विधानसभा चुनाव 2025: पड़ोसी राज्य बिहार के चुनाव को प्रभावित करती है यूपी की धर्म ध्रुवीकरण की राजनीति और रणनीति, जानिए नतीजों पर कितना पड़ सकता हैं असर

पड़ोसी राज्य बिहार के चुनाव को प्रभावित करती है यूपी की धर्म ध्रुवीकरण की राजनीति और रणनीति, जानिए नतीजों पर कितना पड़ सकता हैं असर
बिहार में बीएसपी का 4-5% वोट और 5-8 सीटें इसे किंगमेकर बना सकती हैं। दलित-मुस्लिम मतदाताओं की एकता बीएसपी को बिहार में 'जीत' से ज्यादा 'प्रभाव' दिला सकती है। जिससे भविष्य में बिहार की राजनीति तय होगी।

डिजिटल डेस्क,पटना। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश की राजनीति और वहां के प्रमुख दलों की रणनीति पड़ोसी राज्य बिहार के विधानसभा चुनावों को प्रभावित तो करती है, लेकिन नतीजों में तब्दील नहीं हो पाती है। पिछले 8 साल से यूपी में बीजेपी का शासन है, सपा और बसपा की गिनती यहां की प्रमुख पार्टियों में होती है। बीजेपी ने यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई , लेकिन बीजेपी आज तक बिहार में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में असफल रही है। बिहार में अब तक बीजेपी, एनडीए गठबंधन की सरकार के तौर पर सत्ता में रही है। आगे भी ऐसी ही संभावना है।

यूपी में बीजेपी का बुलडोजर एक्शन से लेकर धर्म, ध्रुवीकरण और विकास बिहार में बीजेपी को सीमित सफलता दिलवा सकता है। लेकिन अकेले के बूते सरकार नहीं बना सकती है,बीजेपी 101 विधानसभा सीटों पर ही चुनाव लड़ रही है। सपा ने बिहार विधानसभा चुनाव से दूरी बनाई है, अब बसपा ने सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारें है, बीसएपी के चुनाव चिह्न हाथी पर मैदान में उतरें कुछ उम्मीदवारों के नामांकन निरस्त हो गए।

बीएसपी की दलित मुस्लिम ओबीसी नीति

संगठनात्मक बदलावों,जनसभा ,रैलियों और यात्राओं के साथ साथ नई रणनीति से बीएसपी बिहार और यूपी में रीब्रांड करने की कोशिश में हैं। बीएसपी ने अकाश आनंद को राष्ट्रीय संयोजक बनाकर युवा लीडरशिप के तौर पर युवा वोटरों को अपने पक्ष में करने के मकसद से 'सर्वजन हिताय जागरण यात्रा' जैसी अभियान चलाए ।

आपको बता दें हाल ही में बीएसपी ने यूपी में मुस्लिम पिछड़े वर्ग को भागीदारी देते हुए समर्थन करने की रणनीति बनाई है। भले ही मायावती ने ये रणनीति यूपी राजनीति के लिए बनाई है, लेकिन अगर बीएसपी की ये नई रणनीति की बयार बिहार में चल गई तो , बीएसपी बिहार चुनाव में किंगमेकर की तरह उभर सकती है।

आपको बता दें बीएसपी ने 2027 के यूपी विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपनी पार्टी को पुनर्जीवित करने के लिए एक नई रणनीति अपनाई है, जो मुख्य रूप से दलित-मुस्लिम-ओबीसी एकता पर केंद्रित है। जानकारों की माने तो मायावती की नई नीति का अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष प्रभाव बिहार विधानसभा चुनाव 2025 पर भी पड़ रहा है।

मायावती की इस रणनीति से बीएसपी को बिहार में वोट शेयर बढ़ाने, दलित वोट बैंक को मजबूत करने का मौका मिला है। बीएसपी की इस रणनीति से भले ही ग्रैंड अलायंस (आरजेडी-कांग्रेस) को नुकसान होने की संभावना अधिक है, लेकिन एनडीए को इनडायरेक्ट लाभ हो सकता है।

आपको बता दें मायावती ने मुस्लिम समुदाय को "बहुजनों का अभिन्न अंग" बताते हुए मुस्लिम वोटरों को सीधे बीएसपी से जोड़ने की योजना बनाई है, जो अभी तक यूपी में कांग्रेस और एसपी , जबकि बिहार में कांग्रेस और आरजेडी अब एआईएमआईएम जैसे दलों के बीच बिखरें है। मायावती का अपनी मीटिंग में साफ कहना था कि बुलडोजर एक्शन से बचने के लिए मुस्लिमों को बीजेपी को हराने के लिए बीएसपी को डायरेक्ट सपोर्ट देना चाहिए। वहीं सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय' पर आधारित बीएसपी अब सामान्य मतदाताओं के बीच भी पकड़ मजबूत कर रही है।

