बॉम्बे हाई कोर्ट: मराठा आरक्षण मामले में जीआर पर अंतरिम रोक और पत्रकार जेडे हत्याकांड में 4 को ज़मानत से इनकार, नवलखा की याचिका पर एनआईए से मांगा जवाब

मराठा आरक्षण मामले में जीआर पर अंतरिम रोक और पत्रकार जेडे हत्याकांड में 4 को ज़मानत से इनकार,  नवलखा की याचिका पर एनआईए से मांगा जवाब
  • पत्रकार जेडे हत्याकांड में 4 दोषियों की ज़मानत देने से किया इनकार
  • एल्गार परिषद मामले के लंबित रहने के दौरान दिल्ली में रहने की गौतम नवलखा की याचिका पर एनआईए से मांगा जवाब

Mumbai News. बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को वरिष्ठ पत्रकार ज्योतिर्मय डे की 2011 में हुई हत्या के मामले में चार दोषियों की सज़ा निलंबित करने और ज़मानत देने से इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति रवींद्र घुगे और न्यायमूर्ति गौतम अंखड की पीठ ने कहा, हम ने कारण बताए हैं। इन परिस्थितियों में हम सज़ा निलंबित करना और ज़मानत देना उचित नहीं समझते। अदालत के फैसले का मतलब है कि चारों दोषी तब तक जेल में रहेंगे, जब तक कि उनकी अपील पर हाई कोर्ट पूरी तरह से सुनवाई और फैसला नहीं सुना देता। पीठ ने नीलेश शेड़गे उर्फ बबलू, सचिन गायकवाड़, अभिजीत शिंदे और मंगेश अगवाने उर्फ मंग्या द्वारा दायर चार अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई की। शेड़गे और शिंदे पर हत्या में इस्तेमाल की गई बंदूक खरीदने के लिए नैनीताल जाने का आरोप था।गायकवाड़ ने कथित तौर पर डे पर निगरानी रखी और शूटरों के लिए एक मोटरसाइकिल उपलब्ध कराई, जबकि अगवाने पर मुख्य शूटर सतीश कालिया के साथ होने का आरोप था।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने एल्गार परिषद मामले के लंबित रहने के दौरान दिल्ली में रहने की गौतम नवलखा की याचिका पर एनआईए से मांगा जवाब

उधर बॉम्बे हाई कोर्ट ने एल्गार परिषद मामले के लंबित रहने के दौरान दिल्ली में रहने की कार्यकर्ता गौतम नवलखा की याचिका पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। अदालत ने उन्हें जमानत की शर्तों के तहत बिना अनुमति के मुंबई से बाहर नहीं जाने का निर्देश दिया था। 7 नवंबर को मामले की अगली सुनवाई रखी गई है।न्यायमूर्ति गडकरी और न्यायमूर्ति रंजीतसिंह भोंसले की पीठ के समक्ष गौतम नवलखा की याचिका पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता के वकील युग मोहित चौधरी ने दलील दी कि वह मुकदमे में सहयोग करेंगे और आवश्यकता पड़ने पर अदालत के समक्ष उपस्थित रहेंगे। उन्होंने यह भी मांग की कि जब तक उनकी व्यक्तिगत उपस्थिति आवश्यक नहीं हो, उन्हें वर्चुअल के माध्यम से अदालती कार्यवाही में शामिल होने की अनुमति दी जाए। याचिका में दावा किया गया कि याचिकाकर्ता मुंबई में खर्चों, बढ़ी हुई वित्तीय स्थिति और जीवनयापन की उच्च लागत के कारण परेशान है। वह जमानत पर रिहा होने के बाद से आर्थिक रूप से अपने दोस्तों और परिवार पर निर्भर है। उन्हें एल्गार परिषद मामले के लंबित रहने के दौरान दिल्ली में रहने की अनुमति दी जाए। इस पर पीठ ने एनआईए को नोटिस जारी कर 7 नवंबर को अगली सुनवाई तक जवाब मांगा है।विशेष अदालत ने इस साल अगस्त में नवलखा की उस याचिका को भी खारिज कर दिया था, जिसमें उन्होंने अपनी 86 वर्षीय बहन से मिलने और अन्य उद्देश्यों के लिए 45 दिनों तक दिल्ली में रहने की अनुमति मांगी थी। दिल्ली निवासी सत्तर वर्षीय नवलखा को इस मामले में 14 अप्रैल 2020 को गिरफ्तार किया गया था।

मराठा आरक्षण मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने राज्य सरकार के शासनादेश (जीआर) पर अंतरिम रोक लगाने से किया इनकार

इसके अलावा बॉम्बे हाई कोर्ट ने मंगलवार को मराठा कुनबी समुदाय को ओबीसी का दर्जा देने के राज्य सरकार के शासनादेश (जीआर) पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया। राज्य सरकार ने 2 सितंबर को जारी सरकारी शासनादेश (जीआर) में मराठा-कुनबी समुदाय के लोगों को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी में शामिल करने का फैसला किया गया है। अदालत ने राज्य सरकार को चार सप्ताह में जवाब देने का निर्देश दिया है। मुख्य न्यायाधीश श्री चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति गौतम अंखड की पीठ के समक्ष कुनबी सेना, महाराष्ट्र माली समाज महासंघ, अहीर सुवर्णकार समाज संस्था, सदानंद मांडलिक और महाराष्ट्र नाभिक महामंडल सहित विभिन्न ओबीसी संगठनों की दायर पांच याचिकाओं पर सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ताओं के वकील ने दलील दी कि मराठा समुदाय के लोगों को कुनबी प्रमाण पत्र प्रदान करने से वे प्रभावी रूप से ओबीसी श्रेणी में शामिल हो जाएंगे, जिससे मौजूदा ओबीसी समुदायों को मिलने वाले आरक्षण लाभ कम हो जाएंगे। उन्होंने राज्य सरकार के जीआर पर रोक लगाने की मांग करते हुए दलील दी गई कि राज्य भर में जल्द ही महानगरपालिकाओं के चुनाव होने वाले हैं। अयोग्य व्यक्ति जीआर का लाभ उठाकर आरक्षित श्रेणियों के लिए निर्धारित सीटों से चुनाव लड़ने का प्रमाण पत्र प्राप्त कर सकते हैं। वरिष्ठ वकील अनिल अंतुरकर ने दलील दी कि इससे एक अपरिवर्तनीय स्थिति पैदा हो जाएगी। उन्होंने जीआर के कार्यान्वयन पर रोक लगाने की मांग की। यह भी दलील दी गई कि कई वर्षों से राज्य सरकार द्वारा गठित विभिन्न समितियों ने यह माना है कि मराठों को कुनबी के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती और उन्हें ओबीसी श्रेणी के अंतर्गत कोटा नहीं दिया जा सकता है। राज्य के पिछड़ा वर्ग आयोग ने भी पहले मराठों को कुनबी के रूप में मान्यता देने से इनकार कर दिया था। राज्य इस समुदाय के लिए पिछले दरवाजे से प्रवेश का रास्ता खोलने की कोशिश कर रहा है। इस पर पीठ ने कहा कि हम याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील द्वारा उठाए गए मुद्दों पर विस्तार से चर्चा नहीं कर रहे हैं और राज्य सरकार को सभी संबंधित याचिकाओं पर चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश देते हैं।

Created On :   7 Oct 2025 9:22 PM IST

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