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बॉम्बे हाई कोर्ट: 24 घंटे से अधिक पुलिस हिरासत का हवाला देकर बांग्लादेशी महिला को दी जमानत

- महिला को भारत में अवैध रूप से रहने के आरोप में किया गया था गिरफ्तार
- नवी मुंबई पुलिस को महिला के पास से आधार कार्ड, पैन कार्ड, चुनाव पहचान पत्र, राशन कार्ड, विवाहित होने और भारतीय नागरिक होने के मिले प्रमाण पत्र
Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट ने 24 घंटे से अधिक पुलिस हिरासत का हवाला देकर बांग्लादेशी महिला सबनम सुलेमान अंसारी को जमानत दे दी। अदालत ने कहा कि अभियुक्त को गिरफ्तार के 24 घंटे के अंदर मजिस्ट्रेट के समक्ष उसे पेश नहीं करने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 और 22 के तहत उसके (अभियुक्त) मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया है। उसे बनाए रखना हर अदालत का कर्तव्य है। न्यायमूर्ति मिलिंद जाधव की एकलपीठ ने सबनम सुलेमान अंसारी की ओर से वकील शुभम उपाध्याय की दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि जमानत याचिकाओं पर विचार करते समय न्यायालय का यह कर्तव्य है कि यदि उसे लगता है कि अभियुक्त को गिरफ्तार करते समय उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है, तो वह उसे जमानत पर रिहा कर दे। न्यायालय का यह कर्तव्य है कि वह हस्तक्षेप करे। पीठ ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पुलिस अधिकारी इन वैधानिक आवश्यकताओं के प्रति उदासीन हैं, जो 24 घंटे से अधिक हिरासत में रखने के संबंध में हैं। यह याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन है।
पीठ ने माना कि याचिकाकर्ता ने पुलिस को बताया कि वह बिना किसी वैध यात्रा दस्तावेजों के बांग्लादेश से अनधिकृत मार्ग से भारत आई थी। यह आरोप पूरी तरह से आरोपी के कथित कबूलनामे पर आधारित हैं, जो उसे दोषी ठहराने के लिए पुलिस अधिकारी के समक्ष दर्ज किया गया था। पुलिस ने मामले के समर्थन में पीठ ध्यान आरोपी के दस्तावेजों की ओर आकर्षित किया, जिसमें उसके पास आधार कार्ड, पैन कार्ड, चुनाव पहचान पत्र, ग्राम पंचायत द्वारा उसके भारतीय निवास की पुष्टि, राशन कार्ड, विवाहित और भारतीय नागरिक होने के प्रमाण है। प्रथम दृष्टया धारा 58 के प्रावधानों का उल्लंघन है, जो सीआरपीसी की धारा 50 के समान है।
अभियोजन पक्ष के अनुसार नवी मुंबई के एपीएमसी पुलिस स्टेशन द्वारा याचिकाकर्ता को 28 जनवरी 2025 को दोपहर साढ़ बारह बजे गिरफ्तार किया गया था और उसे दूसरे दिन साढ़े चार बजे शाम को 24 घंटे के बाद मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया। अभियोजन पक्ष के हलफनामे में अदालत का ध्यान इस ओर दिलाया गया, जो प्रथम दृष्टया उसके कथन का समर्थन करता है, क्योंकि इसमें कहा गया है कि याचिकाकर्ता को गिरफ्तारी के समय शिकायत नहीं की थी कि उसे गिरफ्तारी के 24 घंटे बाद मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया था और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि न ही उसने उस अवधि के दौरान बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
Created On :   9 May 2025 9:42 PM IST