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बॉम्बे हाई कोर्ट: मध्य रेलवे के ठेका लेने वाली कंपनी को राहत, मेनन को विदेश जाने की इजाजत, 73 वर्षीय व्यक्ति की अभिभावक के तौर दो बेटियां नियुक्त

- अदालत ने ठेकेदार की नई बैंक गारंटी के साथ टेंडर को स्वीकार करने का रेलवे को दिया निर्देश
- बॉम्बे हाई कोर्ट से नागपुर के मंगतमणि एजुकेशनल इंस्टीट्यूट के निदेशक विजय मेनन को विदेश जाने की मिली इजाजत
- बॉम्बे हाई कोर्ट ने मानसिक रूप से बीमार 73 वर्षीय व्यक्ति की अभिभावक के तौर दो बेटियों को किया नियुक्त
Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट से मध्य रेलवे के 126 करोड़ रुपए से अधिक के ठेके को लेकर ठेका लेने वाली कंपनी को राहत मिली है। अदालत ने रेलवे को कंपनी की नई बैंक गारंटी के साथ टेंडर को स्वीकार करने का निर्देश दिया है। रेलवे ने कंपनी के टेंडर को तकनीकी आवश्यकताओं का पालन नहीं करने के कारण अस्वीकार कर दिया था। मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति एम.एस. कार्निक की पीठ के समक्ष सुनील यादव की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। पीठ ने कहा कि गलती का एहसास होने पर तुरंत याचिकाकर्ता ने गलती को सुधारने के लिए कदम उठाए हैं। ऐसी परिस्थितियों में हमें याचिका को अनुमति देने में कोई हिचकिचाहट नहीं है। पीठ ने रेलवे को याचिकाकर्ता द्वारा 24 अप्रैल 2025 को दिए गए संशोधित बैंक गारंटी पर विचार करने का निर्देश दिया है। याचिकाकर्ता के वकील ने सुप्रीम कोर्ट के पश्चिम बंगाल के विद्युत बोर्ड बनाम पटेल इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड एवं अन्य एक के मामले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि एक सामान्य नियम के रूप में, किसी सार्वजनिक अनुबंध के लिए बोली लगाने वाले को न्यायसंगत राहत तब दी जाएगी, जब उसने अपनी बोली में तथ्यात्मक गलती की हो। जब उस गलती का पता चलने पर वह सार्वजनिक अधिकारियों को सूचित करने और अपनी बोली वापस लेने या अपनी गलती को सुधारने का अवसर मांगने में उस पर तुरंत कार्रवाई की जाए। खासकर तब जब वह किसी औपचारिक अनुबंध में प्रवेश करने से पहले ऐसा करता है। मध्य रेलवे ने पुणे-मिरज दोहरीकरण कार्य के लिए पुणे-सतारा खंड में सिविल कार्यों के लिए 3 फरवरी 2025 की तारीख की 126 करोड़ 83 लाख 10 हजार 112 रुपए का टेंडर जारी किया था। याचिकाकर्ता ने 4 मार्च 2025 को अपनी बोली प्रस्तुत की। उसकी बैंक गारंटी 30 जुलाई 2025 तक वैध थी। 21 अप्रैल 2025 को याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत बोलियां तकनीकी आवश्यकताओं का पालन नहीं करने के कारण अस्वीकार कर दी गई। याचिकाकर्ता को पता चला कि बोली सुरक्षा के लिए उसके द्वारा प्रस्तुत बैंक गारंटी संबंधित टेंडर की वैधता अवधि से 90 दिनों से कम अवधि की वैधता के लिए थी। याचिकाकर्ता ने 24 अप्रैल 2025 के पत्र की स्कैन की हुई प्रति और 64 लाख 69 हजार 600 रुपए की संशोधित बैंक गारंटी भेजी, जिसकी संशोधित समाप्ति तिथि 30 सितंबर 2025 है। याचिकाकर्ता को रेलवे से कोई जवाब नहीं मिला। उसके बाद उसने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
