बॉम्बे हाई कोर्ट: आरोपी को लिखित आधार दिए बिना की गई गिरफ्तारी असंवैधानिक, झुग्गी पुनर्वास में बार-बार हो रही देरी पर जताई चिंता

आरोपी को लिखित आधार दिए बिना की गई गिरफ्तारी असंवैधानिक, झुग्गी पुनर्वास में बार-बार हो रही देरी पर जताई चिंता
  • 25 लाख से अधिक मूल्य के इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) से जुड़ी धोखाधड़ी का आरोप
  • अशरफ इब्राहिम कलावड़िया को गुजरात से किया था गिरफ्तार
  • बॉम्बे हाई कोर्ट ने झुग्गी पुनर्वास परियोजनाओं के क्रियान्वयन में बार-बार हो रही देरी पर जताई चिंता

Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि आरोपी को लिखित आधार दिए बिना की गई गिरफ्तारी असंवैधानिक और अवैध है, क्योंकि यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22(1) और दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 50 के अधिदेश का उल्लंघन करती है। अदालत ने जीएसटी खुफिया महानिदेशालय (डीजीजीआई) द्वारा धोखाधड़ी के मामले में गुजरात से गिरफ्तार अशरफ इब्राहिम कलावड़िया को जमानत दे दी। न्यायमूर्ति अश्विन डी. भोबे की पीठ ने अशरफ इब्राहिम कलावड़िया की जमानत याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि इस संवैधानिक सुरक्षा के अनुपालन पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता है। इसका उल्लंघन कथित अपराध की गंभीरता या प्रकृति की परवाह किए बिना गिरफ्तारी को अमान्य कर देता है। डीजीजीआई ने कलावड़िया को 12 मार्च 2024 को अधिनियम की धारा 132(1)(बी), 132(1)(सी), 132(1)(आई) और 132(2) के साथ धारा 132(5) के तहत गिरफ्तार किया था, जो अपराध को संज्ञेय और गैर-जमानती के रूप में वर्गीकृत करती है। उस पर 25 लाख रुपए से अधिक मूल्य के इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) का लाभ उठाने और उसे जुड़ी धोखाधड़ी की योजना को अंजाम देने का आरोप है। मुंबई सेशन कोर्ट द्वारा उसकी जमानत याचिका खारिज कर दिया था। वह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) 2023 की धारा 483 के तहत हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। वह एक साल से अधिक समय से हिरासत में जेल में बंद है। याचिकाकर्ता के वकील सुदीप पासबोला ने दलील दी कि गिरफ्तारी ज्ञापन में कानून द्वारा अपेक्षित गिरफ्तारी के विशिष्ट आधारों का खुलासा नहीं किया गया था। गिरफ्तारी के लिए डीजीजीआई के भीतर एक आंतरिक संचार आरोपी को संबोधित नहीं किया गया था। इस तरह की चूक अनुच्छेद 22(1) के तहत मौलिक अधिकारों और सीआरपीसी की धारा 50 के तहत वैधानिक सुरक्षा उपायों का सीधा उल्लंघन है, जिससे हिरासत गैरकानूनी हो जाती है। डीजीजीआई से पेश विशेष लोक अभियोजकों जितेंद्र मिश्रा ने कहा कि अभियुक्त अपराध की प्रकृति से अवगत था और उसने गुजराती में गिरफ्तारी ज्ञापन और प्राधिकरण को स्वीकार किया था। ये समर्थन अभियुक्त को उसकी गिरफ्तारी के कारणों की सूचना देने की आवश्यकता के अनुपालन का संकेत देते हैं। अदालत ने इन तर्कों को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि निहित ज्ञान या मौखिक संचार लिखित आधार प्रदान करने के स्पष्ट दायित्व का स्थान नहीं ले सकता है।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने झुग्गी पुनर्वास परियोजनाओं के क्रियान्वयन में बार-बार हो रही देरी पर जताई चिंता

उधर बॉम्बे हाई कोर्ट ने झुग्गी पुनर्वास योजनाओं के क्रियान्वयन में बार-बार हो रही देरी पर चिंता व्यक्त की है। अदालत ने झुग्गी पुनर्वास प्राधिकरण (एसआरए) को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि झुग्गी पुनर्वास योजना के उद्देश्य के अनुसार परियोजनाओं का शीघ्र क्रियान्वयन किया जाए। न्यायमूर्ति जी. एस. कुलकर्णी और न्यायमूर्ति आरिफ एस. डॉक्टर की पीठ के समक्ष मुंबई के विले पार्ले में एक झुग्गी पुनर्वास परियोजना से संबंधित सटेरी बिल्डर्स एंड डेवलपर्स एलएलपी की याचिकाओं पर सुनवाई हुई। इस दौरान पीठ ने कहा कि वैधानिक प्रक्रिया में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप या बाधा इस योजना के मूल उद्देश्य को विफल कर देती है, जिसका उद्देश्य झुग्गीवासियों को सुरक्षित आवास प्रदान करना है। पीठ ने कहा कि झुग्गी पुनर्वास एक कल्याणकारी उपाय है, जिसका उद्देश्य झुग्गीवासियों को लाभ पहुंचाना है। इसका प्राथमिक उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि झुग्गीवासियों को पुनर्वास के बिना बेदखली से बचाया जाए और उन्हें सभ्य, सुरक्षित और स्वच्छ आवास में रहने की स्थिति प्रदान की जाए। पीठ ने संबंधित अधिकारियों के आचरण पर निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि हमें अत्यंत खेद के साथ यह नोट करना होगा कि कई मामलों में प्रतिवादी अधिकारी और विशेष रूप से एसआरए उस उद्देश्य को भूल जाते हैं और अनदेखा कर देते हैं, जिसके लिए झुग्गी अधिनियम बनाया गया था। वे डेवलपर्स के हित में कार्य करना जारी रखते हैं। इसलिए झुग्गी पुनर्वास परियोजनाएं अक्सर केवल प्रतिद्वंद्वी डेवलपर्स के प्रतिस्पर्धी हितों के कारण विलंबित हो जाती हैं। पीठ ने कहा कि मूल भूखंड के पुनर्विकास के संबंध में याचिकाकर्ता के प्रारंभिक प्रस्ताव को प्रतिवादी अधिकारियों ने स्वीकार कर लिया था और याचिकाकर्ता को एक वैध और विद्यमान आशय पत्र (एलओआई) और आईओए प्रदान किया गया था। आशय पत्र और आईओए की स्वीकृति हाई कोर्ट के आदेश द्वारा बरकरार रखी गई और सुप्रीम कोर्ट के आदेश द्वारा इसकी पुष्टि की गई। पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि एसआरए एक वैधानिक प्राधिकरण होने के नाते यह सुनिश्चित करने के लिए अपने कर्तव्य का निर्वहन करने के लिए बाध्य है कि वह झुग्गी पुनर्वास योजना शीघ्रता से आगे बढ़े और झुग्गी अधिनियम का उद्देश्य सर्वोत्तम रूप से प्राप्त हो, जो वह करने में विफल रहा। कोर्ट ने कहा कि एसआरए का आचरण उसके वैधानिक कर्तव्यों के निष्ठापूर्वक निर्वहन को प्रदर्शित नहीं करता, बल्कि उस झुग्गी योजना को बाधित करने का प्रयास दर्शाता है।

Created On :   28 Aug 2025 10:30 PM IST

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