लेना चाहिए। यह ध्यान रखें कि गाय को बच्चा हुए दस दिन से अधिक हो चुके हैं। दस दिन के अंदर बछ़डे को जन्म देने वाली गाय के दूध का उपयोग श्राद्ध कर्म में नहीं करना चाहिए।

श्राद्ध में चांदी के बर्तनों का उपयोग व दान पुण्यदायक तो है ही राक्षसों का नाश करने वाला भी माना गया है। पितरों के लिए चांदी के बर्तन में सिर्फ पानी ही दिए जाएं तो वह अक्षय तृप्तकारक होता है। पितरों के लिए अर्घ्य, पिण्ड और भोजन के बर्तन भी चांदी के हों तो और भी श्रेष्ठ माना जाता है।

श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाते समय परोसने के बर्तन दोनों हाथों से पकड़कर लाने चाहिए, एक हाथ से लाए अन्न पात्र से परोसा हुआ भोजन राक्षस छीन लेते हैं।

ब्राह्मण को भोजन मौन रहकर एवं व्यंजनों की प्रशंसा किए बिना करना चाहिए क्योंकि पितर तब तक ही भोजन ग्रहण करते हैं जब तक ब्राह्मण मौन रहकर भोजन करें।

जो पितृ शस्त्र आदि से मारे गए हों उनका श्राद्ध मुख्य तिथि के अतिरिक्त चतुर्दशी को भी करना चाहिए। इससे वे प्रसन्न होते हैं। श्राद्ध गुप्त रूप से करना चाहिए। पिंडदान पर साधारण या नीच मनुष्यों की दृष्टि पहले से हो तो वह पितरों को नहीं पहुंचता।

श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाना आवश्यक है, जो व्यक्ति बिना ब्राह्मण के श्राद्ध कर्म करता है, उसके घर में पितर भोजन नहीं करते बल्कि श्राप देकर लौट जाते हैं। ब्राह्मण हीन श्राद्ध से मनुष्य महापापी होता है।

श्राद्ध में जौ, कांगनी, मटर और सरसों का उपयोग श्रेष्ठ रहता है। तिल की मात्रा अधिक होने पर श्राद्ध अक्षय हो जाता है। वास्तव में तिल पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करते हैं। कुशा (एक प्रकार की घास) राक्षसों से बचाते हैं।

श्राद्ध करते समय इन बातों का विशेष ध्यान रखें

1.जब श्राद्ध के दिन होते हैं तब आपके पूर्वज किसी भी रूप में आपके घर आ सकते हैं इसलिए किसी भी आने-वाले को घर से बाहर न भगाएं। 
2. पितृ पक्ष में पशु पक्षियों को दाना-पानी अवश्य दें इससे बहुत लाभ मिलता है। 
3.पितृ पक्ष के दिनों में मांस-मदिरा का प्रयोग नहीं करें अन्यथा जो पुण्य किया उसका कोई लाभ नहीं प्राप्त होगा। 
4.तर्पण में काले तिल का ही प्रयोग करें। 
5.पितृ पक्ष में ब्राह्मणों को भोजन करवानएं। 
6.कुत्ते, बिल्ली, गाय अन्य किसी भी पशु,पक्षी को डराना, भगाना या हानि नहीं पहुंचाना चाहिए।

पितृों के श्राद्ध के लिए गया जी जो कि बिहार में है वह स्थान बहुत ही उत्तम माना गया है। कहा जाता है कि यहां पर भगवान श्री राम ने भी अपने पिता का पिंड दान किया था। जो कोई लावारिस होते हैं या जिसकी आगे संतान नहीं होती, उनका भी गया जी की फल्गु नदी में पिंडदान किया जाता है। गया जी में भगवान विष्णु का विशेष मंदिर है। 

Created On :   22 Sep 2018 10:56 AM GMT

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