बॉम्बे हाई कोर्ट से नागपुर के मंगतमणि एजुकेशनल इंस्टीट्यूट के निदेशक विजय मेनन को विदेश जाने की मिली इजाजत
उधर बॉम्बे हाई कोर्ट से नागपुर के मंगतमणि एजुकेशनल इंस्टीट्यूट के निदेशक विजय मेनन को विदेश जाने की इजाजत मिल गई है। मेनन के खिलाफ गोरेगांव वनराई पुलिस स्टेशन में टीचर से धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया गया है। आरोप है कि उसने टीचर के 2 करोड़ 20 लाख 28 हजार 922 रुपए के फ्लैट को जाली कागजात के जरिए हथिया लिया है। दिंडोशी सेशन कोर्ट ने मेनन को विदेश जाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था। न्यायमूर्ति श्याम चांडक की अवकाशकालीन पीठ ने विजय मेनन की याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि याचिका से पता चलता है कि पुलिस ने याचिकाकर्ता को नोटिस देकर जांच के लिए 4 तारीखों पर बुलाया था। वह जांच के लिए पुलिस के समक्ष उपस्थित हुआ। ऐसा नहीं है कि याचिकाकर्ता जांच में सहयोग करने से बच रहा है। उसने आपराधिक याचिका दायर किया है, जिसमें उसने अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने का अनुरोध किया है। पीठ ने कहा कि अपराधों की प्रकृति पर विचार करते हुए याचिकाकर्ता को विदेश यात्रा करने की अनुमति देने में कोई बाधा नहीं है। वह संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएसए) 24 मई 2025 से 16 जून 2025 तक यात्रा के दौरान नियमों और शर्तों का पालन करेगा। उसे वनराई पुलिस स्टेशन के वरिष्ठ पीआई को उन सभी स्थानों का विवरण प्रदान करने का निर्देश दिया गया है। याचिकाकर्ता विदेश यात्रा के लिए सुरक्षा के रूप में 2 लाख रुपए की राशि जमा करना होगा। वह भारत लौटने के अगले दिन संबंधित पुलिस स्टेशन को रिपोर्ट करेगा। तेलंगाना के हैजराबाद में रहने वाली टीचर ने बोरिवाली मजिस्ट्रेट कोर्ट में शिकायत की थी कि उसका गोरेगांव (पूर्व) के लोढ़ा फ्लोरेंज़ा फ्लैट है। उसने मेसर्स लोढ़ा डेवलपर्स से 2 करोड़ 20 लाख 28 हजार 922 रुपए फ्लैट खरीदा था। मेसर्स लोढ़ा डेवलपर्स ने उनके फ्लैट का एलाटमेंट लेटर याचिकाकर्ता को दे दिया। उसने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता ने कुछ खाली कागजों पर उसके हस्ताक्षर प्राप्त किए और फ्लैट को हड़पने के लिए उसका दुरुपयोग किया। कोर्ट के आदेश पर वनराई पुलिस स्टेशन में विजय मेनन के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। दिंडोशी सेशन कोर्ट ने याचिकाकर्ता की विदेश यात्रा की अनुमति की मांग करने वाली याचिका खारिज कर दी थी।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने मानसिक रूप से बीमार 73 वर्षीय व्यक्ति की अभिभावक के तौर दो बेटियों को किया नियुक्त