आपको बता दें अब तक बिहार में बीएसपी का ऐतिहासिक वोट शेयर 2-3% रहा है, जो मुख्य रूप से दलित वोट बैंक पर टिका रहा है। बिहार में बीएसपी की स्वतंत्र लड़ाई और वोट कंसोलिडेशन एक बड़ा दांव होने के साथ आगामी राजनीति का भविष्य भी है। यानि बीएसपी ने यूपी की 'सर्वजन हिताय जागरण यात्रा' को बिहार में एक्सटेंड किया है, जिससे दलित -मुस्लिम वोटर्स के साथ ओबीसी वोट बैंक को मोबिलाइज करने में मदद मिलने की संभावनाओं को पैदा किया है। 2025 के बिहार चुनाव में यूपी की रणनीति ने बिहार में बीएसपी को नई ऊर्जा दी, जो बीएसपी को भले ही सीमित फायदा पहुंचाए लेकिन संभावनाओं के तौर पर बीएसपी को ये किंगमेकर की भूमिका में ला सकता है।

बिहार में सत्ता की मास्टर चाबी भी बन सकती है बीएसपी

बीएसपी संस्थापक कांशीराम के समय से पार्टी का मूल सिद्धांत बहुजन समाज (दलित + ओबीसी + अल्पसंख्यक) , बिहार में टूटा-फूटा रहा है। लेकिन हाल ही में बीएसपी की नीति बदलावों से इसके एकजुट होने की संभावना बढ़ी है। बिहार की राजनीति में करीब 16 फीसदी दलित और 18 फीसदी के आसपास मुस्लिम मतदाताओं की एकता बीएसपी को सीट दिला सकती है।

बिहार में दलित मुस्लिम वोट बैंक 35 फीसदी के करीब है। 20 के करीब विधानसभा सीट ऐसी भी है, जहां एससी मतदाताओं की आबादी अधिक है, लेकिन वो सीट सामान्य है। 243 विधानसभा सीट वाले बिहार में 38 सीटें SC-आरक्षित यानि दलित बहुल है, 87 सीटें मुस्लिम बहुल है, जहां 20 फीसदी से अधिक मुस्लिम मतदाता हैं। ऐसी अटकलें लगाई जा रही है कि यूपी की रणनीति (मुस्लिम आउटरीच) को बिहार में एक्सटेंड करने से मुस्लिम वोट (पारंपरिक रूप से RJD के पास) का 10-15% हिस्सा बीएसपी की ओर शिफ्ट हो सकता है।

बिहार में दलित मुस्लिम वोटर्स के बीएसपी में शिफ्ट होने से सीतामढ़ी, वैशाली ,मुजफ्फरपुर, सीवान, गोपालगंज, रामगढ़,फुलवारी,भोरेया, गोपालगंज, कोचाधामन, किशनगंज, अमौर,जमुई, हाजीपुर ,सीमांचल, कटिहार, अररिया, पूर्णिया में बीएसपी को लाभ पुहंच सकता है, एनडीए में एलजेपी और महागठंबधन में आरजेडी को नुकसान हो सकता है। एनडीए की तुलना में महागठबंधन को भारी नुकसान हो सकता है। राजनीतिक जानकारों की माने तो यह रणनीति बीएसपी को राष्ट्रीय पटल पर वापस लाने का प्रयास है, लेकिन सफलता गठबंधन और सत्ता की कुंजी पर निर्भर करेगी।

बिहार में बसपा की सफलता,आगामी यूपी चुनाव में नई ऊर्जा के बूस्टर का करेगी काम

आपको बता दें बिना स्विंग वोट के बिहार में कोई भी गठबंधन 122 सीटें पार नहीं कर पाता, बीएसपी ने "सामाजिक एकता" पर जोर देते हुए सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व का दावा किया है। मायावती की यूपी-केंद्रित रणनीति से बिहार चुनाव में बीएसपी को मामूली लेकिन रणनीतिक फायदा होने की उम्मीद है। साथ ही अकाश आनंद की लीडरशिप , दलित -मुस्लिम एकता बिहार में बीएसपी को मजबूती दिला सकती है, जो यूपी 2027 के विधानसभा चुनाव में उसके लिए बूस्टर का काम करेगी। हालांकि मुस्लिम मतदाताओं का विश्वास जीतना बीएसपी के लिए चुनौतीपूर्ण होगा। बीएसपी का 4-5% वोट और 5-8 सीटें इसे किंगमेकर बना सकती हैं। दलित-मुस्लिम मतदाताओं की एकता बीएसपी को बिहार में 'जीत' से ज्यादा 'प्रभाव' दिला सकती है। जिससे भविष्य में बिहार की राजनीति तय होगी।


Created On :   4 Nov 2025 2:29 PM IST

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