बिहार विधानसभा चुनाव 2025: जानिए भौगोलिक स्थिति से लेकर सियासी समीकरण और राजनीतिक इतिहास के दिलचस्प से भरी नेपाल से सटी अररिया विधानसभा सीट का चुनावी इतिहास

डिजिटल डेस्क, पटना। बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है, बिहार में दो चरणों में वोटिंग होनी है, पहला चरण 6 नवंबर को और दूसरा चरण 11 नवंबर को होगा जबकि वोटों की गिनती 14 नवंबर को होगी। भारत-नेपाल सीमा के पास बसे अररिया जिले की अररिया विधानसभा सीट का अलग ही मिजाज है, यहां की भौगोलिक स्थिति से लेकर सियासी समीकरण और राजनीतिक इतिहास दिलचस्पी से भरा हुआ है। अररिया नेपाल से सटे होने के साथ साथ बांग्लादेश और भूटान से भी नजदीकी रखता है।
जिले का अररिया नाम पड़ने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प और रोचक है, स्थानीय स्तर पर बताया जाता है कि ईस्ट इंडिया कंपनी के जिला कलेक्टर अलेक्जेंडर जॉन फोर्ब्स की कोठी को स्थानीय लोग 'रेसिडेंशियल एरिया' या 'आर-एरिया' कहते थे, धीरे धीरे समय के साथ ढलकर इसका उच्चारण अररिया हो गया।
सियासी समीकरण में यहां मुस्लिम और दलित वोट निर्णायक भूमिका में होते है, मुस्लिम मतदाता 56.3 प्रतिशत जबकि 12.8 प्रतिशत अनुसूचित जाति वोटर्स है, जो चुनाव में निर्णायक भूमिका में होते है। अररिया सीट से कभी कांग्रेस तो कभी बीजेपी और कभी निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज की है। अररिया विधानसभा क्षेत्र राज्य की सामाजिक-आर्थिक गतिविधियों में विशेष भूमिका निभाता है। अररिया विधानसभा सीट क्षेत्रीय और राष्ट्रीय राजनीति में अपनी रणनीतिक स्थिति के कारण हमेशा चर्चा में रहती है।
इस विधानसभा सीट का चुनावी इतिहास रोचक रहा है, दो बार लगातार चुनाव जीतने के बाद वह पार्टी तीसरी बार चुनाव नहीं जीत सकी। इस लिहाज से 2025 में कांग्रेस के लिए यहां की राह मुश्किल हो सकती है, क्योंकि 2015 और 2020 में कांग्रेस यहां से चुनाव जीत चुकी है।
अररिया विधानसभा पर 1951 से 2020 तक 18 विधानसभा चुनाव हुए हैं, जिनमें से कांग्रेस ने 7 बार 1957, 1967, 1969, 1977, 1985, 2015 और 2020 में अपना दबदबा कायम रखा, 2020 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के अबिदुर रहमान ने जदयू की उम्मीदवार शगुफ्ता अजीम को चुनावी मात दी थी। निर्दलीय उम्मीदवारों ने चार बार 1952, 1962, 1990 और 2000 में जीत हासिल की है। बीजेपी ने दो बार (2005 के दोनों चुनाव) और लोजपा ने 2009 उपचुनाव और 2010 के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की। अन्य दलों ने 1-1 बार जीत दर्ज की है।
नेपाल से सटे अररिया जिले की विविध सांस्कृतिक पृष्ठभूमि और कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था है। इस क्षेत्र से सुवारा, काली, परमार और कोली जैसी नदियां होकर गुजरती हैं। यहीं की चुनावी जीत में मुस्लिम -एससी वोटर्स अहम भूमिका में होते है, लेकिन बेरोजगारी -पलायन यहां की प्रमुख समस्या आज भी बनी हुई है, अररिया आज भी पिछड़ा हुआ है। इलाके में शिक्षा, स्वास्थ्य के साथ बेसिक सुविधाओं का अभाव है।
Created On :   7 Oct 2025 4:24 PM IST