मध्यप्रदेश: भारतीय संस्कृति के तेजस्वी प्रतीक हैं महाकवि कालिदास - मुख्यमंत्री डॉ. यादव

डिजिटल डेस्क, भोपाल। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि कालिदास समारोह हमारी समृद्ध भारतीय संस्कृति, साहित्य और परम्पराओं के विविध अलंकारों में से एक सबसे उज्ज्वल और प्रदीप्तमान पुंज है। यह आज भी भारतीय ज्ञान, कला और संवेदना की गहराइयों का उदात्त प्रकटीकरण है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि महाकवि कालिदास की लेखनी में न केवल शब्दों का वैभव है, बल्कि उसमें भारतीय आत्मा की झलक भी है। कालिदास समारोह हमारे गौरवशाली सांस्कृतिक इतिहास का उत्सव है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि महाकवि कालिदास भारतीय साहित्य के ऐसे अमर हस्ताक्षर हैं, जिनकी कृतियां संस्कृत साहित्य के लिए अमूल्य निधि होने के साथ-साथ सम्पूर्ण भारतीय सभ्यता की सांस्कृतिक चेतना की संवाहक भी हैं। उन्होंने कहा कि महाकवि कालिदास ने अपनी कल्पनाशीलता, गहन संवेदनशीलता और अद्भुत लेखन कौशल से भारतीय कथा-कला और काव्य साहित्य को धन्य किया। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने शनिवार को समत्व भवन (मुख्यमंत्री निवास) से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से उज्जैन में आयोजित 67वें अखिल भारतीय कालिदास समारोह का वर्चुअल शुभारंभ कर संबोधित किया। इस अवसर पर लोक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा राज्यमंत्री नरेन्द्र शिवाजी पटेल भी उपस्थित थे।
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मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने महाकवि कालिदास की प्रसिद्ध कृतियों - अभिज्ञान शाकुंतलम्, मेघदूतम, कुमारसंभव, रघुवंश, ऋतुसंहार और विक्रमोर्वशीयम् का उल्लेख करते हुए कहा कि ये सभी ग्रंथ साहित्यिक सौंदर्य के प्रतीक हैं। इनमें भारतीय जीवन दर्शन, प्रकृति और प्रेम की गहन अभिव्यक्ति निहित है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि उज्जैन न केवल महाकाल की नगरी है, बल्कि कालिदास जैसे युगप्रवर्तक और काव्य साधक कवि की कर्मभूमि भी रही है। यहां आयोजित कालिदास समारोह का हर वर्ष बढ़ता गौरव मध्यप्रदेश सहित पूरे देश के लिए गौरव का विषय है। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश सरकार महाकवि कालिदास के नाम पर आयोजित इस राष्ट्रीय स्तर के साहित्यिक आयोजन को और अधिक भव्यता और व्यापकता प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है।
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि साहित्य और संस्कृति समाज को एकजुट करने का माध्यम हैं। हमारा उद्देश्य कालिदास समारोह से नई पीढ़ी को भारतीय साहित्य, संस्कृति और शास्त्रीय परंपराओं से जोड़ना है। समारोह में महाकवि कालिदास की कृतियों पर आधारित नाट्य मंचन, वाद्य-संगीत प्रस्तुतियां, वाद-विवाद प्रतियोगिता और सांस्कृतिक संध्या का आयोजन भी किया जा रहा है। 67वें अखिल भारतीय कालिदास समारोह का यह आयोजन न केवल साहित्यकारों और कलाकारों के लिए प्रेरणास्रोत है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति के सनातन वैभव को आधुनिक युग में पुनर्स्थापित करने का एक महत्त्वपूर्ण सेतु भी सिद्ध हो रहा है।
