राजस्थान के पूर्व और वर्तमान मुख्यमंत्री में हैं कई सामनताएं, दोनों नेताओं को पहले ही चुनाव में देखना पड़ा था हार का मुंह, पार्टी नेताओं से ही मिलती है चुनौती

There is this equality between the former Chief Minister of Rajasthan and the present CM, both the leaders
राजस्थान के पूर्व और वर्तमान मुख्यमंत्री में हैं कई सामनताएं, दोनों नेताओं को पहले ही चुनाव में देखना पड़ा था हार का मुंह, पार्टी नेताओं से ही मिलती है चुनौती
गहलोत-राजे का सियासी सफर राजस्थान के पूर्व और वर्तमान मुख्यमंत्री में हैं कई सामनताएं, दोनों नेताओं को पहले ही चुनाव में देखना पड़ा था हार का मुंह, पार्टी नेताओं से ही मिलती है चुनौती
हाईलाइट
  • गहलोत-राजे का सियासी सफर

डिजिटल डेस्क, जयपुर। राजस्थान में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दोनों अपनी-अपनी सरकार बनाने की दावेदारी पेश कर रहे हैं। दोनों पार्टियों को विश्वास है कि उनके पार्टी को ही अगले विधानसभा चुनाव में बहुमत का आंकड़ा मिलेगा। हालांकि, इन सब से इतर दोनों पार्टियों के दो वरिष्ठ नेताओं पर सबकी निगाह रहने वाली है। भाजपा की वरिष्ठ नेता और राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और कांग्रेस के कद्दवार नेता सीएम अशोक गहलोत को लेकर चर्चा होने लगी है। चुनाव में दोनों पार्टियों में से किसी एक पार्टी की जीत तो तय ही है, लेकिन क्या इन दोनों नेताओं को एक बार फिर से पार्टी सीएम पद के लिए चुनेंगी या नहीं। हालांकि, इस सवाल का जवाब तो भविष्य में ही पता चल पाएगा। लेकिन इन दो नेताओं में एक चीज समान है कि दोनों राजस्थान की सियासत में एक बड़ा नाम हैं और दोनों नेताओं को अपने पहले चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा था।

गहलोत का सियासी सफर

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपना पहला चुनाव साल 1977 में जोधपुर की सरदारपुरा विधानसभा सीट से लड़ा था। उन्हें इस सीट पर जीत हासिल नहीं हुई थी। ऐसा माना जाता है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के इंमरजेंसी लगाने की वजह से उनके खिलाफ जनता में आक्रोश था। जिसकी वजह से गहलोत को चुनाव में जीत हासिल नहीं हुई। इस विधानसभा सीट पर जनता पार्टी के माधो सिंह ने गहलोत को करीब चार हजार वोट से हराया था। इसके बाद अशोक गहलोत ने राजनीति में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और लगातार पार्टी के लिए काम करते गए। बता दें कि, अशोक गहलोत कांग्रेस की सीट से पांच पर सांसद रहे, तीन बार केंद्र में मंत्री रहते हुए अहम जिम्मेदारियां निभाई। इसके अलावा गहलोत कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव होकर संगठन को मजबूत करने का भी काम कर चुके हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, गहलोत को गांधी परिवार का सबसे वफदार नेता माना जाता है। सीएम अशोक गहलोत को जितना गांधी परिवार पर विश्वास है उतना ही उन्हें गहलोत पर भी भरोसा है। 

भाजपा में वसुंधरा का सियासी सफर

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की तरह ही पूर्व सीएम वसुंधरा राजे भी अपना पहला चुनाव हार गई थी। वसुंधरा ने अपना पहला चुनाव साल 1984 के लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश के भिंड सीट से लड़ा था। लेकिन उन्हें इस चुनाव में कुछ खास वोट नहीं मिले जिसकी वजह से उन्हें हार का सामना करना पड़ा। बता दें कि, इस चुनाव में राजे की हार इसलिए हुई था क्योंकि उस समय देश की पीएम रही इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई थी। जिसकी वजह से कांग्रेस के प्रति देश भर में सहानुभूति की लहर दौड़ चली थी। इन्हीं कारणों से राजे को अपने पहले ही चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा था। जबकि इस आम चुनाव में भाजपा को पूरे देश में महज दो सीटों पर ही जीत हासिल हुई थी। 5 बार के झालावाड़ से सांसद रही वसुंधरा राजस्थान की राजनीति में एक बड़ा नाम बन चुकी हैं। उन्होंने बतौर सीएम दो बार प्रदेश की बागडोर संभाली है। इसके अलावा वह धौलपुर से विधायक और प्रदेश भाजपा की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं।

गहलोत-राजे को अपने ही पार्टी नेताओं से मिलती रही है चुनौतियां

हालांकि, दोनों नेताओं को अपने ही पार्टी नेताओं से समय-समय पर चुनौतियां मिलती रही हैं। सीएम अशोक गहलोत को नटवर सिंह, परसराम मदेरणा, सीपी जोशी और अब सचिन पायलट से चुनौती मिल रही है। लेकिन इन तमाम चुनौतियों से निपटते हुए वह आज भी प्रदेश के सीएम पद पर बने हुए हैं। ठीक ऐसे ही वसुंधरा राजे का भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतिश पुनिया और सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत से छत्तीस का आकड़ा चलता है। इन नेताओं में कभी समन्वय नहीं बन पाया है। जिसकी वजह से ये नेता कई बार एक दूसरे पर इशारों-इशारों में निशाना साध चुके हैं। 

Created On :   19 Feb 2023 4:58 PM GMT

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