संसद में हंगामे के चलते अटका 'दिल्ली सेवा बिल', मंगलवार को फिर पेश होने के आसार, जानिए पास हुआ तो दिल्ली में क्या बदलेगा?
- सदन में हंगामे का दौर जारी
- कल केंद्र सरकार और केजरीवाल होंगे आमने-सामने
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग को लेकर राजधानी दिल्ली में केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के बीच तनातनी जारी है। सोमवार को केंद्र सरकार लोकसभा में दिल्ली सेवा बिल पेश करने वाली थी। लेकिन हंगामे के चलते लोकसभा को स्थगित करना पड़ा। अब यह बिल मंगलवार को पेश किया जाएगा। जानकारी के मुताबिक, सभी सांसदों को यह बिल रविवार को ही सर्कुलेट कर दिया गया था। लेकिन सोमवार को हंगामे के चलते यह पेश नहीं किया गया। इस बिल को लेकर दिल्ली सरकार पहले से ही केंद्र सरकार पर हमलावर नजर आ रही है। माना जा रहा है कि मंगलवार को भी इस बिल के पेश होने से पहले हंगामा हो सकता है।
ऐसे में समझने की कोशिश करते हैं कि दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग से संबंधित संशोधन विधेयक को लेकर लोकसभा में इतना हंगामा क्यों मचा है और इस बिल में ऐसा क्या है जिसके चलते आम आदमी पार्टी के नेता इतना बखेड़ा खड़ा कर रहे हैं? बता दें कि, इस राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन अधिनियम (NCT) दिल्ली संशोधन बिल 2023 के जरिए राजधानी के प्रशासनिक और लोकतांत्रिक संतुलन का प्रावधान है। आइए जानते हैं कि अगर यह बिल सदन से पेश होकर कानून बनता है तो क्या बदलाव देखने को मिलेंगे?
गौरतलब है कि दिल्ली में अधिकारों के वर्चस्व को लेकर केंद्र सरकार और केजरीवाल सरकार के बीच लंबे समय से खींचतान जारी है। दिल्ली में राज्य सरकार किस तरह से काम करेगी, इसके लिए एक रूपरेखा तैयार की गई है। दिल्ली में सरकार के कामकाज के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (GNCTD) अधिनियम, 1991 लागू किया गया है। हालांकि, साल 2021 में केंद्र सरकार ने इस बिल को लेकर कुछ संशोधन किए थे। जिसे राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन अधिनियम (NCT) 2021 के रूप में भी जानते हैं।
जानिए क्या कहता है कानून?
इस संशोधन में केंद्र सरकार ने दिल्ली में सरकार के संचालन और कामकाज को लेकर कुछ बदलाव किया था। साथ ही, केंद्र सरकार इस संशोधन के जरिए दिल्ली के उपराज्यपाल को अतिरिक्त अधिकार दिए थे। संशोधन के मुताबिक, राज्य सरकार को कोई फैसला लेने से पहले एलजी की अनुमति लेनी होगी। (GNCTD) अधिनियम में किए गए संशोधन के मुताबिक, "राज्य की विधानसभा द्वारा बनाए गए किसी भी कानून में सरकार का मतलब उपराज्यपाल होगा।" इसका मतलब यह है कि उपराज्यपाल का अंतिम मुहर ही फैसले के लिए सर्वोपरि होगा। जिसके बाद केजरीवाल ने इस संशोधन को लेकर आपत्ति जताई थी। इसके बाद केजरीवाल ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी कि राजधानी में भूमि और पुलिस जैसे मामलों को छोड़कर अन्य सभी मामलों में दिल्ली की चुनी हुई सरकार की सर्वोच्चता होनी चाहिए।
5 मई को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुनाया। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने कहा कि दिल्ली (NCR) में विधायी शक्तियों के बाहर के क्षेत्रों को छोड़कर सेवाओं और प्रशासन से जुडे़ सभी अधिकारी चुनी हुई सरकार के पास होगा। लेकिन, पुलिस, पब्लिक ऑर्डर और लैंड से जुड़े हुए अधिकार केंद्र सरकार के पास रहेंगे। अदालत ने अपने फैसले में कहा, "अधिकारियों की तैनाती और तबादले का अधिकार दिल्ली सरकार के पास रहेगा। चुनी हुई सरकार के पास प्रशासनिक सेवा का अधिकार होगा और उपराज्यपाल को सरकार की सलाह माननी होगी।"
मई में केंद्र सरकार ने जारी किया था अध्यादेश
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदलने के लिए केंद्र सरकार ने 19 मई को एक अध्यादेश लाई। इसके बाद केजरीवाल ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि इससे दिल्ली सरकार की सारी शक्तियां कम हो गई हैं। दिल्ली सरकार का कहना है कि इस अध्यादेश के चलते निर्वाचित सरकार के ऊपर से सिविल सर्विसेज का कंट्रोल खत्म हो जाएगा। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सिविल सेवा प्राधिकरण (एनसीसीएसए) को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि इसके अध्यक्ष दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री रहेंगे, लेकिन वे हमेशा अल्पमत में रहने वाले हैं। समिति के दो अधिकारी का कभी भी दिल्ली सरकार के खिलाफ वोट कर सकते हैं। इसके अलावा वह सीएम की अनुपस्थिति में भी बैठक बुला सकते हैं। बता दें कि, जब सदन नहीं चल रही होती है तो अध्यादेश लाने के लिए केंद्र सरकार राष्ट्रपति से सिफारिश करती है। लेकिन अध्यादेश को छह महीने के अंदर संसद में पेश करना होता है। ताकि, अध्यादेश कानून की शक्ल ले सके।
कानून में क्या बदलाव किए गए?
19 मई को केंद्र सरकार ने जो अध्यादेश लाई थी, इसमें अब केंद्र सरकार ने कुछ और अहम बदलाव किए हैं। मोदी सरकार सदन पलट पर बिल को पेश करने से पहले इस अध्यादेश में 3A और 45D में अहम बदलाव किए हैं। अध्यादेश के मुताबिक, दिल्ली विधानसभा को सेवाओं से जुडे़ कानून बनाने का अधिकार नहीं होगा। लेकिन प्रस्तावित बिल में एक अन्य धारा 45D के तहत प्रावधानों को कमजोर कर दिया गया है। जानकारी के मुताबिक, यह धारा बोर्डों, आयोगों, प्राधिकरणों और अन्य वैधानिक निकायों के लिए भी संबंधित है। इस धारा के मुताबिक, इन क्षेत्रों में भी एलजी/ राष्ट्रपति सदस्यों/अध्यक्षों आदि की नियुक्ति या नामांकन करने की विशेष शक्तियां प्रदान की हैं। आपकों बता दें कि, यह अधिनियम राष्ट्रपति को यह शक्ति केवल संसद के अधिनियम के माध्यम से गठित निकायों, बोर्डों, आयोगों के संबंध में प्रदान करता है।
Created On :   31 July 2023 7:29 PM IST