उधर बॉम्बे हाई कोर्ट ने मानसिक रूप से बीमार 73 वर्षीय व्यक्ति की अभिभावक के तौर पर दो बेटियों को नियुक्त किया है। उन्हें दिल का दौरा पड़ने से दिमाग में चोट लगी थी, जिसके कारण वह मानसिक रूप से बीमार बिस्तर पर पड़े हुए हैं और अपनी संपत्ति की देखभाल करने में असमर्थ हैं। अदालत ने कहा कि कोर्ट ऐसी स्थितियों में मूकदर्शक नहीं रह सकता है। न्यायमूर्ति अभय आहूजा की एकलपीठ ने दोनों बेटियों वाहबिज परवेज डुमसिया और नीलोफर परवेज डुमसिया को उनके पिता का अभिभावक नियुक्त करने की याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि वह व्यक्ति मानसिक बीमारी से पीड़ित और पागलपन की स्थिति में है, जो खुद की देखभाल करने एवं अपनी संपत्ति का प्रबंधन करने में असमर्थ है। पीठ ने कहा कि हमारे देश के हाई कोर्ट ‘पैरेंस पैट्रिया' क्षेत्राधिकार (स्वयं की रक्षा करने में असमर्थ नागरिकों के कानूनी रक्षक) का प्रयोग करते हैं, क्योंकि वे इस न्यायालय के समक्ष प्रकृति की वास्तविक जीवन की स्थिति के मूकदर्शक नहीं बन सकते हैं। पीठ ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य सेवा अधिनियम के तहत मानसिक बीमारी का मतलब एक बड़ा विकार है, जो निर्णय और जीवन की सामान्य मांगों को पूरा करने की क्षमता को बुरी तरह से प्रभावित करता है। अदालत ने अपने आदेश में उल्लेख किया कि व्यक्ति समझने या सूचित निर्णय लेने में असमर्थ था और उसे निरंतर देखभाल और ध्यान की आवश्यकता है। पीठ ने कहा कि पागलपन का मतलब मानसिक अस्वस्थता से है, जो किसी व्यक्ति को सिविल लेन-देन करने में अक्षम बना दे। यह मानसिक बीमारी की परिभाषा में वर्णित मानसिक विकार को भी संदर्भित कर सकता है। ऐसी मानसिक बीमारी जिसमें व्यक्ति खुद की देखभाल करने या अपनी संपत्ति का प्रबंधन करने में असमर्थ हो, उसे "पागलपन की स्थिति’ कहा जा सकता है और इसलिए लेटर्स पेटेंट के तहत हाई कोर्ट के पास ऐसे "पागल’ व्यक्ति और उसकी संपत्ति के संबंध में अधिकार क्षेत्र होगा। याचिका में दावा किया गया कि 73 वर्षीय परवेज डुमसिया को 2024 में दिल का दौरा पड़ने से मस्तिष्क की चोट लगी थी, जिसके परिणामस्वरूप ऑक्सीजन और रक्त की आपूर्ति में कमी आई थी। परिणामस्वरूप वह अर्ध-चेतन और अक्षम अवस्था में है और तब से आज तक बिस्तर पर पड़े है। वह बातचीत करने में असमर्थ हैं और अपनी व्यक्तिगत जरूरतों का ख्याल रखने में भी सक्षम नहीं हैं। याचिका में उनकी दोनों बेटियों को उनके पिता का अभिभावक नियुक्त करने का अनुरोध किया गया। याचिका शुरू में गार्जियन एंड वार्ड्स एक्ट के तहत दायर की गई थी, जिसके तहत एक अभिभावक को अकेले नाबालिग के कल्याण के लिए नियुक्त किया जा सकता है। बाद याचिका में संशोधन किया गया और लेटर्स पेटेंट के खंड 18 के तहत बेटियों को वरिष्ठ नागरिक का अभिभावक नियुक्त करने का अनुरोध किया गया। लेटर्स पेटेंट के खंड 17 के तहत हाई कोर्ट के पास "शिशुओं, मूर्खों और पागलों’ के व्यक्तित्व और संपत्ति के संबंध में शक्ति और अधिकार है। लेटर्स पेटेंट एक विशिष्ट कानून है, जिसके तहत हाई कोर्ट अपने अधीनस्थ कानून को प्राप्त करता है और यह एक विशेष कानून है, जो सामान्य कानून पर हावी होता है।
Created On :   21 May 2025 10:02 PM IST