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा है कि उज्जैन की धरती अपने आशीर्वाद से परम प्रतिष्ठा दिलाती है। कवि कालिदास का महाकवि बनना इसका प्रमाण है। सम्राट विक्रमादित्य के नवरत्नों में शामिल साहित्य के शिखर पुरुष महाकवि कालिदास की स्मृति में आयोजित अखिल भारतीय कालिदास समारोह एक प्रतिष्ठित समारोह है, जो संस्कृत और साहित्य को एक सूत्र में पिरोता है। 66 साल पहले देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद कालिदास समारोह के प्रथम आयोजन में उज्जैन पधारे थे। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि मध्यप्रदेश अपना 70वां स्थापना दिवस मना रहा है। आज देव प्रबोधिनी एकादशी भी है। तीन सुंदर संयोग एक साथ बने हैं। आज उज्जैनवासियों को एयरपोर्ट और हवाई मार्ग की अनुपम सौगात मिली है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने समत्व भवन से उज्जैन में आयोजित 67वें अखिल भारतीय कालिदास समारोह का वर्चुअल शुभारंभ कर जनसमूह को संबोधित किया। उन्होंने प्रदेशवासियों को मध्यप्रदेश स्थापना दिवस, देवउठनी एकादशी और अखिल भारतीय कालिदास समारोह की शुभकामनाएं भी दीं।
महाकवि कालिदास की सांस्कृतिक यात्रा भारत की समृद्ध संस्कृति का पुनर्जागरण
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि उज्जैन की मिट्टी में धर्म, अर्थ, कर्म और मोक्ष है। यह कला और काल की धरती है। ज्ञान और विज्ञान की धरती है। अवंतिका नगरी की कोख से महान विद्वानों ने जन्म लिया और महाकवि कालिदास उन्हीं में से एक महान विभूति हैं। वे भारत ही नहीं बल्कि विश्व के सर्वश्रेष्ठ साहित्यकारों में शामिल हैं। महाकवि कालिदास ने अपनी रचनाओं में मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं को बखूबी उकेरा था। इनमें प्रकृति दर्शन, प्रेम, श्रृंगार, सौन्दर्य और ईश्वरत्व की अनुभूति मिलती है। उनकी कालजयी रचनाओं में अभिज्ञानशाकुन्तलम्, विक्रमोयवर्शियम्, कुमारसम्भव, "रघुवंशम्," और "मेघदूतम्" भारतीय संस्कृति और साहित्य की अनमोल धरोहर हैं। महाकवि कालिदास की लेखनी में ऋतुओं का सौंदर्य, प्रेम का माधुर्य और जीवन का दर्शन बसता है, उनके नाम से सजी यह सांस्कृतिक यात्रा, देश की समृद्ध संस्कृति का पुनर्जागरण है।
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1958 में पं. सूर्य नारायण व्यास ने रखी थी कालिदास समारोह की नींव
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि अनेक विदेशी लेखकों ने महाकवि कालिदास की रचनाओं का अनुवाद किया है। प्रोफेसर विलियम जोन्स ने 'शाकुन्तलम्' का अनुवाद किया, जिससे पूरी दुनिया महाकवि कालिदास की रचनाओं से परिचित हुई। जर्मन कवि गेटे को यह नाटक इतना पसंद आया कि उन्होंने इस पर एक कविता लिखी। उल्लेखनीय है कि 1958 में पद्म भूषण स्व. पं. सूर्य नारायण व्यास ने अखिल भारतीय कालिदास समारोह की शुरुआत की थी, जो आज कलाकारों का कुंभ बन चुकी है। इस 7 दिवसीय कालिदास समारोह में कला और संस्कृति का इंद्रधनुष नजर आता है। देश के अनेक क्षेत्रों से प्रख्यात कलाकार, साहित्यकार और कलाप्रेमियों इसमें शामिल होते हैं। संस्कृत साहित्य और महाकवि कालिदास के जीवन और कृतियों पर विद्वानों द्वारा व्याख्यान और चर्चाएं आयोजित की जाती हैं। समारोह में देशभर के विद्वान संस्कृत साहित्य और महाकवि कालिदास पर अपने शोध पत्र प्रस्तुत करते हैं।
अखिल भारतीय कालिदास समारोह के शुभारंभ अवसर पर उज्जैन में संस्कृति एवं पर्यटन राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) धर्मेन्द्र सिंह लोधी, कौशल विकास एवं रोजगार राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) एवं उज्जैन जिले के प्रभारी मंत्री गौतम टेटवाल, विधायक अनिल जैन कालूखेड़ा, उज्जैन के महापौर मुकेश टटवाल सहित देश के विभिन्न अंचलों से आए विद्वान साहित्यकारों, कलाकारों और बड़ी संख्या में संस्कृति प्रेमी मौजूद रहे।
Created On :   1 Nov 2025 9:07 PM IST













