Nagpur News: कैदी और पुलिस के बच्चे साथ-साथ करते हैं पढ़ाई, भेदभाव की भावना खत्म

कैदी और पुलिस के बच्चे साथ-साथ करते हैं पढ़ाई, भेदभाव की भावना खत्म
  • मां और बच्चे को अलग न किया जाए
  • भेदभाव की भावना खत्म

Nagpur News. जहां जेल का नाम सुनते ही लोगों के मन में सख्त और भयावह वातावरण की कल्पना होती है, वहीं नागपुर के मध्यवर्ती कारागृह में एक संवेदनशील और प्रेरणादायक पहल ने समाज के सोचने के तरीके को बदलने का कार्य किया है। यहां महिला कैदियों के बच्चों की परवरिश और शिक्षा की दिशा में उठाया गया कदम मिसाल बनता जा रहा है। जेल प्रशासन ने एक ऐसा पालना घर शुरू किया है, जिसमें न केवल कैदियों के बच्चे शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं, बल्कि जेल प्रहरियों के बच्चे भी उनके साथ बैठकर समान रूप से शिक्षा ले रहे हैं।

मां और बच्चे को अलग न किया जाए

शोधों और विशेषज्ञों की राय के अनुसार, जन्म से छह वर्ष की आयु तक बच्चों को सबसे अधिक ज़रूरत अपनी माँ की होती है। इस समय बच्चों का मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक विकास तेजी से होता है। यदि इस दौरान उन्हें माँ का साथ नहीं मिला, तो उनके सम्पूर्ण विकास पर असर पड़ सकता है। इसी भावना को केंद्र में रखते हुए इस पालना घर की स्थापना की गई है, ताकि महिला कैदियों को अपने छोटे बच्चों से दूर न रहना पड़े और साथ ही बच्चों की शिक्षा और सामाजिक विकास भी प्रभावित न हो।

भेदभाव की भावना खत्म

इस पालना घर की सबसे बड़ी और उल्लेखनीय विशेषता यह है कि यहां महिला कैदियों के बच्चों के साथ-साथ जेल परिसर में कार्यरत प्रहरियों और स्थानीय पुलिस अधिकारियों के बच्चे भी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। इससे बच्चों के बीच भेदभाव की भावना खत्म होती है और वे समरसता के वातावरण में बड़े होते हैं। इस संयुक्त शिक्षण प्रणाली से समाज में समानता, समझदारी और संवेदनशीलता जैसे मूल्यों का बीजारोपण होता है।

‘अनूठी आंगनवाड़ी’

वर्तमान में इस पालना घर में 9 महिला कैदियों के 10 बच्चे नियमित रूप से अध्ययन कर रहे हैं, वहीं पुलिस प्रशासन से जुड़े कुल 5 बच्चे भी इसमें भाग ले रहे हैं। कुल मिलाकर 15 बच्चे इस ‘अनूठी आंगनवाड़ी’ में शिक्षा और जीवन मूल्यों की सीख ले रहे हैं।

हिंदी, मराठी, अंग्रेज़ी में शिक्षा

पालना घर में बच्चों को तीन भाषाओं हिंदी, मराठी और अंग्रेज़ी में शिक्षा दी जा रही है, जिससे उनका भाषाई विकास संतुलित रूप से हो सके। भाषा के साथ-साथ बच्चों को सामान्य ज्ञान, नैतिक शिक्षा, चित्रकला और खेलकूद जैसी गतिविधियों में भी भाग लेने का अवसर मिलता है। यह प्रयास उन्हें न केवल पढ़ाई में दक्ष बनाता है, बल्कि आत्मविश्वास, सामाजिक व्यवहार और रचनात्मकता में भी वृद्धि करता है।

यह है उद्देश्य

दीपा आगे, जेल अधीक्षक के मुताबिक बच्चों को जेल के सीमित वातावरण से बाहर लाकर उन्हें सामान्य सामाजिक परिवेश का अनुभव मिले, इसीलिए यह पालना घर जेल के बाहर स्थापित किया गया है, ताकि बच्चे समाज से कटे न रहें और उन्हें सामान्य शिक्षा और संस्कार मिल सकें।

विशेष व्यवस्था

बच्चे सुबह 11 बजे से शाम 4 बजे तक इस पालना घर में समय व्यतीत करते हैं। विशेष रूप से नियुक्त महिला पुलिसकर्मी प्रतिदिन बच्चों को उनकी माँ के साथ रहने वाली जेल की सेल से पालना घर तक लेकर जाती है और शाम को वापस सेल तक ले आती हैं। इस दौरान बच्चों की सुरक्षा और मानसिक स्थिति का विशेष ध्यान रखा जाता है।

Created On :   3 Jun 2025 7:01 PM IST

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