राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शताब्दी समारोह: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिए भाषण और संघ पर विपक्षी नेताओं ने साधा निशाना

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिए भाषण और संघ पर विपक्षी नेताओं ने साधा निशाना
आरएसएस के शताब्दी समारोह मौके पर कांग्रेस ने गुएक पुरानी किताब का हवाला देते हुए दावा किया कि महात्मा गांधी ने आरएसएस को 'तानाशाही सोच के साथ एक सांप्रदायिक संगठन' कहा था

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने गुरुवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी समारोह पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक दिन पहले दिए गिए भाषण को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी। श्रीनेत ने कहा, प्रधानमंत्री आरएसएस की तारीफ आखिर किस बात के लिए कर रहे हैं? केवल एक सिक्का जारी करके आप आरएसएस की तारीफ नहीं कर सकते। आरएसएस ऐसा संगठन है, जिसके हाथ महात्मा गांधी के खून से रंगे हैं और जिसे देश के पहले गृह मंत्री सरदार पटेल ने प्रतिबंधित किया था।

आरएसएस के शताब्दी समारोह मौके पर कांग्रेस ने गुएक पुरानी किताब का हवाला देते हुए दावा किया कि महात्मा गांधी ने आरएसएस को 'तानाशाही सोच के साथ एक सांप्रदायिक संगठन' कहा था


AAP दिल्ली अध्यक्ष सौरभ भारद्वाज ने आरएसएस के 100 साल पूरे होने पर कहा आरएसएस की स्थापना 1925 में हुई थी और देश को आजादी 1947 में मिली... आजादी की लड़ाई में आरएसएस की क्या भूमिका थी?...आरएसएस ने भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा नहीं लिया, बल्कि अंग्रेजों का साथ दिया। जब देश आजाद हुआ तो उन्होंने तिरंगा नहीं लहराया

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट साझा करते हुए कहा प्यारेलाल महात्मा गांधी के सबसे करीबी सहयोगियों में से एक थे। वे लगभग तीन दशकों तक गांधीजी के निजी स्टाफ़ का हिस्सा रहे। 1942 में महादेव देसाई की मृत्यु के बाद वे महात्मा गांधी के सचिव बने।

महात्मा गांधी पर प्यारेलाल की किताबें आज मानक संदर्भ ग्रंथ मानी जाती हैं। 1956 में उन्होंने Mahatma Gandhi: The Last Phase का पहला खंड प्रकाशित किया, जिसे अहमदाबाद की नवजीवन पब्लिशिंग हाउस ने प्रकाशित किया था। इसमें तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने लंबी भूमिका लिखी और उपराष्ट्रपति डॉ. एस. राधाकृष्णन ने भी इसकी सराहना की। दो साल बाद इसका दूसरा खंड प्रकाशित हुआ।

दूसरे खंड के पृष्ठ 440 पर प्यारेलाल ने महात्मा गांधी और उनके एक सहयोगी के बीच हुई बातचीत का उल्लेख किया है। इस बातचीत में राष्ट्रपिता ने आरएसएस को "सर्वसत्तावादी दृष्टिकोण वाला एक सांप्रदायिक संगठन" बताया है। यह बातचीत 12 सितंबर 1947 को हुई थी। पाँच महीने बाद, गृह मंत्री सरदार पटेल ने आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया।

Created On :   2 Oct 2025 11:51 AM IST

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