एक के बाद एक नेता छोड़ रहे गुलाम नबी आजाद का साथ, घाटी में इस वजह से हो रही पार्टी कमजोर, आजाद के पास बचा ये ऑप्शन!

Ghulam Nabi Azads supporters are leaving one after the other, because of this the party has weakened in the valley, what will be the next step?
एक के बाद एक नेता छोड़ रहे गुलाम नबी आजाद का साथ, घाटी में इस वजह से हो रही पार्टी कमजोर, आजाद के पास बचा ये ऑप्शन!
सियासी संकट में फंसे आजाद एक के बाद एक नेता छोड़ रहे गुलाम नबी आजाद का साथ, घाटी में इस वजह से हो रही पार्टी कमजोर, आजाद के पास बचा ये ऑप्शन!

डिजिटल डेस्क, श्रीनगर। कांग्रेस पार्टी से बगावत के बाद राजनीतिक महत्वकांक्षा के साथ डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी का गठन करने वाले कांग्रेस के पूर्व वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद का सियासी भविष्य दांव पर लग चुका है। आजाद ने जिस उद्देश्य से नई पार्टी बनाई थी, उस पर पानी फिरता नजर आ रहा है क्योंकि उनके खास सहयोगी ही पार्टी से नाता तोड़कर फिर घर वापसी कर रहे हैं यानी कांग्रेस पार्टी में शामिल हो रहे हैं। बताया जा रहा है कि अब तक आजाद के 17 समर्थकों ने उनके पार्टी से दामन छुड़ा लिया है। ऐसे में पार्टी की भविष्य को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं। साथ ही सियासी गलियारों में इस बात को लेकर चर्चा तेज है कि क्या गुलाम नबी आजाद खुद कांग्रेस में वापसी करेंगे या फिर आगामी जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को कड़ी टक्कर देंगे। 

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गुलाम नबी आजाद ने कही ये बात

डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी के चीफ गुलाम नबी आजाद ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान कि मेरे लिए यह कोई झटका नहीं है। सहयोगी इशारा सईद, तारा चंद और बलवान सिंह की ओर इशारा करते हुए कहा कि ऐसे नेताओं का विधानसभा में कोई भी वर्चस्व नहीं है। गौरतलब है कि ये तीनों नेता आजाद की पार्टी को छोड़कर फिर से कांग्रेस में घर वापसी कर चुके हैं। गुलाम नबी आजाद के सहयोगियों के इस्तीफे से सियासी हलचल तेज हो गई है। ऐसे में गुलाम नबी के पास दो ऑप्शन बचे हुए हैं।

पहला ये कि कांग्रेस में वापसी कर सकते हैं दूसरा ये कि कांग्रेस को आगामी जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव में चुनौती दे सकते हैं। अब देखना है कि गुलाम नबी आजाद कौन सा रूख अपनाते हैं? वैसे गुलाम नबी आजाद की पार्टी को चुनाव आयोग की तरफ से भी मंजूरी नहीं मिली है। उसका रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है। इससे पहले ही बड़े नेताओं का साथ छोड़ना, उनके राजनीतिक करियर को प्रभावित कर सकता है। 

इन नेताओं ने भी आजाद का छोड़ा दामन

जम्मू कश्मीर सियासत में अपना प्रभाव रखने वाले पूर्व उपमुख्यमंत्री चांद, पूर्व विधायक बलवान सिंह और पूर्व मंत्री मनोहर लाल शर्मा जैसे कद्दावर नेताओं ने आजाद से नाता तोड़ लिया है तथा फिर से कांग्रेस में वापसी की है। जम्मू कश्मीर की राजनीति में इन नेताओं का अपने क्षेत्रों में काफी हनक है। आजाद ने इसी उद्देश्य से इन नेताओं को पार्टी में मिलाया था कि उन्हें मजूबती मिलेगी। लेकिन अब उससे उलट स्थिति देखने को मिल रही है।

गुलाम नबी आजाद की पार्टी की कमजोर होने की वजह जो सामने आ रही है। वो है आजाद की तरफ से चिनाब क्षेत्र के नेताओं को अधिक तवज्जो देना। जिसके कारण उनके पुराने सहयोगियों की सोच के विपरीत काम हो रहा है। पुराने सहयोगियों ने सोचा था कि पार्टी को मजबूत कर जम्मू कश्मीर में भाजपा के विकल्प के रूप में उभरेंगे लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। अब आजाद के सहयोगियों को लग रहा है कि आजाद की रणनीति भाजपा विरोधी वोटों को विभाजित करेंगे और इसका सीधा फायदा भाजपा को हो सकता है। जिससे बीजेपी मजबूत हो सकती है।

कांग्रेस को मिला फायदा 

आजाद की पार्टी के अंदर उठे बगावती सुर का पूरा फायदा कांग्रेस उठा रही है। असंतुष्ट नेताओं को यह कहकर पार्टी में वापसी कराया जा रहा है कि उन्हें पार्टी में बराबर का सम्मान मिलेगा और सत्ता में आने पर उन्हें महत्वपूर्ण पद दिए जाएंगे। कांग्रेस पार्टी भी मौके का फायदा उठाने के लिए नजर बनाए हुए है। साथ ही जम्मूकश्मीर कांग्रेस के बागी नेताओं को घर वापसी कराने पर जोर दे रही है।

इस वजह से घाटी में कमजोर होगी ताकत

गुलाम नबी आजाद की पार्टी सूत्रों के मुताबिक, पूर्व मंत्री ताज मोहिउद्दीन और पूर्व विधायक हाजी राशिद डार और गुलजार वानी आजाद के साथ पार्टी में बने हुए हैं। हालांकि, सईद का जाना आजाद के लिए बड़ा झटका है। बताया जाता है कि सईद की घाटी में अच्छी खासी वोटरों के बीच में पैठ थी। जिसका फायदा आजाद की पार्टी को मिल सकती थी। सईद 2003 से 2007 तक प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। वहीं आजाद की पार्टी के वरिष्ठ नेता ने कहा कि लोगों को सईद की फिर से कांग्रेस में वापसी के बारे में पता था। 

 

Created On :   7 Jan 2023 8:50 AM GMT

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